ग्रहों का खेल भी अजीब है। अगर कुण्डली में ग्रह अच्छे हों तो ज़िन्दगी अच्छी गुज़र जाती है। अगर ग्रह ठीक ठाक हों तो ज़िन्दगी ठीक-ठाक गुज़र जाती है। अगर ग्रह कहीं मन्दे हों तो ज़िन्दगी खाना पूरी ही बनके रह जाती है। ऐसी ही एक कुण्डली पिछले दिनों मेरी नज़र से गुज़री जो इस तरह है।
खाना नम्बर 1 का मन्दा असर खाना नम्बर 6 और 7 पर। खाना नम्बर 10 में चन्द्र ग्रहण और खाना नम्बर 6 में सूरज ग्रहण। बाकी बचा खाना नम्बर 9 का मंगल जिसने मंगल गीत तो गाये पर कुशल मंगल न हुआ। कुल मिलाकर कुण्डली में ज्यादातर ग्रह मन्दे। नतीजा तालीम काम न आई। कामकाज चला नही। शादी हुई पर औलाद न हुई। ग्रह लक्ष्मी तो आई पर धन लक्ष्मी न आई। कई उल्टे सीधे उपाय किये गये पर नतीजा कुछ न निकला।
अब उम्र 40 साल हो गई है। ज़िन्दगी जैसे तैसे गुज़र रही है। अब ग्रहों को तो बदला नही जा सकता। हां ग्रह चाल दुरूस्त करके फायदा लिया जा सकता है। मगर यह दुरूस्ती (असली) लाल किताब के मुताबिक ही होगी। वर्ना कुछ कहना मुनासिब न होगा। ज़िन्दगी ग्रह खेल है, कल भी ग्रह खेल थी, आज भी ग्रह खेल है।
खाना नम्बर 1 का मन्दा असर खाना नम्बर 6 और 7 पर। खाना नम्बर 10 में चन्द्र ग्रहण और खाना नम्बर 6 में सूरज ग्रहण। बाकी बचा खाना नम्बर 9 का मंगल जिसने मंगल गीत तो गाये पर कुशल मंगल न हुआ। कुल मिलाकर कुण्डली में ज्यादातर ग्रह मन्दे। नतीजा तालीम काम न आई। कामकाज चला नही। शादी हुई पर औलाद न हुई। ग्रह लक्ष्मी तो आई पर धन लक्ष्मी न आई। कई उल्टे सीधे उपाय किये गये पर नतीजा कुछ न निकला।
अब उम्र 40 साल हो गई है। ज़िन्दगी जैसे तैसे गुज़र रही है। अब ग्रहों को तो बदला नही जा सकता। हां ग्रह चाल दुरूस्त करके फायदा लिया जा सकता है। मगर यह दुरूस्ती (असली) लाल किताब के मुताबिक ही होगी। वर्ना कुछ कहना मुनासिब न होगा। ज़िन्दगी ग्रह खेल है, कल भी ग्रह खेल थी, आज भी ग्रह खेल है।