Friday, December 19, 2014

मस्नूई ग्रह

लाल किताब में मस्नूई ग्रह से मतलब है दो ग्रहों से बना हुआ बनावटी ग्रह। मसलन् कुण्डली में शुक्र बुध मुश्तर्का हांे तो वह मस्नूई सूरज हुआ। इस तरह कण्डली में दो सूरज हुए। एक तो पक्का ग्रह सूरज और दूसरा मस्नूई सूरज। पक्के ग्रह का असर अपनी मुताल्लिका चीज़ों पर होगा। मगर मस्नूई ग्रह अपनी मस्नूई हालत के दोनों ग्रहों के मुताल्लिका चीज़ों का असर भी दे जाता है। मसलन् सूरज पक्का ग्रह है और शुक्र बुध मुश्तर्का मस्नूई ग्रह सूरज है। अब सूरज अपना असर सेहत तरक्की खाना नम्बर 1-5 का असर देगा। लेकिन शुक्र बुध मुश्तर्का मस्नूई हालत में सूरज का असर शुक्र शादी और बुध लियाकत का भी हर दो ग्रह खाना नम्बर 7 का असर दे जायेगा। नष्ट ग्रह के वक्त उस ग्रह का मस्नूई हालत का ग्रह काम देता है। मसलन् सूरज राहु मुश्तर्का से सूरज नष्ट या मन्दा ही होगा। अगर उसी वक्त शुक्र बुध भी मुश्तर्का हों तो सूरज मन्दा न होगा। क्योंकि मस्नूई सूरज मदद दे देगा।
लाल किताब के फ़रमान नम्बर 10 के मुताबिक दो ग्रह मुश्तर्का होने से मस्नूई ग्रह बन जाता है। सूरज शुक्र मुश्तर्का से मस्नूई बृहस्पत, शुक्र बुध मुश्तर्का से सूरज, बृहस्पत सूरज से चन्द्र, राहु केतु से शुक्र, सूरज बुध से मंगल (नेक), सूरज सनीचर से मंगल (बद), बृहस्पत राहु से बुध, बृहस्पत शुक्र से सनीचर (केतु सुभाओ), मंगल बुध से सनीचर (राहु सुभाओ), मंगल सनीचर से राहु (ऊँच), सुरज सनीचर से राहु (नीच), शुक्र सनीचर से केतु (ऊँच) और चन्द्र सनीचर से केतु (नीच) बनता है।
मस्नूई ग्रहों का असर खास खास बातों पर होगा। मस्नूई ग्रह बृहस्पत औलाद की पैदायश का मालिक है। मस्नूई सूरज सेहत का मालिक, चन्द्र वालदैनी खून व नुत्फ़ा का ताल्लुक, शुक्र दुनियावी सुख बजरिया औलाद, मंगल औलाद को जि़न्दा रखने का मालिक, बुध इज्ज़त शोहरत, सनीचर सेहत बिमारी, राहु झगड़े फसाद और केतु ऐश का मालिक है।
मस्नूई ग्रह की हालत में उसके दो ग्रहों का असर जुदा जुदा कर लेना या दो का मुश्तर्का कर लेना हो सकता है। किस्मत की हेराफेरी पक्का ग्रह शायद ही कभी बदले पर मस्नूई ग्रह का बदलना मुमकिन है। मगर 21 साला उम्र से कोई तबदीली नही होती। यह बालिग होने का ज़माना है। किस्सा कोताह मसनूई ग्रह पक्के ग्रह को मदद ही देता है।
मस्नूई ग्रह किसी किसी कुण्डली में होता है। इसका असर पक्के ग्रह के हिसाब से होता है। ऐसी ही दो कुण्डलियां बतौर मिसाल पेश है।
कुण्डली नम्बर 1


कुण्डली नम्बर 2





पहली कुण्डली मुल्क के साबिक वज़ीरे आज़म जवाहर लाल नेहरू जी की जिसमें मस्नूई सूरज खाना नम्बर 4 में है। लिहाज़ा खाना नम्बर 5 का सूरज बहुत ताकतवर हुआ। वृहस्पत की किस्मत को सूरज की चमक ने इतना चमका दिया कि उनके सामने कोई टिक न पाया। नेहरू जी लम्बे अर्से तक सियासी दुनिया में सूरज की तरह चमकते रहे।
दूसरी कुण्डली मरहूम धीरू भाई अम्बानी जी की जिसमें मस्नूई सूरज खाना नम्बर 12 में है। लिहाज़ा खाना नम्बर 1 का सूरज बहुत ताकतवर हुआ। बहुत कम समय में एक आम आदमी से तरक्की करके वह बहुत बड़े सन्नतकार बन गये। उनका रिलायन्स कम्पनियों का गरूप मुल्क में नम्बर एक माना जाने लगा और उनकी गिनती दुनिया के अमीर आदमियों में होने लगी। अम्बानी जी लम्बे अर्से तक कारोबारी दुनिया में सूरज की तरह चमकते रहे।
इसके अलावा मस्नूई ग्रह वाली कुछ और कुण्डलिया भी मेरी नज़र से गुज़री हैं । मसलन् साबका वज़ीरे आज़म इंदिरा गाँधी , वी. पी. सिंह और डा. मनमोहन सिंह जी की कुण्डली में मस्नूई मंगल मौजूद है    जब कि वज़ीरे आज़म नेरिंदर मोदी जी कि कुण्डली में मस्नूई केतु मौजूद है   यह सब कुण्डलियाँ मस्नूई ग्रहों कि उम्दा मिसालें हैं 

Monday, December 1, 2014

राहे रवानगी

’’इस घर का जो रंग है खूनी, असर होता भी खूनी है ।
होता जभी ग्रह इस घर ज़ुल्मी, देता असर वह कष्टी है।’’

कुण्डली के खाना नम्बर 3 को लाल किताब में इस दुनिया से कूच के वक्त राहे रवानगी कहा गया है। हकीकी रिश्तेदार, बहन भाई, भाई बन्द, साले बहनोई, नज़र का असर (पत्थर फाड़े या तारे) जिगर खून, आम खुशी गमी की औसत हालत, सुभाओ गर्म, तर व बादी होगा। भाई का घर, ताये चाचे का मकान, मकान के  साजो सामान, जिस्मानी ताकत, मुताल्लिका बृहस्पत, ठगी, चोरी, अयारी, यारी मुहब्बत, नुक्सान, जंग व जदल, नेकी, इन्साफ मंुसिफी, बजऱ्ुगाना ताल्लुक, बच्चा पैदा करने की ताकत, परिवार, कबीला का बढ़ना व बढ़ाना, उठती जवानी का हाल, आकाश, दुनिया से माया के चले जाने का रास्ता, दूसरों की मदद से पैदा करदा दोस्त यार मददगार आदमी, जनूब, बुध शनि और मंगल जैसे हों वैसा ही फल होगा। यह सेहन है खाना नम्बर 11 का और इसका मुन्सिफ होगा बुध सब्ज़ मंगल। मर्द व औरत की जोड़ी या बाहमी ताल्लुक व उम्र का साथ ज़ाहिर होगा।
त्रिलोकी का भेद खाना नम्बर 3 से खाना नम्बर 9 में नौ ही ग्रहों से ज़ाहिर हुआ। जहां कि गैबी और ज़ाहिरा दोनो जहांन का मालिक बृहस्पत था। जिसने दुनिया को यह ख़बर देने के लिए गृहस्थियों का घर शुक्र का खाना नम्बर 2 को पक्का घर बनाया। जिसमें आने के बाद चले जाने का पैगाम या मौत का हुक्म भी खाना नम्बर 8 से आने लगा। इस गुरू बृहस्पत ने यह भेद कुत्ते के ज़रिए खाना नम्बर 6 में भेजा। कुत्ता बोला तो उसकी आवाज़ फिर वापिस आसमानी खाना नम्बर 12 में जा पहुंची। इस भेद की जो चीज़ खाना नम्बर 3 से 9 में और खाना नम्बर 8 से खाना 2 में ले गई वह दृष्टि देखना या मंगल सनीचर की नज़र का होना कहलाया। इस नज़र को बृहस्पत ने पहचाना और अपने साथी दुनियावी दरवेश कुुत्ते की आवाज़ बुध से ज़ाहिर कर दिया। बृहस्पत ने गैबी बात पहचानी। केतु ने बुध के रास्ते धन दौलत के सुख के खाने में ख़बर दे दी। दोनो दरवेशों की इस ताकत को बुध ने ज़ाहिर किया। इसलिए बुध का आकाश या आवाज़ नकारा खलक को आवाज़े खुदा समझा गया या बुध सब का भेद खोल देगा। अगर बुध अच्छा तो चन्द्र का बुरा फल न होगा। जब चन्द्र अच्छा तो शुक्र का बुरा फल न होगा। इसीलिए बुध अपना फल शुक्र में पहुंचा देता है। यानि बुध के बगैर शुक्र पागल होगा और शुक्र के बगैर बुध दीवाना पागल कुत्ता होगा जो अपने मालिक को छोड़कर (दीवाना कुत्ता मालिक का छोड़ जाता है) और अगर वह अपने ही घर जहां वह पागल हुआ बंधा होवे यानि खाना नम्बर 12 में तो मालिक को भी काट देगा। गोया बुध ही सब ग्रहों का भेदी है और बृहस्पत सबको जानने वाला है। यह दोनो ही ग्रह राहु केतु के सर और पांव को पहचान सकते हैं क्योंकि दोनों मुश्तर्का ग्रहचाली बच्चा माने हैं। खुलासातन खाना नम्बर 3 के ग्रह खाना नम्बर 8 की रद्दी हालत से बचाने वाले होंगे। ख्वाह वह नम्बर 3 के ग्रह खुद खाना नम्बर 11 की मन्दी हालत में ही क्यों न हों। या यूं कहो कि खाना नम्बर 3 कुण्डली वाले पर मन्दा न होगा अगर खुद उस ग्रह की मुताल्लिका चीज़ों का ताल्लुक मन्दा हो तो बेशक ।
जब नम्बर 3 में पापी ग्रह बैठें हो और नम्बर 8 व 6 भी मन्दे हो रहे हों तो अगर मौत नही तो बहाना मौत ज़रूर खड़ा कर देंगे। खाना नम्बर 12 का ग्रह ख्वाह नम्बर 3 वाले का दुश्मन ही हो, नम्बर 3 को मदद देगा। मसलन् मंगल नम्बर 12, केतु नम्बर 3 हो तो मच्छ रेखा वास्ते धन दौलत हालांकि मंगल और केतु बाहम दुश्मन हैं । इसी तरह बुध नम्बर 12 और शनि या बृहस्पत नम्बर 3 हों तो अमृतकुण्ड, हर तरह से बरकत का ज़माना होगा। अगर नम्बर 12 में शुक्र राहु मुश्तर्का हों तो ज़ाहिरा तौर पर 21 या 25 साला उम्र में बेवापन ज़ाहिर होगा। लेकिन अगर उसी वक्त खाना नम्बर 3 में शनि बैठा हो तो राहु का शुक्र पर बुरा असर न होगा। क्योंकि शनि शुक्र का मदद दे देगा। जब नम्बर 3 में मुश्तर्का ग्रह हों तो 12 व 3 के ग्रहों की बाहमी दोस्ती दुश्मनी बहाल होगी।

Friday, November 7, 2014

धर्म अस्थान

’’ घर चलकर जो आवे दूजे, ग्रह किस्मत का बन जाता हो ।
   खाली  पड़ा घर 10 जब  टेवे, सोया हुआ कहलाता हो ।।

कुण्डली के खाना नम्बर 2 को लाल किताब में धर्म अस्थान उम्र बुढापा कहा गया है। पैशानी पर तिलक लगाने की जगह खाना नम्बर 2 की असली जगह है। यह बृहस्पत का असल मुकाम है । चन्द्र उच्च करता है जो बृहस्पत का दोस्त है। इस घर को नीच करने वाला कोई ग्रह नही । इस घर का मालिक शुक्र है जिसे लक्ष्मी अवतार माना गया है। इस घर को सब ग्रहों ने इज्ज़त से देखा है। खुद जाती किस्मत, ससुराल का मकान व खानदान, रिश्तेदारों से पाई हुईं चीज़ें मार्फत स्त्री धन या दहेज, नफ़सानी ताकत, भूख, मोह माया, दौलत इज्ज़त शरीफाना, बुढापे में जुबानी व हवाई इश्क, बचत जाती कमाई, जन्म मरण का दरवाजा, स्त्री ताल्लुक, माता, बुआ, मासी, फूफी, बेवा या माशूका औरत वगैरह, रिश्तेदारों से दौलत, बृहस्पत या शुक्र जैसे हों वैसा ही फल होगा। तमाम ग्रह बृहस्पत के ज़ेर साया होंगे। यह सहन है खाना नम्बर 8 का और इस घर का मुन्सिफ होगा मगल बद।
खाना नम्बर 2 को हवाई ख्याल की तमाम ताकतों, राहु केतु मुश्तर्का की बैठक या मस्नूई शुक्र की जगह मानते हैं। खाना नम्बर 8 का असर जाता है खाना नम्बर 2 में और खाना नम्बर 2 देखता है खाना नम्बर 6 को । इसलिए नम्बर 2 का फैसला नम्बर 6,8 को साथ मिलाकर होगा। खाना नम्बर 2 राहु केतु की बैठक मुश्तर्का होगी जिसमें सनीचर की मौत का ताल्लुक न होगा। जिस तरह खाना नम्बर 4 ने अपनी नेकी न छोड़ी, उसी तरह खाना नम्बर 2 ने कुल दनिया से ताल्लुक न छोड़ा। खाना नम्बर 4 के खज़ाने का भेदी खाना नम्बर 2 होगा। इन दो खानों का मुश्तर्का असर किस्मत का करिश्मा हुआ जो दोनों का लबे लुबाब भी कहा जा सकता है। खाना नम्बर 4 बढ़ाता है चन्द्र को तो नम्बर 2 बढ़ाता है  बृहस्पत को। खाना नम्बर 8 खाली हो तो नम्बर 2 उम्दा होगा। जब खाना नम्बर 2 खाली हो तो रूहानी असर उम्दा। अगर खाना नम्बर 9 बरसाती मौनसून हवा के उठने का समन्दर है तो खाना नम्बर 2 इस बारिश से लद्दी हुई हवा से टकरा कर बरसा लेने वाला कोहसार होगा।
इस घर में मंगल बद के जज़बी ग्रह और पापी ग्रह टेवे वाले पर मन्दा असर न देंगे बल्कि राहु भी यहां बृहस्पत के मातहत होगा। सब ग्रह खाना नम्बर 9 का फल, टेवे वाली की उम्र के आखिरी हिस्सा में देंगे। मसलन् खाना नम्बर 9 में सनीचर का फल 60 साल है जो टेवे वाले की उम्र के शुरू होने की तरफ से 60 साल बुढापे की तरफ है। लेकिन सनीचर जब खाना नम्बर 2 में हो तो इसका वही असर मौत के दिन से पीछे जन्मदिन की तरफ 60 साल होगा। इस घर के ग्रह बुढापे में हमेशा नेक फल देंगे ख्वाह वह किसी दूसरे असूलों की गिनती या चाल वगैरह से कितने ही मन्दे क्यों न हों। 

Thursday, October 9, 2014

तख़्त हज़ारी

’’घर  पहला  है तख़्त हज़ारी, ग्रह फल राजा  कुण्डली का;
जोतिष में इसे लग्न भी कहते, झगड़ा जहां रूह माया का।’’

लाल किताब में कुण्डली के घर खाना नम्बर 1 को शाह सलामत का तख़्ते बादशाही कहा गया है। खुद अपना जाती जिस्म, तमाम अज़ू , वजूद, जाती कमाई, रोज़ी रोटी, सुभाओ गर्मी खुश्की व आतिषी होगा । खुद साख्ता मकान, अपना तख़्त, चारदीवारी, मय तहके गोशे, सामान सवारी, रूह रूहानी व दिमागी ताकत, मर्दो का ताल्लुक, गुस्सा परोपकार, राज दरबार, पुरानी रसोमात व मकानात का ताल्लुक, वक्त जवानी, ज़माना हाल, मौजूदा जन्म, साथ लाया हुआ खजाना वास्ते खुद अपना जन्म, दुनिया में नाम किस हैसियत का होगा।  यह सहन है खाना नम्बर 7 का और इस घर का मुन्सिफ होगा शुक्र।
खाना नम्बर 1 में सूरज उच्च, शनि नीच और मंगल घर का ग्रह का होगा। मगर खाना नम्बर 7 में शनि उच्च, सूरज नीच और शुक्र घर का ग्रह होगा। अगर खाना नम्बर 7 खाली हो तो खाना नम्बर 1 के उच्च ग्रहों का असर शक्की ही होगा। तख़्त पर बैठा हुआ ग्रह राजा और खाना नम्बर 7 में बैठा हुआ ग्रह उसका वज़ीर होगा। अगर तख्त पर एक ग्रह और खाना नम्बर  7 में ज्यादा ग्रह बैठे हों तो राजा वज़ीरी होती है। मगर जब उल्ट हो जावे तो सातवें की जड़ कट जाती है। मसलन् खाना नम्बर 1 में चार ग्रह बृहस्पत चन्द्र बुध राहु और खाना नम्बर 7 में अकेला केतु हो तो 34 साला उम्र तक नर औलाद नदारद या पैदा होकर मरती जावे और 48 साला उम्र तक एक ही लड़का कायम हो। अगर 48 साला उम्र से दूसरा लड़का कायम हो जावे तो लड़की बेवा, बेईज्जत या दीगर मन्दे नतीजों से बरबाद होगी। कुण्डली वाला अगर चार और जानों को रोटी का हिस्सा देवे तो नर औलाद कायम होगी और औलाद पैदा होने के दिन से चारो ग्रह मुश्तर्का राजयोग होंगे वर्ना उम्दा असर की बजाये खाक या हर तरह लानत नसीब होगी। जब खाना नम्बर 1 में ज्यादा ग्रह हों तो खाना नम्बर 1 का मुन्सिफ शुक्र होगा।
जिस वक्त टेवे मेे असल मंगल के अलावा मसनूई मंगल नेक या बद दोनों ही मौजूद हों तो नम्बर 1 देखेगा खाना नम्बर 11 को । अगर  नम्बर 11 खाली हो तो नम्बर 1 ग्रह अपना असर करने के ताल्लुक में बुध की चाल पर चलेगा। जब नम्बर 8 खाली हो तो 1 वाले ग्रह की आंखों को रोकने के लिए कोई रूकावट न होगी और वह खुद ही अपनी आंखों से देखभाल करता होगा। तख़्त पर बैठे हुये ग्रहचाली हुक्मरान राजा के अहद में उसके लिए खाना नम्बर 1 लैंन्स ,नम्बर 8 फोक्सिंग ग्लास और नम्बर 11 रैगुलेटर होगा।

Saturday, September 6, 2014

मैदाने किस्मत

’’ग्रह 10वे का घर 10 शक्की, दुगनी ताकत का हेाता हो ;
 आंख बना है घर दो जिसकी, ख्वाब 12 से लेता हो ।’’

कुण्डली के खाना नम्बर 10 को लाल किताब में किस्मत की बुनियाद का मैदान कहा गया है। अगर खाना नम्बर 10 रद्दी ग्रहोें से रद्दी हो रहा हो तो टेवा अन्धे ग्रहों का होगा। ख्वाह तमाम ग्रह उच्च घरों के हों पर अन्धे की तरह अपना फल देंगे। यह सहन है नम्बर 4 का और इसका मुन्सिफ होगा चन्द्र।

इस घर बमुजिब वर्षफल आया हुआ ग्रह धोखे का ग्रह होगा जो अच्छा बुरा दोनों ही तरफ हो सकता है। नम्बर 8 मन्दा हो तो दुगना मन्दा और नम्बर 2 नेक हो तो दुगना उम्दा होगा। अगर दोनों तरफ बराबर तो अच्छा असर पहले और बुरा असर बाद में होगा। अगर नम्बर 8 व 2 दोनों ही खाली हों तो नम्बर 3, 5, 11 के ग्रह मददगार होंगे। अगर वह भी खाली हों तो फैसला  सनीचर की हालत पर होगा। जब नम्बर 10 में बाहम लड़ने वाले कोई भी ग्रह बैठे हों तो वह टेवा अन्धे ग्रहों का होगा। यानि वह ग्रह हूबहू ऐसे ही ढंग पर असर देंगे, जिस तरह दुनिया में अन्धा प्राणी चलता फिरता है। ऐसी हालत में फैसला चन्द्र की हालत पर होगा। यानि अगर चन्द्र उम्दा तो असर उम्दा वर्ना मन्दा फल लेंगे।

अगर खाना नम्बर 10 खाली ही हो तो खाना नम्बर 4 के ग्रहों का कोई नेक फल न हो सकेगा। ख्वाह उस घर में रिज़क के चश्मे को उभारने केे लिए ग्रह लाख दर्जा ही उम्दा क्यों न हो । अपने माता पिता से मिलते रहना मदद देगा।

10 अन्धे मर्दों को इकट्ठा ही मुफ्त खुराक तकसीम करना खाना नम्बर 10 के  ग्रहों की ज़हर धो सकेगा। राहु केतु बुध तीनों ही इस घर में हमेशा शक्की होंगे। जो सनीचर की हालत पर चला करते हैं। यानि अगर सनीचर उम्दा तो दो गुणा उम्दा और अगर सनीचर मन्दा तो दो गुणा मन्दा असर देंगे।

Monday, August 4, 2014

इन्साफ

’’घर  12  न ग्रह  जो  बोले, घर 2 में  वह बोलता है;
    फल घर 12-2 का इकट्ठा, साधु समाधि होता है।’’

इसी असूल के होसला पर इन्सान 12 राशियों के 12 साल गुज़ारता है कि आखीर कभी न कभी 12 साल के बाद ही मालिक सुन ही लेगा और यह सच है कि 12 साल के बाद सब की अमूमन सुनी जाती है और फिर वही बृहस्पत का ज़माना बदलने को खाना नम्बर 1 का सूरज निकल आता है। कुण्डली का खाना नम्बर 12 इन्साफ, आरामगाह, बृहस्पत राहू की मुश्तर्का बैठक है। यह सहन है नम्बर 6 का और 6 का मुन्सिफ होगा केतु। ज़र्द नीला मगर जुदा जुदा, बृहस्पत की दो जहां की ताकत का फैसला राहु से होगा।
कुण्डली के तमाम ग्रहों की अपील खाना नम्बर 12 पर होगी। यानि खाना नम्बर 12 का फैसला सबसे आखिरी फैसला होगा। अगर खाना नम्बर 12 के लिए खुद अपनी अपील की ज़रूरत हो तो खाना नम्बर 2 पर होगी या खाना नम्बर 12 के जाति ताल्लुक खाना नम्बर 2 का फैसला सबसे आखिरी फैसला होगा। नम्बर 12 के लिए नम्बर 1 के ग्रह की उम्र गुज़रने के बाद नम्बर 2 अपील का काम देगा। जिसका आखिरी मुन्सिफ केतु होगा। अगर नम्बर 1 खाली हो या नम्बर 1 के ग्रह की उम्र के बाद नम्बर 1 खाली हो जावे तो सब से आखिरी मुन्सिफ चन्द्र होगा। लेकिन नम्बर 1 की उम्र के अन्दर अन्दर आखिरी हाकिम हमेशा नम्बर 1 का ग्रह ही होगा।
नम्बर 12 के ग्रह का मुताल्लिका रिश्तेदार कुण्डली वाले के आराम पैदा करने के ताल्लुक में खुदाई ताकत का मालिक होगा। जिसके बाद उस ग्रह की मुताल्लिका अशिया कायम करने से सुख सागर होगा। मसलन् बृहस्पत  नम्बर 12 हो तो बाप बाबा जि़न्दा होने के वक्त तक कुण्डली वाले की रात हमेशा आराम से गुज़रेगी। उनकी वफ़ात के बाद बृहस्पत की अशिया बावक्त रात कायम रखना आराम देगा।
नम्बर 8 मन्दा और नम्बर 2 खाली हो या जब नम्बर 12 और नम्बर 8 दोनों ही घरों में  ऐसे ग्रह हों जो इकट्ठे हो जाने पर मन्दे हो जावंे तो मन्दिर से दूरी बेहतर वर्ना खाना नम्बर 8-12 की मन्दी टक्कर होगी। मसलन् बुध नम्बर 8 सनीचर नम्बर 12 तो लड़की की बीनाई बर्बाद जब मन्दिर में जावे। कुण्डली का खाना नम्बर 12 जि़न्दगी में आराम की हालत बतलायेगा। अगर इस खाने में कोई मन्दा ग्रह बैठ जावे तो दिन भर काम, रात को बेआराम और बिना वजह बदनाम वाला हाल होगा। मिसाल के तौर पर राहुल गांधी की कुण्डली जो इस तरह बताई जाती है। समझदार के लिए इशारा ही काफी

जन्मः 19-6-1970


वर्षफलः 44 साल


खाना नम्बर 12 में बुध और खाना नम्बर 2 में शुक्र है।  बुध का ज़हरीला असर चन्द्र पर। मां वक्त से पहले बेवा हो गई। अब उनकी सेहत भी ठीक नही रहती। राहु किस्मत के घर मन्दा। जिसका मालिक बृहस्पत भी चुप है। इसीलिए आज तक कोई नतीजा नही निकला। अगर 44वें साल के वर्षफल का जायज़ा लिया जाये तो कुछ अच्छा नज़र नही आता। राहु ने ग्रहण लगा दिया और बाकी कमी शनि ने पूरी कर दी। लिहाज़ा हाल ही में हुये लोकसभा इन्तखाब में इनके जेरे कियादत पार्टी को बुरी तरह शिकस्त मिली।
कुछ साल पहले इस कुण्डली पर बात हुई थी। दो सवाल थे जिनका जवाब आज तक नही आया। अब उम्र 44 साल हो गई है। न परिवार ही बना और न सरकार ही बना पाये। उम्मीदों पर पानी फिर गया। बल्कि सब उल्ट हो गया। किस्मत के फेर से रात की नींद  उजाड़ने वाला बुध खाना नम्बर 12 जिसका उपाय कर लेना ही बेहतर होगा। वर्ना
’’गई शब न आधी, वह क्यों रो रहा है;
लिखा सब फरिश्ता, उल्ट हो रहा है।’’

Thursday, July 3, 2014

आगाज़े किस्मत


’’जड़ बुनियाद ग्रह 9 होता, किस्मत का आगाज़ भी हो;
घर दूजे पर बारिश करता, समन्दर घिरा ब्रहमण्ड भी हो।’’

लाल किताब के मुताबिक किस्मत का असल आगाज़ खाना नम्बर 9 का ग्रह होगा। नम्बर 9, जब नम्बर 3-5 खाली हो तो नम्बर 2 की मार्फत जाग पड़ेगा। नम्बर 9 के ग्रह की मुताल्लिका अश्यिा तिलक की जगह लगाने से नम्बर 9 का असर पैदा होगा।
खाना नम्बर 9 के ग्रह किस्मत के बुनियादी ग्रह होते हैं। इस खाने में खाना नम्बर 3 और खाना नम्बर 5 के ग्रहों का असर भी आ मिलता  है। औलाद की पैदायश के दिन से खाना नम्बर 5 का असर न सिर्फ खाना नम्बर 9 में जाने लग जाता है बल्कि बाप बेटे की मुश्तर्का किस्मत 70-72 साला सवाल करने लग जाता है। खाना नम्बर 3 का असर कुण्डली वाले के अपने जन्म से ही खाना नम्बर 9 में मिलने लग जाता है। औलाद की पैदायश के दिन से पहले खाना नम्बर 5 का असर खाना नम्बर 9 में गया। वह बाप बेटे की मुश्तर्का किस्मत पर असर नही करता बल्कि खाना नम्बर 9 की दूसरी चीजें यानि धर्म कर्म और कुण्डली वाले के अपने बज़ुर्गो के ताल्लुक में असर रखता है। औलाद की पैदायश के दिन से खाना नम्बर 5 का असर कुण्डली वाले के अपने बज़ुर्गो की बजाये खुद कुण्डली वाले की अपनी किस्मत पर असर करता है। इसी तरह खाना नम्बर 3 का असर भाई की पैदायश के दिन से खाना नम्बर 9 में जब जायेगा तो कुण्डली वाले की अपनी जात पर असर करेगा और भाई की पैदायश से पहले कुण्डली वाले के अपने बज़ुर्गों के ताल्लुक में दखल देगा। अगर उसका भाई पहले ही मौजूद हो तो बड़े भाई की किस्मत का असर कुण्डली वाले में आयेगा। खाना नम्बर 3 की इस ताकत की वजह से मंगल की राशि नम्बर 8 मंगल बद मौत ने भी उल्टा देखा क्योंकि मंगल नेक और बद दोनों भाई ही हैं। उम्र के पहले 35 साला चक्कर में छोटा भाई भी हो और औलाद भी शुरू हो जावे तो खाना नम्बर 5 का असर खाना नम्बर 3 के असर पर प्रबल होगा। अगर खाना नम्बर 3 व नम्बर 5 दोनो ही खाली हों तो किस्मत की बुनियाद पर सिर्फ खाना नम्बर 9 के ग्रह माने जायेंगे। अगर खाना नम्बर 9 भी खाली हो तो यह शर्त ही उड़ गई।
खाना नम्बर 5 का असर कुण्डली वाले पर उसके बुढ़ापे में होता है और खाना नम्बर 3 का बचपन से या यूं कहो कि खाना नम्बर 3 का असर उम्र के पहले 35 साला चक्कर में होता है और खाना नम्बर 5 का उम्र के दूसरे 35 साला चक्कर पर या किस्मत की बुनियाद पर उम्र के पहले 35 साला चक्कर में खाना नम्बर 3 का असर होगा और दूसरे 35 साला चक्कर में खाना नम्बर 5 का असर किस्मत की बुनियाद पर होगा। खुलासातन उम्र के दूसरे 35 साला चक्कर में खाना नम्बर 5 का असर नम्बर 3 के असर पर प्रबल होता हुआ किस्मत की बुनियाद पर होगा। हर हालत में खाना नम्बर 5 प्रबल होता है और खाना नम्बर 3 नीचे दब जाने वाला । खाना नम्बर 9 का अपना असर हर वक्त साथ होगा। पहले घरों के ग्रह बाद के घरों के ग्रहों को अपनी दृष्टि के वक्त जगा  दिया करते हैं। अगर बाद के घरों में कोई ग्रह न होवे तो वह खाना सोया हुआ गिना जाता है। फर्जन खाना नम्बर 11 में कोई न कोई ग्रह मौजूद है मगर खाना नम्बर 3 खाली है तो इस हालत में खाना नम्बर 11 के ग्रह सोये हुये माने जायंेगे। जिनको जगाने के लिए किस्मत के जगाने वाले ग्रह की ज़रूरत होगी। बाद के घरों के ग्रहों के जागने के दिन से किस्मत का जागना मुराद होगी। इस तरह अगर खाना नम्बर 9 के ग्रह खास खास सालों में जागें तो खाना नम्बर 9 में दिया हुआ असर पैदा होगा। जिस साल से पहले घरों के ग्रहों का पहला दौरा शुरू, उस साल के बाद के घरों के ग्रह जाग पड़े होंगे और उस साल से पहले ग्रह सोये हुये माने जायेंगे। सालों में वर्षफल के हिसाब से शुरू हो या न हो तो भी ऊपर का फल देंगे। शुरू उम्र की तरफ से अपनी अपनी उम्र में शुरू होकर अपनी अपनी उम्र के अर्सा तक ही यानि बृहस्पत 16 साल से शुरू होकर 16 साल ही यानि 32 साला उम्र तक, सूरज 22 से 22 साल कुल 44 साला उम्र तक, सनीचर 60 से 60 साल तक कुल 120 साल तक वगैरह वगैरह ऊपर का फल देंगे। वर्षफल के हिसाब से खाना नम्बर 9 वाले का असर उसकी अपनी आमतौर पर शुरू होने की मियाद की बजाये जन्मदिन से ही शुरू होता हो तो वह ग्रह जन्मदिन से ही अपनी उम्र के अर्सा तक ही ऊपर का फल देगा यानि बुध 34 साल, मंगल 28 साल, सनीचर 60 साल वगैरह। खुलासातन खाना नम्बर 9 के तमाम ग्रह जब कभी भी शुरू होवे वह अपनी-अपनी आम उम्र की मियाद तक फल देंगंे सिवाये सनीचर के जो 60 साल उम्दा फल देगा। इस तरह खाना नम्बर 9 में शुक्र या बुध और मंगल बद सबसे मन्दे और सनीचर नम्बर 9 में सबसे उत्तम और सबसे लम्बा अर्सा 60 साल का होगा।
बृहस्पत के खाना नम्बर 9 में ऊपर दिये हुये खास खास वक्तों में जागे हुये ग्रह का असर इस तरह होगा ।
बृहस्पत ः- निहायत मुबारक
सूरजः- निहायत मुबारक
चन्द्रः- निहायत मुबारक
शुक्रः- मंगल बद का असर
मंगलः- निहायत उत्तम
बुधः- मंगल बद का असर
सनीचरः- मुबारक
राहुः- मुबारक खर्चा
केतुः- मुबारक सफर
इस घर के ग्रह शुरू उम्र में और हर एक ग्रह अपने शुरू होने के दिन से अपनी पूरी उम्र तक फल देंगे। मिसाल के तौर पर डा0 मनमोहन सिंह जी की कुण्डली जो इस तरह बताई जाती है । समझदार के लिए इशारा ही काफी ।
बृहस्पत खाना नम्बर 9 किस्मत के घर में निहायत मुबारक है। इसलिए मुलाज़मत के दौरान डाक्टर साहिब आलह ओहदे पर रहे। जब वह वज़ीर बने तो उस वक्त वह पार्लियमैंट के मैंबर न थे। बाद में वह राज्य सभा के मैंबर बने जहां सीधा चुनाव नही होता। फिर सियासी नेता न होने के बावजूद वह मुल्क के वज़ीरे आज़म बने और दस साल तक इस ओहदे पर रहे। यह किस्मत नही तो और क्या है ?

Saturday, June 7, 2014

यकसां कुण्डलियां

पिछले महीने ’’गुरू अस्थान’’ में कुण्डली के खाना नं0 11 की बात हुई। इस खाने के ग्रहों की बे-एतबारी की हालत का भी जि़कर हुआ। अब बात को आगे बढ़ाते हुये मिसाल के तौर पर दो यकसां कुण्डलियां पेश  है, जिनके खाना नं0 11 में ग्रह बैठे हैं। इतफाक से ग्रह भी मिलते जुलते हैं। बात को समझने के लिए यह एक मददगार मिसाल होगी। समझदार के लिए इशारा ही काफी।

                                                           कु0 1   जन्मः 02-09-1981



                                                        कु0 2  जन्मः 26-10-1981


  
पहली कुण्डली आदमी की और दूसरी कुण्डली औरत की है। दोनों कुण्डलियों के खाना नं0 11 मंे एक जैसे ग्रह बैठे हैं। बस दूसरी कुण्डली में एक ग्रह कम है। या यूं कहो कि पहली कुण्डली के खाना नं0 11 में ग्रहों की पंचायत है। दूसरी कुण्डली में चार ग्रह मुश्तर्का और पांचवा ग्रह शुक्र खाना नं0 1 में है। दोनो कुण्डलियों में केतु खाना नं0 3 और राहु खाना नं0 9 में है। दोनो कुण्डलियों में 9 में से 6 ग्रह एक जैसे बैठे हैं। इसके अलावा दोनों कुण्डलियों के खाना नं0 10 में ग्रह है मगर खाना नं0 2 और 4 खाली हैं। किस्सा कोताह दोनो कुण्डलियां मिलती जुलती हैं ।

अब सवाल यह है कि दोनो की जि़न्दगी पर ग्रहों का क्या असर हुआ ? दोनो का जन्म आम परिवार में हुआ। दोनो कुण्डलियों में डाक्टर बनने का योग। लिहाज़ा जि़न्दगी में दोनो ने मेहनत की और पढ़ लिखकर आलह डाक्टर बने। दोनो इस वक्त लखनऊ के बड़े हस्पताल में काम कर रहे हैं। अब आप ग्रहों का खेल समझ ही गए होंगे। एक और बात, दोनो मियां बीवी हैं। इनकी शादी तकरीबन 4 साल पहले हुई थी। दोनो की कुण्डली में 34 सालां उम्र के बाद 36 साल के आस पास तरक्की का योग है। दोनो का मुस्तकबिल रौशन है। खुदा उम्र दराज़ करे। आमीन !

Saturday, May 3, 2014

गुरू अस्थान

’’पाप  अकेला  असर  अकेला, तीन पांच नौ ग्यारह;
शनि बली का साथ मिले तो, असर बढ़े गुणा ग्यारह।’’
कुण्डली के खाना नम्बर 11 को लाल किताब में गुरू अस्थान जाये इन्साफ या इन्सानी किस्मत की बुनियाद कहा गया है। इन्सान का जाती हाल (आमदन-कमाई-जन्म वक्त) या टेवे वाले का कुल दुनिया से ताल्लुक और सब की मुश्तर्का किस्मत का मैदान हर शख्स अपने साथ लिए हुये है।
इस घर में केतु होने पर चन्द्र बरबाद और चन्द्र होने पर केतु बरबाद। इसी तरह इस घर में बृहस्पत होने पर राहु बरबाद और राहु होने पर बृहस्पत बर्बाद होगा। खाना नम्बर 11 के ग्रह सिवाये पापी ग्रहों के बे-एतबारी हालत के होंगे। खाना नम्बर 11 का असर उस वक्त ही मुकम्मल जागता हुआ माना जायेगा जबकि खाना नम्बर 3-1 दोनों ही घरों में कोई न कोई ग्रह ज़रूर हो। अगर खाना नम्बर 3 खाली हो तो अमूमन नेक फल तख्त के आने के दिन से शुरू करेंगे और खाना नम्बर 8 में आने के वक्त मन्दा असर देंगे। जब खाना नम्बर 8 और 11 बाहम दुश्मन हो तो नम्बर 11 के ग्रह की मुताल्लिका चीज़ टेवे वाले के किसी काम न आयेगी बल्कि ऐसे सदमे या मन्दी सेहत की निशानी होगी कि जिससे पीठ टूटी हुई या घर के मकान की छत गिरी हुई की तरह मातम का ज़माना होगा। ऐसी हालत में खाना नम्बर 11 के ग्रह की मुताल्लिका चीज़ भी साथ ही उसके दोस्त ग्रह या ऐसे ग्रह की मुताल्लिका चीज़ भी साथ ही ले आवे जो ग्रह के मन्दे असर को नेक कर लेवे। मसलन् सनीचर नम्बर 11 हो तो सनीचर की अशिया के साथ ही केतु की अशिया ले आना मुबारक होगा। यानि अगर मकान बनाओ तो कुत्ता भी साथ रख लो। मशीनें खरीदो तो बच्चे के खिलौने वगैरह भी साथ ही खरीद लाओ। इस तरह सनीचर बुरे असर के बजाये और भला असर देगा। मन्दी हालत में ग्रह मुताल्लिका की कुल मुकर्ररा उम्र की मियाद के बाद नम्बर 11 में बैठे हुये या उसके दोस्त ग्रह की मुताल्लिका चीज़ का उपायो मददगार होगा। बशर्ते पापी ग्रहों से कोई उस वक्त वर्षफल के हिसाब से खाना नम्बर 1 में न हो । अगर कोई पापी नम्बर 1 में ही हो तो खाना नम्बर 9 में आये हुये ग्रह की मुताल्लिका चीज़ के उपायों से नेक असर होगा। अगर खाना नम्बर 9 खाली ही होवे तो बृहस्पत का उपायो मददगार होगा। खाना नम्बर 11 के ग्रहों की बे-एतबारी की हालत या असर इस तरह होगा।
बृहस्पत नेक हालत में, जब तक टेवे वाला खानदान में मुश्तर्का रहे और पिता जि़न्दा हो तो सांप भी सजदा करे। मन्दी हालत में जब पिता से जुदा और चाल चलन का ढीला या मन्दे ग्रहों का कारोबार हो तो मच्छर का मुकाबला न कर सके और कफ़न तक पराया हो ।
सूरज नेक हालत में, जिस कदर धर्मात्मा और सफा खुराक हो तो उसी कदर उत्तम जि़न्दगी और साहिबे परिवार हो। मन्दी हालत में जब सनीचर की खुराक खाता हो तो विधाता खुद अपनी कलम से लावल्दी का हुकम लिख देगा।
चन्द्र नेक हालत में, अगर टेवे में बृहस्पत और केतु उम्दा तो माया और औलाद की माता के बैठे तक भी कोई कमी न होगी। मन्दी हालत में माता के जि़न्दा होते हुये नर औलाद शायद ही माता को देखनी नसीब होगी।
शुक्र नेक हालत में दौलत का भण्डारी जब तक औरत का भाई मौजूद हो या मंगल उम्दा हो। मन्दी हालत में बुद्धू बुज़दिल और हिजड़ा और धन दौलत से दुखिया ही होगा।
मंगल नेक हालत में बृहस्पत के पीछे पीछे कदम पर कदम रखने वाला बहादुर चीते की तरह ज़माने की अन्धेरी रातों को भी उबूर करके अपना शिकार या दिली ख्वाहिश पा लेगा। मन्दी हालत में दुम को आग लगी हुई हालत में लंका से भागते हुये हनुमान जी की तरह समन्दर के पानी की तलाश में होगा।
बुध नेक हालत में, चन्द्र बृहस्पत और सनीचर से मारे हुये यानि माता पिता के हां जन्म लेनेके दिन और दुनिया के गैबी अन्धेरे से निकल कर आंखों के देखने के वक्त से ही दुखिया होने वाले को अपने वक्त में हर तरह और हर हालत में डूबे होने पर पर भी जि़न्दा करके तार देगा। मन्दी हालत में ऐसी खोटी अक्ल का मालिक जो पौधे को जड़ से उखाड़ देवे और खुद भी गिरने वाले दरख़त के नीचे आकर दब मरे।
सनीचर नेक हालत में विधाता की तरफ से लावल्दी लिखे हुक्म को भी दूर करके बच्चे की पैदायश का हुक्म देगा और तमाम दुनिया के ज़हरों और हर तरह के मुखालेफीन के बरखिलाफ अकेला ही हर तरह से पूरी हिफ़ाजत करेगा और धर्म ईमान में सच्चे होने का पूरा सबूत देगा। मन्दी हालत में भरी बेड़ी को मंझदार पहुंचकर बेड़ी का चप्पू सिरहाने रखकर अचानक सो जायेगा और अपनी आल औलाद को ऐसी अधूरी हालत में छोड़कर मरेगा कि उनकी आहों को सुनने वाला शायद ही कोई गृहस्थी मददगार होगा या हो सकेगा।
राहु नेक हालत में इतने मुतकब्बिर और अपनी कमाई पर काबिज़ कि अपने मां बाप से भी कौड़ी पाई तक न लेंगे ताकि उसपर कोई एहसान न हो जावे । खुद कमायेंगे और सोना बनायेंगे मगर अपने जन्म से पहले के मिले हुये सोने को खाक कर दिखायेंगे। न बृहस्पत का लिहाज़ न राहु के जेलखाने का फि़कर मगर खुद ख्वाबी दुनिया में कोह-तूर/नूर पर बैठे खुदा की जियारत कर रहे होंगे। मन्दी हालत में जन्म लेते ही अपनी मियाद से पहले अगर सबसे सांस और जिस्म के खून (खासकर बाप या बाबे के) को संखिया और अफियून से ज़हरीला बरबाद और बन्द न कर दिया तो ऐसे टेवे वाले के जन्म लेने का किसी को पता ही क्या लगेगा। यानि अगर अफीम से मरे या संखिया से चल बसे या हीरा चाट गये कोयला से राख हुये जो कुछ कहो सच मगर वह तमाशा देखने के लिए हर वक्त हाजि़र नाजि़र (जि़न्दा) होगा।
खाना नम्बर 11 को समझने के लिए तमाम इल्म की वाकफ़ी ज़रूरी होगी। सब ग्रहों ने कोशिश की मगर इसे नीच कोई न कर सका। आखीर पर सनीचर खुद बदनामी उतारने के लिए सबके लिए कुंभ, पानी का भरा हुआ घड़ा शगुन के तौर पर ले आया कि अगर चन्द्र से ही मौत का घर ऊँचा हो सकता है तो मेरे भी काम आयेगा। मगर खाना नम्बर 11 सबकी अपनी अपनी आमदन है। इसे कौन नीचा करे ? सबकी किस्मत का मुकाम है। इसलिए कहा जाता है ’’मेरी किस्मत को कौन धो देगा ?’’ सबको अपना अपना हिस्सा मिल ही जाता है और फिर जब यह खाना एक से ग्यारह हो गया है। किस्सा मुखतसर इसी पानी के घड़े के कतरा कतरा पर सबने लड़ना और मरना है। जिसे किस्मत देगी वह ले लेगा। सनीचर ख्वाह अपने घर में इस घड़े को रखे और सबसे होशियार आंख से ही निगरानी क्यों न करे मगर बरताने वाला तो बृहस्पत ही सबका गुरू है। राहु केतु के पैदा किये हुये कारनामों को साथ लेता हुआ खाना नम्बर 11 में जाकर सनीचर दोनो जहान के गुरू के दरबार में खुदा को हाजि़र नाजि़र कहकर फैसला करेगा जिसमें बृहस्पत की रज़ामन्दी ज़रूरी होगी।        

Tuesday, March 25, 2014

माया लाल किताब की

सबसे पहले लाल किताब की रचना करने वाले आलिम पंडित रू प चंद जोशी जी को मेरा सलाम ।
हाथ रेखा को समन्द्र गिनते, नजूमे फल्क का काम हुआ;
इल्म कियाफा जोतिष मिलते, लाल किताब का नाम हुआ।
लाल किताब के इस शेयर पर गौर किया जाये तो पता  चलता है कि इल्म कियाफा और जोतिष के संगम को लाल किताब कहा गया है। अब इल्म क्या है ...........यह सोचने की बात है। किताब उर्दू ज़ुबान में लिखी गर्इ मगर इस पर लेखक का नाम नही है। मेरे पूछने पर पंडित जी ने बताया था ..........पता नही कौन मुझे लिखाता रहा। किताब का ही एक और शेयर है........
क्या हुआ था क्या होगा, शौक दिल में आ गया;
इल्मे जोतिष हस्त रेखा, हाल सब फरमा गया।
कौन फरमा गया...........ऐसा समझा जाता है कि किसी गैबी ताकत ने लाल किताब पंडित जी को लिखवार्इ थी। ऐसी बेमिसाल किताब लिखना आम आदमी के बस की बात नही। यकीनन पंडित जी खुदा रसीदा इन्सान थे, जिनको खास मकसद के लिये चुना गया। मेरी खुशनसीबी कि मुझे लाल किताब खुद पंडित जी ने बख्शी थी। मैं जिसे उनका आर्शीवाद समझता हूं। मुझे कर्इ बार उनसे मिलने का मौका मिला । एक और शेयर है.......
लाल किताब है जोतिष निराली, जो किस्मत सोर्इ को जगा देती है;
फरमान पक्का देके बात आखिरी, दो लफ्ज़ी से ज़हमत हटा देती है।
इसमें कोर्इ शक नही कि यह एक निराली किताब है । जोतिष की कोर्इ दूसरी किताब शायद ही लाल किताब का मुकाबला कर सके। किताब को पढ़ने समझने के लिये उर्दू ज़ुबान पर पकड़ होना ज़रूरी है। जहमत को हटाने के लिए किताब में जो उपाऐ बताये गये हैं, उनका कोर्इ जवाब नही। मगर कुछ अक्ल के अन्धों ने इन उपाओं को टोने टोटके कह डाला । भला हो उन लोगों का जिन्होने लाल किताब के नाम पर उल्टी सीधी नकली किताबें हिन्दी में छाप डाली।
अब तो नकली किताब का नकली किताब का बोलबाला है क्योंकि यह असानी से मिल जाती है। जबकि असली किताब ज़रा मुशिकल से मिलती है । फिर आजकल की नस्ल को उर्दू नही आता। लिहाज़ा मुशिकल हो गर्इ। मगर आदमी वही जो मुशिकलों को पार करके अपनी मंजि़ल तक जा पहुंचे। इसलिए बेहतर होगा कि उर्दू सीखा जाये और असली किताब हासिल की जाये। वैसे भी जो किताब जिस ज़ुबान में लिखी जाये, उसका लुत्फ उसी ज़ुबान में होता है। कल को जब जोतिष का इतिहास लिखा जायेगा तो य कीनन लाल किताब का नाम बाकी सब किताबों के ऊपर लिखा जायेगा।

Monday, February 3, 2014

आम आदमी

दिसम्बर 2013 को देहली में हुए चुनाव में कमाल हो गया । एक आम आदमी की आम पार्टी वजूद में आई, जिसके बारे किसी ने सोचा भी न था । साबका मुख्यमंत्री ने कहा था.....कौन है यह....पार्टी क्या है । मगर इसी कौन ने न सिर्फ उनकी सीट छीन ली बलिक उनकी कुर्सी पर भी कब्ज़ा कर लिया जिस पर वह लम्बे अर्से से विराजमान थी। आम आदमी की आम पार्टी ने मुल्क की खास पार्टी को धोबी पटका दे दिया। आप आम आदमी को जानते हैं। जी हां उसका नाम है अरविन्द केजरीवाल जिसने मुल्क की सियासत को नर्इ दिशा दी है। यकीनन आम आदमी की कुण्डली भी खास ही होगी। आम आदमी और साबका मुख्यमन्त्री की कुण्डलियां इस तरह बताई जाती हैं। समझदार के लिए इशारा ही काफी।

                                                   अरविन्द केजरीवाल                                                           
                                            जन्म:16-8-1968                                                    

         

शीला दीक्षित 
जन्म: 13-3-1938
                              

दोनों कुण्डलियों को गौर से देखा जाये तो नतीजा यही निकलता है कि अरविन्द जी की कुण्डली ज्यादा मज़बूत है जिसने वक्त आने पर अपना असर दिखाया। शीला जी की कुण्डली में हलका सा ग्रहण है। जब ग्रहण लगता है तो रोशनी कम हो जाती है। फिर ग्रह चाल का भी तकाज़ा होता है। ऐसे में उनके हाथ से सत्ता निकल गई।

अरविन्द जी की कुण्डली में चन्द्र खाना नं0 1 जब तक मां का आर्शीवाद लेता रहेगा, उम्र, रिज़क और दौलत की कभी कमी न होगी। मंगल खाना नं0 3 चिडि़या घर का शेर जिसे अपनी शेरी का पता नही, लेकिन जब पता चल जायेगा तो किसी से नही डरेगा। बृहस्पत सूरज शुक्र बुध मुश्तर्का खाना नं0 4 लाखो की गिनती में एक नामावर शख्स, राजा इन्द्र की तरह हकूमत का मालिक। औलाद के लिए धन दौलत जमा कर जावे। जहां दिल और आंख मिले मिलाते जाना । राजयोग यानि सरकार के घर से हर तरह की मदद और बरकत। केतु खाना नं0 5 औलाद और धन का साथ। शनि खाना नं0 12 सिर पर शेष नाग का साया हिफाज़त करने वाला। राहु खाना नं0 11 मन्दा, 21 साला उम्र तक बाप पर फिर आप पर भारी।

खुलासा यह कि राहु को छोड़कर कुण्डली के सब ग्रह अच्छी हालत के हैं। नतीजा अच्छी पढ़ाई लिखाई, आला सरकारी नौकरी, ज्योतिष में विश्वास, घर गृहस्थी और औलाद, इज्ज़त दौलत और शोहरत का साथ। मगर राहु का असर शक्की ही होगा। 42 ता 45 साला तक राहु परेशानी या नुक्सान की वजह या रास्ते का रोड़ा बने। बाद में भी यह शरारत कर सकता है । लिहाज़ा राहु का उपाय करते जाना मददगार होगा।

अरविन्द जी की जि़न्दगी में 42 से 45 साला उम्र के दरमियान एक नया मोड़ आया। आला सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर वह आम आदमी बन गये।  फिर आम आदमी ने आम पार्टी बनाकर पहली बार देहली के चुनाव में हिस्सा लिया और सबको हैरान कर दिया। खास पार्टी को भी आम पार्टी की मदद पर आना पड़ा ताकि आम आदमी सरकार बना सके । इस तरह वह देहली के मुख्यमन्त्री बन गये। आम लोगों में उनकी इज्ज़त और शोहरत बढ़ने लगी। अब दूसरे सूबों के लोग उनकी तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देखने लगे हैं। सियासी पार्टियों में भी हलचल शुरू हो गर्इ है। अरविन्द जी की कुण्डली की मज़बूती को देखते हुये ऐसा लगता है कि मुस्तकबिल में कोई बड़ी कुर्सी उनका इन्तज़ार कर रही है। सलाम आम आदमी को मेरा भी सलाम।

Monday, January 6, 2014

लाल किताब-2

जुमला हकूक महफूज़
 बिमारी का बगैर दवाई  भी इलाज़ है, मगर मौत का कोई इलाज  नही।
 दुनियावी हिसाब किताब है, कोई दावा-ए-खुदाई नही ।
 अस्ट्रोलोजी बेसड आन पामिस्ट्री (अंग्रेज़ी में) इल्मे सामुदि्रक की बुनियाद पर चलने वाले ज्योतिष की मदद से हाथ रेखा के ज़रिए दुरूस्त की  हुई जन्म कुण्डली से जि़न्दगी के हालात देखने के लिए लाल किताब सन 1952 प्रिन्टर व पबिलशर शर्मा गिरधारी लाल साकन फरवाला डाकखाना नूरमहल, जि़ला जालन्धर नरेन्द्र प्रैस न्यू देहली जी हां, यह इबारत लाल किताब के पहले सफे पर उर्दू में लिखी हुई  है।
किताब पर कीमत का कोई  जि़क्र नही मगर अंग्रेज़ी में फार प्राइवेट सरकुलेशन लिखा हुआ है।
ज़ाहिर है कि गिनती की किताबें छपी जो आज कुछ लोगों के पास महफूज़ हैं। किताबों का पूरा सैट तो किसी किसी के पास होगा। कुछ घरों में लाल किताब बतौर शो पीस ही पड़ी है। क्योंकि वहां न तो किसी को उर्दू आता है और न ही किसी को ज्योतिष में शौक है।

शुरू  शुरू में कुछ लोगों ने पैसे की खातिर लाल किताब की फोटो कापियां बनवाकर बेचीं। इससे खास फायदा न हुआ क्योंकि  उर्दू जानने वाले लोग बहुत कम थे और जो हैं वो भी वक्त के साथ साथ खतम हो रहे हैं। पुरानी बात है एक सज्जन ने मुझसे लाल किताब मांगी थी। वह इसका हिन्दी में बदलाव करवाना चाहता था। मैने मुआफ़ी मांगते हुये उसको फोटो कापी के बारे में बताया। खैर वह फोटो कापी खरीद लाया । फिर उसने एक बूढ़े और एक लड़के को काम पर लगा दिया। यानि बूढ़ा उर्दू पढ़ने लगा और लड़का हिन्दी में लिखने लगा। कुछ महीने बाद हिन्दी में लिखे हुये कुछ कागज़ मुझे दिखाये गये। जब मैने गलितयों के बारे बताया तो उस सज्जन का मन इतना खराब हुआ कि उसने आगे का काम रूकवा दिया। खर्चा भी हुआ पर बात फिर भी न बनी। दरअसल बूढ़े को ज्योतिष नही आता था और लड़के को ज्योतिष और उर्दू दोनो नही आते थे। यही वजह रही कि गल् ती पर गल्ती होती गर्इ।

 फिर किसी ने लाल किताब का हिन्दी में उल्टा सीधा तर्जमा करके छपवा दिया। इससे उसको तो फायदा हुआ होगा मगर लाल किताब की मिटटी खराब हो गर्इ। खैर उस सज्जन ने नकली किताब खरीद ली । वह कुछ महीनों में किताब का माहिर बन बैठा और बड़े बड़े दावे करने लगा। फिर और भी नकली किताबें बाज़ार में आ गर्इ। हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर नकली किताब तैयार करने कराने वालों को उर्दू नही आता। 

आजकल हर महीने किसी न किसी शहर ज्योतिष सम्मेलन होता रहता है। उनमें ज्योतिषी भाई  बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। नकली किताबों वाले अपनी काबालियत की ढीगें मारते हैं। कई बार तो आपस में गल्त बहस करते हैं । जिसे सुनकर हंसी आती है। फिर पराशरी वालों को भी लाल किताब पर हंसने का मौका मिल जाता है। ऐसा नकली किताबों की वजह से होता है। चलो बातें तो बहुत हो गर्इं। अब सवाल यह है कि मसला कैसे हल किया जाये। पहला तरीका........उर्दू सीखा जाये। लाल किताब हासिल की जाये। अगर न मिले तो उसकी फोटो कापी ले ली जाये। उसको पढ़ा और समझा जाये। फिर लाल किताब की बात की जाये। कुछ लोगों ने ऐसा किया है। दूसरा तरीका........कोई  ऐसा आदमी जिसे उर्दू आता हो और लाल किताब को भी समझता हो, वह किताब को हुबहू हिन्दुस्तानी में लिखवा दे तो बात बन जाये। अब पता नही यह कब हो, हो या न हो। दोनो ही तरीकों में वक्त और मेहनत की ज़रूरत है। मगर वक्त की कमी है और मेहनत भी कौन करे । तो फिर क्या करें ? दोनो तरफ मुशिकल है। अब कौन सिर खपार्इ करे। नकली किताब ही चलेगी। ज्यादातर लोग नकली किताब ही तो पढ़ते हैं। वैसे भी अपने मुल्क में नकल से काम चलता है। असली किताब न चल्ले, नकली किताब बल्ले बल्ले।