Tuesday, October 22, 2019

ग्रहस्थी चक्की


             ‘‘आकाश ज़मीन दो पत्थर 7वें, रिज़क अकल की चक्की हो।
               दोनों घुमावें कीली लोहे की, घर आठवें जो होती हो।।’’

लाल किताब के मुताबिक ग्रहस्त की चक्की कुण्डली के खाना नं0 7 में चलती है। चक्की के नीचे वाला पत्थर शुक्र (रिज़क) और ऊपर घूमने वाला पत्थर बुध (अकल) है। चक्की घुमाने वाली लोहे की कीली खाना नं0 8 में होती है। शुक्र बुध मुश्तर्का मुबारक होंगे। वर्ना बुध के बिना शुक्र बेचैन ही होगा।
जन्म अस्थान, जहान का वासी, शुक्र की चीज़े, शादी, जायदाद (मकानात वगैरह), जाहिर दारी, जिस्म की जिल्द, जिस्म के मुसाम, हथेली की हर हालत का हाल, सुभाओ गर्म तर बादी, औरत, लड़की, बहन, बुध की चीजे़, पोती, चेहरे की चमक या रंग, गाय, पिस्तान, स्त्री घर, लड़कियों के रिश्तेदारों के घर, मिट्टी के ज़र्रे, पलस्तर या सफेदी मकान, मकानात का बनना, अण्डों से पैदा होने वाले परिन्दे, रूहानी ताकत मुताल्लका बुध शुक्र, कबीले की पैदाइश व परवरिश, पराई दौलत का मिलना बज़रिया बुध की नाली, नस्ल दर नस्ल व्यापार, गौयाई, कुवते वाह, अन्दुरूनी अकल दुनियावी ताल्लुक में, वक्त जवानी, मैदान दुनिया, जायदाद के लिए साथ लाये खजाने, जनूब मगरिब, दही, रंग सफेद, बुध फूल, शुक्र बीज, शुक्र बुध जैसे हो वैसा ही हाल होगा। यह सहन है खाना नं0 1 का और सेहन का मुंसिफ होगा मंगल। इस खाने मे सनीचर उच्च, सूरज नीच और शुक्र बुध पक्की हालत के ग्रह होंगे। घर का मालिक और किस्मत को जगाने वाला ग्रह शुक्र ही होगा। मर्द की कुण्डली में शुक्र उसकी बीवी और औरत की कुण्डली में शुक्र उसका शौहर होगा। मिसाल के तौर पर कुछ कुण्डलियां दिलचस्पी का सबब होंगी।





कुण्डली नं0 1 राहुल गांधी जी की है। खाना नं0 7 यानि वजीरी घर खाली और उसका मालिक शुक्र खाना नं0 2 में। स्कूल मिस्ट्रैस हर एक की दिलदादा औरत मगर खुद किसी को पसन्द न करे। खाना नं0 1 में दो ग्रह यानि तख्त पर राजे दो मगर वजीर एक भी नहीं। फिर बुध की भी कोई मदद नहीं। अब उम्र 50 साल के आस-पास हो गई है। न ग्रहस्ती चली और न ही सियासत।
कुण्डली नं0 2, फिल्मी अदाकार की बेटी ऐकता कपूर जी की है। खाना नं0 7 खाली और उसका मालिक शुक्र तख्त पर यानि खाना नं0 1 में शक्की। शुक्र का पतंग...उठती जवानी के वक्त खूबसूरती की रंग बिरंगी, दिल फरेब हुस्न की दिलचस्प और दिलरूबा सिफतों की मीठी मीठी ज़ुबान से तारीफ़ करते कराते, सोये हुए मीलों निकल गये। बुध की कोई मदद नहीं। अब उम्र 45 साल के आस-पास हो गई है।
फिल्मी चक्कर तो चल रहा है मगर ग्रहस्ती चक्की न चली।

Sunday, March 3, 2019

बातें लाल किताब की

19वीं सदी में अंग्रेज मुल्क पर काबिज हो गए थे। लिहाजा अंग्रेजी दवा का चलन शुरू हुआ।  देसी हकीमों ने अंग्रेजी दवा की बुराई की। मगर 20वीं सदी में अंग्रेजी दवा की पकड़ मजबूत हो गई और देसी दवा दूसरे दर्जे पर चली गई। आज अंग्रेजी दवा अपनी खूबी की वजह से पहली पसंद बन चुकी है। ठीक इसी तरह 20वीं सदी में लाल किताब वजूद में आई। 21वीं सदी में आते आते लाल किताब अपनी खूबी की वजह से कायम हो गई। आज लाल किताब के नाम पर हिंदी में नकल/नकली किताबें बाजार में धड़ाधड़ बिक रहीं हैं। असली किताब जो उर्दू में लिखी गई थी कम ही नजर आती है। इसकी एक वजह यह है कि आज की पीढ़ी को उर्दू नहीं आता। फिर भी नकल /नकली किताबों से कई लोग रोजी रोटी चला रहे हैं।
जिस तरह अंग्रेजी सिस्टम में सर्जरी होने की वजह से वह देशी सिस्टम पर छा गई , उसी तरह लाल किताब ग्रहों के उपाय की वजह से पराशरी पर छा गई। लिहाजा पराशरी के कई विद्वानों ने लाल किताब को अपना लिया चाहे उनके पास असली किताब नहीं है। तो कुछ लोगों ने पराशरी के साथ लाल किताब के उपाय जोड़ लिए यानि आधा तीतर आधा बटेर न छुआरा न बेर। मगर कुछ आज भी लाल किताब की बुराई कर रहे हैं। यह वह लोग हैं जिन्होंने असली किताब कभी देखी ही नहीं। देख भी लें तो भी क्या है? वह इसे पढ़ ही नहीं सकते क्योंकि उनको उर्दू नहीं आता। बस वह तो बिना वजह लाल किताब में नुक्स निकाल रहे हैं। फिजूल के वीडियो बना कर यू- ट्यूब पर डाल रहे हैं। ऐसी बातों से लाल किताब को कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ ऐसे लोगों पर हँसी जरूर आती है। किताब को तो पढ़ नहीं सकते खामख्वाह नुक्ताचीनी कर रहे हैं।
चंद लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने किताब के लिए उर्दू सीखा। फिर रफ्ता रफ्ता मेहनत करके किताब को पढ़ा समझा और कुछ सीखा। आज कुछ नौजवान लड़के किताब के लिए उर्दू सीख रहे हैं मुझे उनसे बहुत उम्मीद है। आने वाले वक्त में वह लाल किताब को और भी बुलंदी पर लेकर जायेंगे। मेरी दुआऐं उनके साथ हैं। वैसे भी पुराने सिस्टम को नया सिस्टम बदल देता है। आज जोतिश का नया सिस्टम है लाल किताब।