Tuesday, March 25, 2014

माया लाल किताब की

सबसे पहले लाल किताब की रचना करने वाले आलिम पंडित रू प चंद जोशी जी को मेरा सलाम ।
हाथ रेखा को समन्द्र गिनते, नजूमे फल्क का काम हुआ;
इल्म कियाफा जोतिष मिलते, लाल किताब का नाम हुआ।
लाल किताब के इस शेयर पर गौर किया जाये तो पता  चलता है कि इल्म कियाफा और जोतिष के संगम को लाल किताब कहा गया है। अब इल्म क्या है ...........यह सोचने की बात है। किताब उर्दू ज़ुबान में लिखी गर्इ मगर इस पर लेखक का नाम नही है। मेरे पूछने पर पंडित जी ने बताया था ..........पता नही कौन मुझे लिखाता रहा। किताब का ही एक और शेयर है........
क्या हुआ था क्या होगा, शौक दिल में आ गया;
इल्मे जोतिष हस्त रेखा, हाल सब फरमा गया।
कौन फरमा गया...........ऐसा समझा जाता है कि किसी गैबी ताकत ने लाल किताब पंडित जी को लिखवार्इ थी। ऐसी बेमिसाल किताब लिखना आम आदमी के बस की बात नही। यकीनन पंडित जी खुदा रसीदा इन्सान थे, जिनको खास मकसद के लिये चुना गया। मेरी खुशनसीबी कि मुझे लाल किताब खुद पंडित जी ने बख्शी थी। मैं जिसे उनका आर्शीवाद समझता हूं। मुझे कर्इ बार उनसे मिलने का मौका मिला । एक और शेयर है.......
लाल किताब है जोतिष निराली, जो किस्मत सोर्इ को जगा देती है;
फरमान पक्का देके बात आखिरी, दो लफ्ज़ी से ज़हमत हटा देती है।
इसमें कोर्इ शक नही कि यह एक निराली किताब है । जोतिष की कोर्इ दूसरी किताब शायद ही लाल किताब का मुकाबला कर सके। किताब को पढ़ने समझने के लिये उर्दू ज़ुबान पर पकड़ होना ज़रूरी है। जहमत को हटाने के लिए किताब में जो उपाऐ बताये गये हैं, उनका कोर्इ जवाब नही। मगर कुछ अक्ल के अन्धों ने इन उपाओं को टोने टोटके कह डाला । भला हो उन लोगों का जिन्होने लाल किताब के नाम पर उल्टी सीधी नकली किताबें हिन्दी में छाप डाली।
अब तो नकली किताब का नकली किताब का बोलबाला है क्योंकि यह असानी से मिल जाती है। जबकि असली किताब ज़रा मुशिकल से मिलती है । फिर आजकल की नस्ल को उर्दू नही आता। लिहाज़ा मुशिकल हो गर्इ। मगर आदमी वही जो मुशिकलों को पार करके अपनी मंजि़ल तक जा पहुंचे। इसलिए बेहतर होगा कि उर्दू सीखा जाये और असली किताब हासिल की जाये। वैसे भी जो किताब जिस ज़ुबान में लिखी जाये, उसका लुत्फ उसी ज़ुबान में होता है। कल को जब जोतिष का इतिहास लिखा जायेगा तो य कीनन लाल किताब का नाम बाकी सब किताबों के ऊपर लिखा जायेगा।