अक्सर ज़िन्दगी में अजीब वाक्यात हो जाते हैं। कई बार काम करने का मौका ही नही मिलता। अगर मौका मिल जाये तो कामयाबी नही मिलती। कई बार तो कामयाबी हाथ से फिसल जाती है यानि मिलकर भी नही मिलती। ऐसे लोगों को कीरो ने चिल्ड्रन आफ फेट भी कहा है। ऐसी कुछ मिसालें दिलचस्पी का सबब होंगी।
आज से लगभग 13 साल पहले जब लोक सभा के चुनाव हुये तो लगता था कि कांग्रेस पार्टी की नेता सोनिया गांधी जी मुल्क की वज़ीर-ए-आज़म बनेंगी। सरकार बनाने के लिए जब वह राष्ट्रपति से मिली तो उनके सचिव ने सोनिया गांधी जी के नाम का पत्र राष्ट्रपति के आगे रखा। लेकिन राष्ट्रपति ने उसको मनमोहन सिंह जी के नाम का पत्र लाने के लिए कहा। इस तरह सोनिया गांधी जी के बजाये मनमोहन सिंह जी वज़ीर-ए-आज़म बन गये जिनके बारे किसी ने सोचा भी न था। उनको दूसरी बारी भी मिली। फिर जब तीन साल पहले लोकसभा के चुनाव हुये तो कांग्रेस ने राहुल गांधी को आगे किया मगर नतीजा मन्दा ही निकला। कांग्र्रेस पार्टी की गिनती लोकसभा में बहुत कम हो गई। इस साल जब उत्तरप्रदेश में चुनाव हुये तो भी राहुल गांधी कुछ न कर सके। कांग्रेस पार्टी बस सिमट कर रह गई।
तामिलनाडू में तो अजब खेल हुआ। अन्ना डी.एम.के. पार्टी की नेता ससीकला सूबे की वज़ीर-ए-आला बनती बनती जेल में पहंुच गई। और भी कई मिसाले हैं जहां सोचा था क्या, क्या हो गया। जैसे एल.के.अडवानी, सुषमा स्वराज, किरण बेदी वगैरह-वगैरह।
अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है ? इनकी कुण्डलियों पर नज़र डालें तो कुछ पता चलता है। सोनिया गांधी जी की कुण्डली में ग्रहण है। राहुल गांधी की कुण्डली में बुध मन्दा ज़हर से भरा हुआ है। ससीकला जी की कुण्डली में भी बुध बहुत मन्दा है। एल.के.अडवानी जी को वज़ीर-ए-आज़म का सपना भी मन्दे बुध ने पूरा न होने दिया। सुषमा स्वराज जी को भी ग्रहण की वजह से धक्का लगा। किरण बेदी जी के साथ भी बुध ने ड्रामा किया। ग्रहो पर नज़रसानी करते हुये कहा जा सकता है कि मन्दा बुध या ग्रहण अक्सर ज़िन्दगी की बाज़ी ही पलट देता है। मौका निकल जाता है, कामयाबी फिसल जाती है।
आज से लगभग 13 साल पहले जब लोक सभा के चुनाव हुये तो लगता था कि कांग्रेस पार्टी की नेता सोनिया गांधी जी मुल्क की वज़ीर-ए-आज़म बनेंगी। सरकार बनाने के लिए जब वह राष्ट्रपति से मिली तो उनके सचिव ने सोनिया गांधी जी के नाम का पत्र राष्ट्रपति के आगे रखा। लेकिन राष्ट्रपति ने उसको मनमोहन सिंह जी के नाम का पत्र लाने के लिए कहा। इस तरह सोनिया गांधी जी के बजाये मनमोहन सिंह जी वज़ीर-ए-आज़म बन गये जिनके बारे किसी ने सोचा भी न था। उनको दूसरी बारी भी मिली। फिर जब तीन साल पहले लोकसभा के चुनाव हुये तो कांग्रेस ने राहुल गांधी को आगे किया मगर नतीजा मन्दा ही निकला। कांग्र्रेस पार्टी की गिनती लोकसभा में बहुत कम हो गई। इस साल जब उत्तरप्रदेश में चुनाव हुये तो भी राहुल गांधी कुछ न कर सके। कांग्रेस पार्टी बस सिमट कर रह गई।
तामिलनाडू में तो अजब खेल हुआ। अन्ना डी.एम.के. पार्टी की नेता ससीकला सूबे की वज़ीर-ए-आला बनती बनती जेल में पहंुच गई। और भी कई मिसाले हैं जहां सोचा था क्या, क्या हो गया। जैसे एल.के.अडवानी, सुषमा स्वराज, किरण बेदी वगैरह-वगैरह।
अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों होता है ? इनकी कुण्डलियों पर नज़र डालें तो कुछ पता चलता है। सोनिया गांधी जी की कुण्डली में ग्रहण है। राहुल गांधी की कुण्डली में बुध मन्दा ज़हर से भरा हुआ है। ससीकला जी की कुण्डली में भी बुध बहुत मन्दा है। एल.के.अडवानी जी को वज़ीर-ए-आज़म का सपना भी मन्दे बुध ने पूरा न होने दिया। सुषमा स्वराज जी को भी ग्रहण की वजह से धक्का लगा। किरण बेदी जी के साथ भी बुध ने ड्रामा किया। ग्रहो पर नज़रसानी करते हुये कहा जा सकता है कि मन्दा बुध या ग्रहण अक्सर ज़िन्दगी की बाज़ी ही पलट देता है। मौका निकल जाता है, कामयाबी फिसल जाती है।
No comments:
Post a Comment