Thursday, January 28, 2010

ग्रहों की पंचायत

आम तौर पर कुण्डली में दो या तीन से ज्यादा ग्रह मुश्तर्का (इकट्ठे) कम ही नज़र आते हैं । जब कभी पांच ग्रह कुण्डली में मुश्तर्का किसी खाने में बैठ जायें तो उसको पंचायत कहा गया है । ऐसा आदमी अगर मामूली परिवार में पैदा हुआ तो भी गैर मामूली हैसियत का मालिक बन गया। यकीनन कुण्डंली में पंचायत दिलचस्पी की वजह होगी । लाल किताब के मुताबिक (अनुसार) पंचायत का फलादेश इस तरह है ।
सबसे उत्ताम पंचायत वह है जिसमें बुध शामिल न हो मगर राहु या केतु में से एक ज़रूर शामिल हो ।

1. नर ग्रह, स्त्री ग्रह साथ में पापी ग्रह (सिवाये बुध) मुश्तर्का की पंचायत हो तो किस्मत की धनी, हुक्मरान (राज करने वाला) साहबे औलाद दर औलाद (बेटे का आगे बेटा) दौलत व ग्रहस्थ का सुख सागर उम्दा (बढ़िया) व लम्बा और उम्र लम्बी होगी। खुद ख्वाह (चाहे) अक्ल का अन्धा व मिट्टी का माधो ही क्यों न हो ।

2. बुहस्पति सूरज शुक्र बुध सनीचर (शनि) मुश्तका पंचायत हो तो:-
(क) खाना नंबर 1 से 6 में उत्ताम फल नेक असर होगा।
(ख) खाना नंबर 7 से 12 में ऊपर का नंबर (क) का असर मगर खुद साख्ता (अपने बल पर ) अमीर होगा और डरते डरते दरिया पार कर जाने वाले तैराक की तरह दुनिया मे आसूदा (बढ़िया) हाल होगा।

3. पंचायत (कोई भी पांच ग्रह) का असर हर हालत में उत्ताम और नेक ही होगा। अगर ऐसा प्राणी पांचो ही (कुल जमाने के) ऐब का मालिक हो जावे तो भी औरों से उत्ताम व उम्दा होगा।
अगर पंचायत के ग्रहों में कोई भी पापी (राहु केतु सनीचर) शामिल न हो और वह प्र्राणी खुद भी पाप न करने वाला हो तो, ऐसी पंचायत का कोई फायदा न होगा। मतलब यह कि या तो पांच ग्रहों में पापी ज़रूर हो या वह प्राणी खुद शरारती और पापी हो तो पंचायत के ग्रह उत्ताम फल देंगे। वर्ना उसकी आंखो के सामने उसका घर कई दफा (बार) लुटता होंगा। धर्मी रहते हुये पापी ग्रहों की अशिया (चीज़ें) लोगों को मुफ्त तक्सीम (बांटना) करना मुबारक (शुभ) फल पैदा करेगा।
मसलन् (जैसे) राहु के मतल्लका (संम्बंधित) अशिया जौं (अनाज) की बनी हुई चीज़ें, नारियल की खैरात (दान) । केतु के मतल्लका अशिया खटाई की चीज़ें । ओर सनीचर यानि बादाम, शराब, सिगरेट, हुक्का नोशी या नशे की चीज़ें ।
असल ज़िन्दगी में देखें तो मरहूम (स्वर्गीय) राजीव गांधी जी की कुण्डली पंचायत की एक बेहतर मिसाल है । इस कुण्डली में पांच ग्रह खाना नंबर 1 में बैठे हैं । यह खाना तख्ते बादशाही है । यहां बृहस्पति-सूरज शाही धन, राजयोग, मौत अचानक; बुहस्पति-चन्द्र दबा हुआ धन जो काम आवे; सूरज-बुध सरकारी धन या नौकरी; शुक्र-बुध अर्ध सरकारी नौकरी और शुक्र का पतंग यानि प्रेम विवाह। मंगल खाना नंबर 2 खुद बड़ा भाई ।
राजीव गांधी जी का जन्म जिस परिवार में हुआ वह किसी राज परिवार से कम नही। बुध उड़ान तो बृहस्पति हवा, लिहाज़ा शुरू में उन्होने सरकारी हवाई जहाज़ कम्पनी में पायलट की नौकरी की। शुक्र की वजह से प्रेम विवाह हुआ । माता (चन्द्र) की वजह से सयासत (राजनीति) में आये और प्रधानमन्त्री बने। सन् 1991 में लोकसभा चुनाव के दौरान जब उनकी अचानक मौत हुई तो उनको 47वां साल चल रहा था। इस साल का वर्षफल लाल किताब के हिसाब से बनाया गया।


1. केन्द्र यानि खाना नम्बर 1,4,7,10 खाली । किस्मत ने साथ छोड़ दिया।
2. पंचायत मौत के घर खाना नम्बर 8 में मंदी।
3. मंगल खाना नम्बर 6 में मन्दा और खाना नम्बर 3 में पापी राहु।
फरमान नंबर 8 के मुताबिक जब खाना नंबर 3 में पापी बैठे हो और 8 व 6 भी मन्दे हुये हों तो, अगर मौत नहीं तो बहाना मौत ज़रूर खड़ा कर देगें । खाना नंबर 3 इस दुनिया से कूच के वक्त राहे रवानगी यानि दुनिया से चले जाने का रास्ता। यहां तो कही बहाने खड़े हो गए और ऐसी सूरते हाल में फरमान नं. 17 के मुताबिक नक्कारा कूच बज उठा। नतीजा राजीव गांधी जी की बम धमाके में मौत हो गई और उनके फिर प्रधानमन्त्री बनने की पशीनगोई (भविष्यवाणी) भी गलत साबित हुई। काश समय पर मन्दे ग्रहों का उपाये किया होता । मगर ऐसा न हुआ क्योंकि
'' समय करे, नर क्या करे, समय बड़ा बलवान ।
असर ग्रह सब पर होगा; परिंदा, पशु,इंसान । "

Saturday, January 23, 2010

कुछ यादें कुछ बातें

लाल किताब की रचना करने वाले आलिम (विद्वान) पण्डित श्री रूप चन्द जोशी जी फौज में  Assistant Accounts अफसर थे। मुझे उनसे मेरे अंकल ने मिलवाया था। वह फौज में कर्नल थे और पण्डित जी से वाकिफ (परिचित) थे। पहली बार पण्डित जी से मैं फरवरी 1975 में उनके गांव फरवाला, तहसील नूरमहल , ज़िला जालन्धर में मिला । अंकल ने मेरा टेवा पण्डित जी के आगे रखा तो उन्होने पूछा, कर्नल साहिब यह लड़का कौन है ? अंकल ने बताया कि मेरा भतीजा है । पण्डित जी ने एक कागज़ पर 12 खाने वाली मोहर से तीन चार ठप्पे लगाये। एक में मेरे जन्म के ग्रह भर दिये और जन्म तारीख लिख ली । फिर टेवा एक तरफ रख दिया और अपना चार्ट देखकर बाकी ठप्पों में अगले पिछले सालों के वर्षफल के ग्रह भर दिये। फिर वो मेरे बारे में ऐसे बताने लगे जैसे मुझे पहले से ही जानते हो । मुझे भी हैरानी हुई । आखिर में वह बोले, तुम्हे ज्योतिष में भी दिलचस्पी है। मैने बताया कि मुझे पामिस्टरी का शौक है । वह बोले, ''एक ही बात है । कौन सी किताब पढते हो ?'' मैने बताया कि कीरो की । वो कहने लगे, ''कीरो की किताब तो अच्छी है मगर उसमें उपाय नही है । उपाय लाल किताब में है I'' मैने कहा कि यह किताब मुझे बख्श दीजिए। उन्होने मुझे छोटी लाल किताब (सन् 1939 वाली) दी और बड़ी किताब बाद में देने की बात कही। बाद में अंकल ने मुझे बताया कि पण्डित जी इतनी बातें हर किसी से नही करते और न ही हर कोई उनसे मिल सकता है।
दूसरी बार पण्डित जी से मैं जून 1975 में अंकल को साथ लेकर मिला। एक सज्जन ओर भी वहां बैठे थे। उन्होने प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी जी की बात शुरू की । इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुखालिफ (विरोधी)फैसले की वजह से उन दिनों अखबारों में उनका काफी चर्चा था। पण्डित जी ने इन्दिरा गांधी जी का जन्म लग्न और वर्षफल दिखाते हुए कहा, '' इसे कुछ नही होगा और बनी रहेगी। परमात्मा इसकी मदद पर है । '' कुछ दिन बाद ऐसा ही हुआ। इन्दिरा जी ने इस्तीफा (त्याग पत्र) देने के बजाय ऐमरजैंसी लागू कर दी और फिर जो हुआ वो सब जानते हैं ।
तीसरी बार पण्डित जी से मैं नवम्बर 1975 में मिला । अंकल ने मौका देखकर इन्दिरा जी की बात शुरू की । पण्डित जी ने बातों-बातों में बताया कि दिल्ली का एक पत्रकार बाबू जी का टेवा लेकर आया था। वह चाहता था कि मैं लाल कलम से लिख दूं कि वह प्रधानमन्त्री बनेंगे। आगे जो कुछ उन्होने बताया वह काफी दिलचस्प था। वापसी पर अंकल ने बताया कि पंण्डित जी मैं कोई गैबी (जो नज़र न आये) ताकत है । उनका लाल कलम से लिखा हुआ पूरा हो जाता है। मेरा भी पंण्डित जी में विश्वास कायम हो गया था। लिहाज़ा उनसे मिलने का सिलसिला भी कुछ साल जारी रहा । उनकी बातें कमाल की थी। जी चाहता था वो सुनाते जाएें और हम सुनते जाऐं । मुलाकातों के दौरान मैने देखा कि पंण्डित जी कई बार बड़ी लाल किताब (सन् 1952 वाली) से पढ़कर बताते थे। मैने एक बार पूछ ही लिया कि पंण्डित जी जब किताब ही आपने लिखी है तो आप इसे क्यों पढ़ते हैं ? पंण्डित जी बोले, '' मैने लिखी ? पता नहीं कौन मुझे लिखाता रहा।'' मैं सोच में पड़ गया और चुप हो गया। बाद में अंकल ने मुझे बताया कि पंण्डित जी को लाल किताब गैबी ताकत ने लिखवाई थी। मैं समझता हूं कि शायद इसी वजह से किताब पर लेखक का नाम नही है।
एक दिन दफतर में जहां मैं काम करता था, एक बुज़ुर्ग मुझसे आकर मिले । उन्हाने बड़ी लाल किताब मेरे हवाले करते हुए कहा कि पंण्डित जी ने यह किताब तुमको देने के लिए कहा था। इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूं। मैने दिल से उनका शुक्रिया अदा किया । इस तरह बड़ी किताब मुझे मिल गई।
पंण्डित जी से आखिरी बार मैं सन् 1979 में मिला । उनकी सेहत अब साथ छोड़ रही थी। उम्र भी 80 साल के आस पास हो चुकी थी। उन्होने मुझसे पूछा, '' तुम्हे लाल किताब मिल गई है ?'' मैने हां में जवाब दिया । वह बोले, ''अब उसे पढ़ा करो''। मैं समझ गया और वापिस आ गया। इसके कुछ साल बाद सन् 1982 में पंण्डित जी का इन्तकाल हो गया। मगर आज भी वो लाल किताब में ज़िन्दा है और उनकी किताब भी गागर में सागर है। लाल किताब उर्दू में लिखी गई थी और मुझे उर्दू पढ़ना नही आता था। लिहाज़ा मैने उर्दू सीखना शुरू कर दिया। वैसे भी जो किताब जिस भाषा में लिखी जाए उसका मज़ा उसी भाषा में होता है। अनुवाद की हुई किताब में प्राण नही होते। रफता-रफता (धीरे धीरे) मैने उर्दू सीख ही लिया। इसी दौरान बाकी किताबें भी मुझे मिल गई।
आज पंण्डित जी को गुज़रे हुए 27 साल और इन्दिरा जी को गुज़रे 25 साल हो चुके हैं । मगर मुझे यह बातें कल की ही लगती हैं । इन्दिरा जी की कुण्डली का खुलासा दिलचस्पी का सबब होगा।




इन्दिरा जी की कुण्डली में शनि खाना नं0 1, तख्त का मालिक और चन्द्र खाना नं0 7 लक्ष्मी अवतार । सूरज बुध खाना नं0 5 उच्च राजयोग मगर मौत अचानक। बृहस्पति खाना नं0 11 और खाना नं0 3 खाली , शनि का राज्य । मंगल खाना नं0 2, इरादे का पक्का और हकूमत का इच्छुक। शुक्र खाना नं0 6 यानि शुक्र का पतंग, दूसरे लफज़ों मे प्रेम विवाह मगर राहु का साथ मन्दा । वैसे राहु खाना नं0 6 दुश्मनों पर भारी । केतु खाना नं0 12 नर औलाद एक से ज्यादा। कुल मिलाकर एक ताकतवर कुण्डली।

इन्दिरा जी का जन्म जिस अमीर घराने मे हुआ वह किसी राज परिवार से कम नही। शनि का चन्द्र से झगड़ा । लिहाज़ा माता बचपन में गुज़र गई या माता का साथ लम्बा न चला । शुक्र की वजह से मन पसन्द शादी हुई और केतु ने 2 बेटे दिये। मगर राहु की वजह से पति का साथ लम्बा न चला। सूरज, बुध और बृहस्पति की वजह से पहले मन्त्री और फिर 1966 में प्रधानमन्त्री बनी।
सन् 1966 के वर्षफल पर नज़र डालें तो तख्त का शनि फिर तख्त पर यानि खाना नं0 1 में और मंगल खाना नं0 7 में बतौर वज़ीर । बृहस्पति खाना नं0 3 बुध के घर में और सूरज बुध खाना नं0 12 बृहस्पति के घर में , एक खास योग खाना नं0 3 और खाना नं0 12 का । चन्द्र खाना नं0 8, अपना घर खाना नं0 4 खाली और सूरज, शुक्र उम्दा तो उल्टी गंगा होकर तारे । लिहाज़ा ग्रहों ने इन्दिरा जी को प्रधानमन्त्री जी की गद्दी पर बिठा दिया।
1975 में जब हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ फैसला दिया तो ऐसा लगा कि वह अब सत्ता से गई। मगर किस्मत को यह मन्ज़ूर न था । वर्षफल में सूरज, बुध खाना नं0 5 का फिर खाना नं0 5 में और बृहस्पति खाना नं0 9 में, एक मज़बूत योग। मंगल खाना नं0 12, अब पापी ग्रहों की आवाज़ न होगी यानि शनि, राहु , केतु बुरा न करेंगे। चन्द्र अपने घर खाना नं0 4 में नेक और शनि अपने घर खाना नं0 10 में, आपस में टकराव। शनि का फैसला तो खिलाफ था मगर कुछ दिन बाद इन्दिरा जी ने ऐमरजैन्सी लागू कर दी और सत्ता में बनी रही। मुखालिफ आवाजें दबकर रह गई । बस एक ही आवाज़ थी, '' इन्दिरा भारत है और भारत इन्दिरा है'' ।
सन् 1977 में जब चुनाव हुये तो इन्दिरा जी हार गईं । लिहाज़ा सत्ता छोड़नी पड़ी। वर्षफल में शनि खाना नं0 6, मंगल खाना नं0 8 और राहु खाना नं0 10 में सब मन्दे। शनि के सांप ने सूरज बुध के राजयोग को डंक मार दिया। मंगल बद ने दुख दिया और राहु ने फतह को शिकस्त (हार) में बदल दिया। इस दौरान इन्दिरा जी को पुलिस ने हिरासत में भी लिया था। उन्हे ढाई तीन साल बिना सत्ता के रहना पड़ा।

सन् 1980 में जब चुनाव हुआ तो इन्दिरा जी फिर सत्ता में आ गई। वर्षफल में सूरज खाना नं0 8 की वजह से मंगल खाना नं0 4 का असर नेक जो आगे बृहस्पति खाना नं0 10 के लिए मददगार। बृहस्पति शनि के घर और शनि बृहस्पति के घर खाना नं0 9 में एक खास योग। शनि की वजह से अब शुक्र का नेक असर मगर खाना नं0 2 का। सूरज बुध खाना नं0 8 नेक असर क्योंकि खाना नं0 2 खाली। जन्म का राहु फिर खाना नं0 6 मे, दुश्मनों पर भारी। लिहाज़ा इन्दिरा जी फिर प्रधानमन्त्री बन गईं।
सन् 1984 इन्दिरा जी की ज़िन्दगी का आखिरी साल था। वर्षफल में चारो केन्द्र ग्रहों से भर गये । मगर चन्द्र की शनि से और राहु की सूरज से दुश्मनी। मंगल खाना नं0 5 में और खाना नं0 3, 9 खाली, तेरा महबूब ही तेरे जहाज़ों के बेड़े की तबाही का बहाना होगा। मंगल की शेर की दृष्टि से डरकर ग्रह बुरे वक्त में अपनी दृष्टि बदल लेगे। अब खाना नं0 4 का राहु खाना नं0 1 के चन्द्र को और खाना नं0 7 का शनि खाना नं0 10 के सूरज को जबरदस्त टकराव देगा। नतीजा 31 अक्तूबर 1984 को इन्दिरा जी के अपने ही अंगरक्षकों ने गोलियां मारकर मौत की नींद सुला दिया। हस्पताल में डाक्टरों ने उनके मुर्दा जिस्म से 31 गोलियां निकालीं। ऐसा क्यों हुआ ? किसी के पास कोई जवाब नही ।

'' हज़ारों भटकते हैं, लाखों दाना, करोड़ो स्यानें ।
जो खूब करके देखा, आखिर खुदा की बातें खुदा ही जानें'' ।