जवानी की दहलीज़ पर पांव रखते ही बहारों के सपने आने लगते हैं। ज़िन्दगी खूबसूरत लगने लगती है । दिल भी धड़कने लगता है और हसरतें जवान होने लगती हैं। मगर कई बार खिज़ां के एक ही झोके से सब कुछ बिखर जाता है। शीशा हो या दिल हो आखिर टूट जाता है। कुछ ऐसा ही दो देवियों के साथ हुआ। दोनों बहुत अच्छी हैं मगर ग्रह ने साथ न दिया।
पहली देवी कुण्डली नं0 1 बंगलौर से है और दूसरी देवी कुण्डली नं0 2 इन्दौर से है। दोनो कुण्डलियों में केतु पहले और राहु सातवें खाने में है। खाना नं0 7 का मालिक शुक्र दोनों कुण्डयिों मे कमज़ोर है। इसके अलावा बृहस्पति खाना नं0 1, शनि खाना नं0 4 और चन्द्र खाना नं0 6 में है। दोनों देवियों ने मन पसन्द शादी 21-22 साला उम्र के आस पास की। फिर शादी शुदा ज़िन्दगी में खिज़ां के झोंके आने लगे और रफता रफता आपसी ताल्लुकात बिगड़ गए। आखिर 33-34 साला उम्र तक पहुंचते-पहुंचते अपने अपने पति से जुदा हो गईं यानि तलाक हो गया। कोई औलाद भी नही। दर असल शादी के वक्त राहु का उपाय करना ज़रूरी था जो नही हुआ। लिहाज़ा चोट हो गई।
ज़िन्दगी का सफर तन्हा तय करना भी मुश्किल होता है । अगर दूसरी शादी करनी हो तो उपाय के साथ ही करनी बेहतर होगी।