Wednesday, December 6, 2017

अपनी बात - 3

ग्रहों से पहले मुझे लकीरों का शौक हुआ था। कालेज में पहला साल ही था जब कीरो की किताब ’’वैन वर यू बौर्न’’  मेरे हाथ लगी। किताब अच्छी लगी इसलिए कई बार पढ़ी। फिर मैने रफ्ता-रफ्ता कीरो की बाकी किताबें भी हासिल की और उनको बार बार पढ़ा। लिहाज़ा मैं इस नतीजे पर पहंुचा कि कीरो (1866-1936) अपने दौर का बहुत बड़ा पामिस्ट था। इस दौरान दुनिया का कोई भी पामिस्ट उसके मुकाबिल खड़ा न हो सका। उसने अपने दौर की कई मशहूर हस्तियों के हाथों के छापे अपनी किताबों में दिये हैं। इसके अलावा उसने अपने हाथ का छापा भी दिया है। मेरे ख्याल में यह बहुत बड़ी बात है। कीरो को ’’फादर आफ पामिस्ट्री ’’ कहना गलत न होगा।
मैंने कीरो को ही अपना रहबर मान लिया और उसकी किताबों से पामिस्ट्री सीखने लगा। कुछ साल बाद मैंने हाथों के छापे भी लेने शुरू कर दिये जो सीखने और समझने में बहुत काम आये। बीस - बाईस साला उम्र में मेरे पास सैंकड़ो छापे जमा हो चुके थे। मेरी पशीनगोई  बाद में अक्सर सही निकलती थी। काम करने का तरीका कीरो वाला ही था। जिसे देखकर लोग दंग रह जाते थे। क्योंकि उस दौर में मैंने किसी भी पामिस्ट को हाथों का छापा लेते नही देखा। मेहनत और लगन का नतीजा निकलने लगा । दूसरे शहरों से छापे डाक के ज़रिए आने लगे। जिनका जवाब मैं ख़त के ज़रिए दिया करता था। फिर दूसरे मुल्कों से भी छापे आने लगे।
एक दिन एक लड़का मुझे हाथ दिखाने आया। मैंने उसके हाथ का छापा ले लिया और उसको कुछ दिन के बाद आने के लिए कहा तांकि मैं छापे का तसल्ली से मुआयना कर सकूं। उसके हाथ में एक अजब सीधी साफ सुथरी रेखा, गुरू के बुर्ज से बुध के बुर्ज तक, मेरे लिए एक नई बात थी। मैंने कीरो की किताबें दोबारा देख डाली मगर उस रेखा का केाई ज़िक्र न मिला। फिर मैंने पामिस्ट्री के कुछ और लेखकों की किताबें भी देखीं मगर उस रेखा की किसी ने भी बात न की थी।  वह अजब रेखा मेरे लिए सवालिया निशान बन के रह गई। मुझे अपने आप में कमी महसूस होने लगी।
उस रेखा ने मुझे परेशान कर दिया। यह कैसी रेखा थी जो पहले किसी ने नही देखी ? कीरो ने भी नही देखी, यह कैसे हो सकता था ? मैने कीरो की किताबें फिर से देखनी शुरू कर दीं। सुबह से शाम बस एक ही काम। एक दिन पढ़ते-पढ़ते रात को मेरी आंख कब लग गई, मुझे पता ही न चला। बादलों की गड़गड़ाहट से अचानक मेरी आंख खुली। आसमानी बिजली की चमक से कमरे में कुछ उजाला हुआ। मैंने देखा कुर्सी पर एक गोरा आदमी बैठा मुस्करा रहा था। चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा। फिर बिजली की चमक गायब हो गई और कमरे में अंधेरा छा गया। यह क्या ? मैंने झट से उठकर कमरे की बिजली जलाई मगर कमरे में  कोई न था। कुर्सी खाली पड़ी थी। मेरे सिरहाने कीरो की किताब खुली पड़ी थी। मेरी नज़र उस पर पड़ी। उस रेखा के बारे तफ़सील से लिखा हुआ मिल गया। मैं हैरान रह गया। समझ नही आया कि यह कोई करिश्मा था या महज़ इत्तफ़ाक। ख़ैर मेरा मसला हल हो गया और दिल को सकून मिल गया।

Friday, November 17, 2017

सूरज-शुक्र-बुध

सूरज से राज दरबार तो शुक्र से घर परिवार। सूरज-बुध और शुक्र-बुध तो दोस्त हैं मगर सूरज-शुक्र दुश्मन हैं। तीनों कुण्डली में मुश्तर्का अमूमन मन्दा फल ही देंगे। अब बुध का खाली चक्कर सूरज की मदद लेकर शुक्र को बरबाद करेगा। गृहस्थी हालत का फैसला केतु की हालत पर होगा। अगर केतु उम्दा हो और बुध को मदद देवे तो कोई मन्दी हालत न होगी। लेकिन अगर केतु मन्दा हो तो औलाद न होगी या देर से होगी। औरत के टेवे में तीनों ग्रह मुश्तर्का किसी भी खाने में होने के वक्त लड़का पैदा होने और मर्द के टेवे में लड़की पैदा होने पर औरत किसी न किसी तरह बरबाद ही होगी। औरत का कोई रिश्ते का भाई औलाद पैदा करने या कराने का बहाना होवे। चाल चलन की बदनामी की तोहमत सच्ची या झूठी ज़रूर होगी।
तीनो ग्रह खाना नम्बर 8 में होने के वक्त अगर शादी बुध की उम्र में हो तो तीन साल के अन्दर-अन्दर औरत की मौत दिन के वक्त बरसरे बाज़ार हादसा में होगी। तीनों खाना नम्बर 3 और सनीश्चर खाना नम्बर 12 के वक्त मकान की तह ज़मीन में बादाम दबा देना, औलाद की पैदायश में बरकत देगा। तीनो खाना नम्बर 9 के वक्त फक़ीर को रोटी देना मददगार होगी। तीनों खाना नम्बर 10 के वक्त साली का रिश्ता अपने ही परिवार मेें होना गैर मुबारक होगा।
आमतौर पर हाथ में खालिस चांदी का छल्ला निहायत मददगार होगा। मन्दी हालत की निशानी घर में निवार के गोल किये हुए बण्डल मुद्दत से बन्द पड़ी होगी, जिसकी मौजूदगी तीनों ग्रहों का मन्दा फल होने का आम सबूत होगा। इसको इस्तेमाल कर लेना या हटा देना ही बेहतर होगा। बवक्त शादी लड़की का दान करने के ठीक बाद तांबे की गागर सालम मूंग से भरकर, जिस तरह लड़की का दान दिया गया, उसी तरह तांबे की गागर का संकल्प कर दिया जाये और बाद में उसे दिन के वक्त किसी नदी या दरिया में बहा दिया जावे। ऐसी ग्रह चाल के वक्त चाहे किसी भी घर में हो, यह उपाय मददगार होगा। सूरज-शुक्र-बुध मुश्तर्का को समझने के लिए चन्द मिसालें मददगार होंगी।



पहली कुण्डली मंे तीनो ग्रह खाना नम्बर 12 में जहां बुध ज़हरीला है। काम काज के लिए विदेश गये तो औरत ने साथ छोड़ दिया। वापिस आकर घर में गोले तलाश किये गये मगर न मिले। दो साल बाद अचानक गोले मिल गये और हटा दिये गये।  अब दूसरी शादी की तैयारी हो रही है। दूसरी कुण्डली में तीनों ग्रह खाना नम्बर 10 में है। शादी हो गई मगर नर औलाद पैदा न हुई और न ही कोई उम्मीद है। बेटियां दो हो गईं। काम काज भी ठीक नही। 




तीसरी कुण्डली में तीनों ग्रह खाना नम्बर 5 में है। शादी हो गई और औलाद का कोई अता पता नही है। बस उम्मीद पर वक्त कट रहा है। चैथी कुण्डली एक अमीर कारोबारी आदमी विजय माल्या की है। तीनो ग्रह खाना नम्बर 11 में है। पहली शादी से एक औलाद हुई और फिर तलाक हो गया। दूसरी शादी एक बेवा से कर ली मगर रंगीनिया बढ़ती गई। कामकाज भी चैपट हो गया। अदालत ने उनके खिलाफ वारंट गिरफ्तारी जारी कर दिया। वह भी इंग्लैण्ड भाग गये। अब अदालत ने उनको पी0ओ0 (भगौड़ा) करार दे दिया है।
   




पांचवी कुण्डली फिल्मी अदाकार दिलीप कुमार की है। शादी हुई भी तो बुढापे में, जिससे एक मुर्दा औलाद पैदा हुई। कुछ साल बाद दूसरी शादी की मगर जल्द ही तलाक हो गया। अब औलाद की क्या उम्मीद होगी। काफी बूढ़े हो गये हैं। छट्टी कुण्डली टाटा ग्रुप के रतन टाटा जी की है। तीनो ग्रह खाना न. 1 में और खाना न. 7 खाली। इनकी शादी नहीं हुई शायद। बच गये।


 





  सातवीं कुण्डली अपने दौर के सुपर स्टार राजेश खन्ना की है जिन्होने 1970 के आस पास फिल्मी दुनिया में तहलका मचा दिया था। तीनों ग्रह खाना न. 7 में। इनकी शादी बाबी यानि डिम्पल से हुई । दो बेटिओं के जन्म के बाद बुध ने सूरज की मदद से शुक्र को खराब कर दिया। लिहाज़ा बाबी छोड़ कर चली गई। फिर कैरियर भी खत्म हो गया। आसमान से ज़मीन पर आ गिरे। ’’ज़माने ने मारे जवां कैसे कैसे, ज़मीं खा गई आसमां कैसे कैसे ’’।
आठवीं कुण्डली एक जाने माने ज्योतिषी की है। शादी हुई, औलाद भी हुई मगर औरत का साथ लम्बा न चला। 15-16 साल हो गये दूसरी औरत की तलाश आज भी जारी है। उपाय कर लेना ही बेहतर होगा। शायद कोई बात बन ही जाये। शादी का लड्डू सब खाते हैं। कई बार लड्डू मीठा नही निकलता। समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफी।


Wednesday, August 23, 2017

प्रियंका

कुछ लोगों का कहना है कि कांग्रेस पार्टी ने मुल्क को आज़ादी दिलवाई थी। आज़ादी के बाद कांगे्रस ने मुल्क पर लम्बे अर्से तक हकूमत की और एक ही परिवार के तीन वज़ीर-ए-आज़़म दिये। इसी परिवार के राहुल गांधी को कांग्रेस में अगले वज़ीर-ए-आज़़म के तौर पर देखा और सन् 2014 में लोकसभा का चुनाव उसकी कियादत मंे लड़ा। मुल्क पर कांग्रेस की पकड़ कुछ तो पहले ही ढीली पड़ गई थी बाकी कमी लोकसभा के इन्तख़ाब ने पूरी कर दी। पार्टी की गिनती इतनी कम हो गई कि उसको मुख़ालिफ पार्टी का दर्जा भी न मिला तब राहुल गांधी की उम्र 44 साल थी और चुनाव में सीटें भी 44 मिलीं। कांग्रेस का इतना बुरा हाल पहले कभी न हुआ था। कुछ कांग्रेसी लीडरों ने गांधी परिवार की दूसरी सदस्य, राहुल की बहन प्रियंका को सियासत में लाने की बात की तांकि कांग्रेस की गिरती साख को बचाया जा सके। इस साल 5 सूबाई सरकार के इन्तख़ाब में भी कांग्र्रेस को काफी धक्का लगा। पार्टी केवल एक सूबे में ही सरकार बना पाई।
लिहाज़ा प्रियंका की मांग फिर कांग्रेस पार्टी में होने लगी। राहुल गांधी की कुण्डली पर तो पहले बात हो ही चुकी है। अब सवाल यह है कि अगर प्रियंका सियासत में आ जाये तो क्या कांग्रेस को फिर से जीवन मिल पायेगा ? प्रियंका की कुण्डली इस तरह बताई जाती है:-


राहु केतु चन्द्र और शनि का खास योग। बृहस्पत सूरज बुध खाना नम्बर 7, शुक्र खाना नम्बर 9 और खाना नम्बर 1 खाली। किस्मत का हाल झूले की तरह ऊपर नीचे होता रहे। मां वक्त से पहले बेवा या दवाई, डाक्टर, हस्पताल से ताल्लुक बने। सुना है मां बिमार रहती है। अगर यह कुण्डली सही है तो प्रियंका को अपने घर परिवार के बारे सोचना चाहिए। मुल्क का ख्याल रखने के लिए और कई लोग मौजूद हैं। समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफ़ी।

Wednesday, July 5, 2017

ग्रह चाल

अक्सर ज़िन्दगी में अजीब वाक्यात हो जाते हैं। कई बार काम करने का मौका ही नही मिलता। अगर मौका मिल जाये तो कामयाबी नही मिलती। कई बार तो कामयाबी हाथ से फिसल जाती है यानि मिलकर भी नही मिलती। ऐसे लोगों को कीरो ने चिल्ड्रन आफ फेट भी कहा है। ऐसी कुछ मिसालें दिलचस्पी का सबब होंगी।
आज से लगभग 13 साल पहले जब लोक सभा के चुनाव हुये तो लगता था कि कांग्रेस पार्टी की नेता सोनिया गांधी जी मुल्क की वज़ीर-ए-आज़म बनेंगी। सरकार बनाने के लिए जब वह राष्ट्रपति से मिली तो उनके सचिव ने सोनिया गांधी जी के नाम का पत्र राष्ट्रपति के आगे रखा। लेकिन राष्ट्रपति ने उसको मनमोहन सिंह जी के नाम का पत्र लाने के लिए कहा। इस तरह सोनिया गांधी जी के बजाये मनमोहन सिंह जी वज़ीर-ए-आज़म बन गये जिनके बारे किसी ने सोचा भी न था। उनको दूसरी बारी भी मिली। फिर जब तीन साल पहले लोकसभा के चुनाव हुये तो कांग्रेस ने राहुल गांधी को आगे किया मगर नतीजा मन्दा ही निकला। कांग्र्रेस पार्टी की गिनती लोकसभा में बहुत कम हो गई। इस साल जब उत्तरप्रदेश में चुनाव हुये तो भी राहुल गांधी कुछ न कर सके। कांग्रेस पार्टी बस सिमट कर रह गई।
तामिलनाडू में तो अजब खेल हुआ। अन्ना डी.एम.के. पार्टी की नेता ससीकला सूबे की वज़ीर-ए-आला बनती बनती जेल में पहंुच गई। और भी कई मिसाले हैं जहां सोचा था क्या, क्या हो गया। जैसे एल.के.अडवानी, सुषमा स्वराज, किरण बेदी वगैरह-वगैरह।
अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है ? इनकी कुण्डलियों पर नज़र डालें तो कुछ पता चलता है। सोनिया गांधी जी की कुण्डली में ग्रहण है। राहुल गांधी की कुण्डली में बुध मन्दा ज़हर से भरा हुआ है। ससीकला जी की कुण्डली में भी बुध बहुत मन्दा है। एल.के.अडवानी जी को वज़ीर-ए-आज़म का सपना भी मन्दे बुध ने पूरा न होने दिया। सुषमा स्वराज जी को भी ग्रहण की वजह से धक्का लगा। किरण बेदी जी के साथ भी बुध ने ड्रामा किया। ग्रहो पर नज़रसानी करते हुये कहा जा सकता है कि मन्दा बुध या ग्रहण अक्सर ज़िन्दगी की बाज़ी ही पलट देता है।  मौका निकल जाता है, कामयाबी फिसल जाती है। 

Thursday, May 11, 2017

आरती-2

चार साल बाद दिसम्बर 2016 को जालन्धर ज्योतिष सम्मेलन में आरती से फिर मुलाकात हो गई। अब उसकी उम्र 38 साल हो गई थी। चहेरे पर पहले वाली चमक न थी। पहले वो तरक्की के बारे पूछा करती थी । अब उसने शादी के बारे में पूछा। यानि जब शादी की उम्र थी तो कैरियर का सोचती रही। अब उम्र निकल गई तो शादी के बारे सोचने लगी। नतीजा न कैरियर में कुछ खास हुआ  और न ही शादी हुई। हालांकि वह खुद भी ज्योतिष में दिलचस्पी रखती है और ज्योतिष सम्मेलनों में उठक बैठक भी करती है। मगर अपनी ग्रहचाल को समझ न पाई। ज़िन्दगी बस गुज़र हो रही है। आरती की कुण्डली शायद आपको याद हो।

     जन्मः 7-7-1978





सूरज की उम्र शुरू हुई तो उम्मीदों ने जन्म लिया। चन्द्र की उम्र आई तो उम्मीदें परवान चढ़ने लगी। शुक्र ने और हवा दे दी। बुध की उम्र में उम्मीदें बिखरने लगी। शनि की उम्र आई तो सब मन्सूबांे पर पानी फिर गया। एक खूबसूरत और पढ़ी लिखी लड़की तन्हा हो कर रह गई। ’’ मैंने चांद और सितारों की तमन्ना की थी.......। ’’ किस्मत की कहानी ग्रहों की ज़ुबानी। तफसील के लिए पहला मज़मून देखें। समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफ़ी। 

Tuesday, April 11, 2017

ग्रह खेल-3

ज़िन्दगी इतफ़ाक है ....... ज़िन्दगी ग्रह खेल है, कल भी ग्रह खेल थी, आज भी ग्रह खेल है। यानि ग्रह खेल के मुताबिक ही ज़िन्दगी चलती है। तामिलनाडू की साबका वज़ीर-ए-आला अम्मा (जय ललिता) के गुज़र जाने के बाद उनकी एक करीबी मोहतरमा शशिकला नटराजन ने अन्ना डी.एम.के. पार्टी पर कब्ज़ा कर लिया। उसकी नज़र सूबे के वज़ीर-ए-आला की कुर्सी पर थी। उसने फरवरी में काम चलाऊ वज़ीर-ए-आला को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। पार्टी ने भी शशिकला को वज़ीर-ए-आला का उम्मीदवार चुन लिया था। मगर इससे पहले बात आगे बढ़े, सुर्पीमकोर्ट में उसके खिलाफ चल रहे आमदनी से ज्यादा जायदाद होने के केस का फैसला आ गया। कोर्ट ने शशिकला को कसूरवार करार देते हुये चार साल की कैद और 10 करोड़ रूपए जुर्माने की सज़ा सुना दी। लिहाज़ा वज़ीर-ए-आला की कुर्सी पर पहुंचने की बजाय वह जेल में पहंुच गई। सोचा था क्या, क्या हो गया। आखि़र ऐसा क्यों हुआ ? यह जानने के लिए शशिकला की कुण्डली का जायज़ा लेना होगा। मेरी नज़र में जो उसकी कुण्डली गुज़री, वह इस तरह है।





कुण्डली में पापी टोला मन्दा है। ज़िन्दगी का हाल झूले की तरह ऊपर नीचे होता रहे। खाना नम्बर 8 में तीनों ग्रहों का असर मन्दा। राज दरबार का योग तो है मगर नेक नही। तालीम अधूरी रही मगर शादी सूबे एक सरकारी अफसर से हो गई। फिल्मों मे दिलचस्पी होने की वजह से अम्मा के करीब आने का मौका मिल गया। करीबी इतनी बढ़ी कि वह अम्मा के घर में परिवार के मैम्बर की तरह रहने लगी। फिर एक दिन अम्मा ने उसे घर से बाहर कर दिया मगर उसने फौरन मुआफी मांग ली और सिलसिला चलता रहा। इस साल के वर्षफल पर नज़रसानी करें तो राज दरबार का योग मन्दा। खाना नम्बर 5 और 10 के ग्रहों का टकराव और नतीजा धोखा हो गया।  लिहाज़ा सरकारी रोटी खाने के लिए वह जेल में पहंुच गई। समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफी।

Tuesday, March 7, 2017

जवाब

पिछले दिनों जालन्धर के एक वैदिक ज्योतिषी जी ने ’लाल किताब का सच’ वताने की नाकाम कोशिश की। आखिर में उन्होने लिखा कि ’आप अपने अनुभव हम से शेयर करें।’ लिहाज़ा मेरा 30-35 साला लाल किताब का तर्जुबा पेशे खिदमत है।
ज्योतिषी जी ने अपने लेख में पहले इतिहास की बात की। फिर हिन्दु मुस्लिम की बात की और कहा कि लाल किताब हिन्दुओं का ग्रन्थ नहीं है। अगर होता तो संस्कृत या हिन्दी में लिखा होता। उनके मुताबिक यह किताब 12वीं सदी में लिखी गई। इसके उपाय उल्टे पुल्टे हैं। लाल किताब भविष्य बताने में फेल है। पिछले कुछ दशकों से लाल किताब के नाम पर असली नकली साहित्य छपा है। लाल किताब में प्रश्न कुण्डली बनाने का कोई तरीका नहीं है। वर्षफल चार्ट पर कोई पहाड़ा लागू नहीं होता। किताब के उपाय मनघडं़त है। लाल किताब के ज्योतिषी कम पढ़े लिखे हैं वगैरा-वगैरा। और न जाने क्या-क्या कह दिया जैसे लाल किताब से उनकी कोई जाती दुशमनी हो। दरअसल थोड़ा ज्ञान खतरनाक ही होता है। तो क्या उन्होने नकली लाल किताब पढ़ ली ? वर्ना आलिम को इलम में शक क्या है।
लाल किताब 20वीं सदी में उर्दु ज़़ुबान में लिखी गई। ज्योतिषी जी असली किताब नहीं पढ़ सकते क्योंकि उनको उर्दु नहीं आता। यह किताब एक हिन्दु ब्राहम्ण ,पण्डित रूप चंद जोशी जी ने लिखी थी। इसमें हिन्दु देवी देवताओं की तस्वीरें भी हैं। इस लिए यह हिन्दुओं का ग्रन्थ ही हुआ। मुसलमान तो बाहर से फारसी लेकर यहां आये थे। उर्दु का जन्म बहुत बाद में हिन्दुस्तान में ही हुआ। इस लिए यह हिन्दी से कुछ मिलता है। आज़ादी के वाद पंजाब में उर्दु बन्द कर दिया गया। नतीजा आज की नसल को उर्दु नहीं आता। अब उर्दु आता नहीं, असली किताब देखी नहीं तो फिज़ूल बातों की क्या तुक हुई ? अगर बात के पीछे पुख्ता दलील हो तो ठीक लगता है।
वड़े भाई जी से मेरी इल्तिज़ा है कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले असली लाल किताब पढ़ें, फिर बात कहें। लाल किताब को इसके नज़रिये से देखना ही मुनासिब होगा न कि पराशरी के नज़रिये से।
कई पराशरी के विद्धवानों से मैने पूछा कि क्या पराशरी पद्धति में उपाय होते हैं ? उन्होने  मुझे ग्रह शान्ति के लिए पूजा-पाठ, दान पुन्य बताया। यानी पराशरी में बाकायदा तौर पर ग्रहों का उपाय नहीं है। अब पूजा पाठ में हजारों रुपयों का खर्चा मगर लाल किताब के उपाय सस्ते में हो जाते हैं। कुछ पराशरी वाले लाल किताब के उपाय करवाते हैं जो उन्होने नकली किताबों से पढ़े होते हैं यानि आधा तीतर आधा बटेर, न छुआरा न बेर। अगर लाल किताब वाले कम पढ़े लिखे हैं तो पराशरी वाले कौन सा ज्यादा पढ़ गये। बस कोई कोई बी.ए. पास है। बात तो मेहनत और समझ की है।
आज लाल किताब इतनी मकबूल हो गई है कि इसके नाम पर नकल/नकली किताबें हिन्दी में धड़ाधड़ बिक रही हैं। बहुत लोग पराशरी छोड़ कर लाल किताब से आ जुड़े हैं। ज्यादातर लोग नकल/नकली किताब से ही काम चला रहे हैं। असली किताब उर्दु वाली तो जैसे गायब ही हो गई। पंजाब में असली लाल किताब तो चन्द लोगों के पास है। मेरी जानकारी के मुताबिक उनको कोई कमी नहीं है। कुछ पराशरी वालों को लाल किताब से ज़रा जलन है। वह असली किताब नहीं पढ़ सकते क्योंकि उनको उर्दु नहीं आता । इस लिए लाल किताब को गलत मलत कहते हैं। ’’खेल नहीं है दाग यारों से कह दो, आती है उर्दु ज़ुबान आते आते।’’ अब न उर्दु आये न लाल किताब भाये।

Monday, February 6, 2017

तैमूर

’’यह चाँद सा रौशन चेहरा, ज़ुल्फ़ों का रंग सुनहरा, यह झील सी नीली आँखे, कोई राज़ हो इनमें गहरा, तारीफ़ करुं कया उसकी, जिसने तुम्हे बनाया...................’’
कश्मीर की कली शर्मीला टैगोर के पोते की जब पैदायश हुई तो उसका नाम तैमूर रखा गया। इस नाम से चैदवीं सदी के लड़ाकू तैमूर लंग का ख्याल आ जाता है जिसने मर्कज़ी एशिया में  कई मुल्कों को फतह करके अपनी सलतनते तैमूर कायम की थी। उसने दिल्ली की तुगलक सलतनत पर भी हमला किया था। तैमूर लंग ने इतिहास में अपना खास मुकाम बनाया। तो क्या यह लड़का भी अपने लिए कुछ खास करेगा ? यह जानने के लिए इसकी कुंडली का ज़ायजा लेना होगा। खबरों के मुताबिक पटौदी परिवार के जानशीन तैमूर का जन्म 20 दिसंबर 2016 को सुबह 7.30 बजे मुम्बई में हुआ। लिहाज़ा कुंडली इस तरह बनी।


सूरज बुध खाना न0 1 और खाना न0 7 खाली। मंगल केतु खाना न0 3 और चन्द्र राहु खाना न0 9 में। शुक्र खाना न0 2, शनि खाना न0 12 और वृहस्पत खाना न0 10 में। नतीज़ा सामने है। सब जानते हैं कि बच्चे का जन्म एक अमीर और शाही परिवार में हुआ जिसका फिल्मों में भी अच्छा खासा मुकाम है। तैमूर लंग ने पैदा होने के बाद अपने लिए सब कुछ किया था मगर तैमूर तो कुछ करके ही पैदा हुआ है। इसे कोई कमी नही। एहतियातन चँद्र ग्रहण का उपाय करते जाना मुनासिब होगा ताकि हाथी माया में नहाता रहे। तैमूर के बाप दादा ने हिन्दु औरत से शादी की थी। तो क्या तैमूर भी यह रवायत ज़ारी रखेगा ? समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफी।