Thursday, December 17, 2015

हमशीरा

लाल किताब का एक शेयर है, ’’ समां करे नर क्या करे, समा बड़ा बलवान; असर ग्रह सब पर होगा, परिन्द पशु इन्सान।’’ कहते हैं  जब खुदा भी इन्सानी जामे में ज़मीन पर आया तो ग्रहों का असर उस पर भी हुआ। ग्रहों के इस खेल को किसी ने वक्त कहा तो किसी ने किस्मत। फिर किस्मत के जुदा जुदा रंग जुदा जुदा लोगों में देखने को मिलते हैं जिसको जानने के लिए ज़रिया है जोतिश । आइए एक बार फिर ग्रहों का खेल जोतिश की निगाह से देखें।

                               
यह कुण्डलियां दो बहनों की हैं। अब उम्र 40 साल से उपर हो गई मगर बात बहन तक ही अटकी हुई है। बाप बचपन में गुज़र गया और मां वक्त से पहले बेवा हो गई। दोनों के पास सूरत है तालीम है और इंग्लैण्ड में नौकरी है। मगर शादी की अभी तक कोई बात न बनी। तो क्या यह बीवी न बनंेगी ? लाल किताब के मुताबिक गृहस्थ की चक्की खाना नम्बर 7 में चलती है और चक्की को घुमाने वाली कीली खाना नम्बर 8 में होती है। तो क्या चक्की न चलेगी ? आखिर शादी जि़न्दगी का ज़रूरी पहलू है।
पहली कुण्डली में खाना नम्बर 7 में दो ग्रह मगर खाना नम्बर 1 खाली है। दूसरी कुण्डली में खाना नम्बर 1 में दो ग्रह तो खाना नम्बर 7 खाली है। दोनों कुण्डलियों में खाना नम्बर 8 में पापी ग्रह हैं। शुक्र ने शादी का योग न बनाया और मंगल ने भी मंगल गीत न गाये। लिहाज़ा गृहस्थ की चक्की न चली। फिर शादी की उम्र भी निकल गई है। अब क्या फर्क पड़ता है शादी हो या न हो । कारवां गुज़र गया बहार देखते रहे।

Friday, November 13, 2015

छल्ला

जब छल्ले का जि़क्र हुआ तो पुराने सुहाने दिन याद आ गये। वह भी क्या उम्र है जब छल्ला दिया लिया जाता है। शायद कभी आपने भी छल्ला दिया लिया हो। फिल्मी गीतों में भी छल्ले का जि़क्र आता है। जैसे ’’या अंगूठी फैंक अपनी या छल्ला दे निशानी, घर की छत्त पर खड़ी खड़ी मैं हुई शर्म से पानी, ....... फिर क्या हुआ ? ......... अल्लाह अल्लाह अल्लाह वो ले गया चांदी छल्ला।’’ फिर लाल किताब में भी मन्दे ग्रहों की दुरूस्ती के लिए छल्ले का जि़क्र आता है। मसलन् कुण्डली में सूरज शुक्र बुध मुश्तर्का हों तो खालिस चांदी का छल्ला मददगार होगा। लेकिन जब बुध राहु की बात आती है तो छल्ला फौलाद का होगा। छल्ला तो छल्ला है चाहे चांदी का हो या फिर फौलाद का। चांदी तो समझ आती है पर यह फौलाद क्या हुआ ? दरअसल खालिस लोहे को अरबी ज़ुबान में फौलाद कहते हैं।  किताब में छल्ले के साथ बेजोड़ शब्द का भी इस्तेमाल हुआ है। लिहाज़ा छल्ला खालिस और बेजोड़ होना चाहिए जिसको जोड़ या टांका न लगा हो।  
अब छल्ला मिलेगा कहां ? एक सीधा साधा तरीका। चांदी का छल्ला चाहिए तो किसी सुनार के पास जायें। वह खालिस चांदी की शीट से टुकड़ा काट तराश कर छल्ला बना देगा। लेकिन अगर फौलाद का छल्ला चाहिए तो किसी ख़राद वाले के पास जाना पड़ेगा। वह साफ सुथरे लोहे के टुकड़े को ख़राद पर काट तराश कर छल्ला बना देगा। इस तरह छल्ला उंगली के नाप के मुताबिक बनवाया जा सकता है। 
फौलाद का छल्ला अगर अच्छे लोहे से बना हो तो, पहनने के बाद इसे जंग न लगेगा बल्कि कुछ दिन बाद यह सफ़ा और चमकदार होने लगेगा। इसकी चमक किस्मत की सोई हुई लहर को जगा देगी। यह एक कारआमद उपाय है। मगर छल्ला किसी से मुफ़्त न लिया जावे। आखिर इस छल्ले का राज़ क्या है ? 
बुध खाना नम्बर 12 में या बुध राहु मुश्तर्का या फिर जुदा जुदा घरों में मन्दे हों तो फौलाद का छल्ला जिस्म पर मददगार होगा। खाना नम्बर 12 राहु का घर भी है। फौलाद का छल्ला बुध शनि मुश्तर्का है। बुध खाना नम्बर 12 इतना ज़हरीला कि खाना नम्बर 6 के तमाम ग्रहों को बरबाद कर देवे। अक्ल (बुध) के साथ अगर होशियारी (शनि) का साथ नम्बर 2-12 मिल जावे तो ज़हर से मरे हुये के लिए भी आबे हयात होगा जो मुर्दों को भी सर्वजीव कर देवे। अब आप समझ ही गये होंगे राज़ छल्ले का।  

Wednesday, October 14, 2015

तवाजुन

’’इतने बड़े जहां में अपना भी कोई होता, हम भी तो मुस्कराते अपना उसे बनाते’’।
 यह बात है एक 36 साला खातून की, जिसके पास सूरत है, तालीम है और अच्छी नौकरी है। मगर फिर भी जि़न्दगी में तन्हा है। यानि शादी की अब तक कोई बात न बनी। बाप बचपन में गुज़र गया और मां वक्त से पहले बेवा हो गई। एक बड़ी बहन है जिसकी शादी कब की हो चुकी है। भाई कोई है नही। बस एक बूढ़ी मां है जो आज भी उसकी शादी की उम्मीद किये बैठी है। वह चाहती है कि उसकी बेटी को उसके जीते जी कोई अच्छा हमसफ़र मिल जावे। क्या मां की उम्मीद पूरी होगी ? इस खातून की कुण्डली इस तरह है।



कुण्डली के चारो केन्द्र और ऊपर वाले घर खाली हैं। खाना नम्बर 3 भी अब खाली गिना जायेगा। इस तरह सब ग्रह खाना नम्बर 5, 6, 8 और 9 में बैठे हैं। देखा जाये तो कुण्डली में तवाजुन नही है। फिर किस्मत के घर खाना नम्बर 9 में चन्द्र ग्रहण जिसका मन्दा असर पहले मां बाप पर फिर अपने आप पर। शुक्र खाना नम्बर 5 में मंगल बद के साथ तंग और बुध की कोई मदद नही। तो क्या शुक्र का फल जल गया  जो अब तक शादी न हुई ? ग्रहों का अजीब खेल। खैर शुक्र की पालना और ग्रहण का उपाय करने से कोई नतीजा निकल सकता है। लेकिन उपाय (असली) लाल किताब के मुताबिक ही होगा। यह तभी होगा अगर रब्ब दी रहमत हो जावे। समझदार के लिए इशारा ही काफी।

Tuesday, September 8, 2015

गैर मुल्की सफर

कोई ज़माना था जब दूसरे मुल्कों के लोग धन-दौलत के लिए  हिन्दोस्तान आया करते थे। अब यहां के लोग रोज़ी रोटी या काम काज के लिए दूसरे मुल्कों को जाते हैं। इस तरह गैर मुल्की सफर हो जाता है। लाल किताब के मुताबिक समुद्री सफर का मालिक चन्द्र, हवाई सफर का मालिक बृहस्पत और खुश्की के सफर का निगरंा शुक्र है। मगर सब सफरों का हुक्मनामा जारी करने कराने वाला ग्रह केतु होगा। हर किस्म के सफर के लिए ग्रह मुताल्लिका का भी ख्याल रखना होगा।
चन्द्र को सफेद घोड़ा तसव्वुर किया गया है जो दरअसल दरियाई कहलाता है। जब चन्द्र से शुक्र का ताल्लुक हो जावे तो खुश्की का सफर अमूमन होगा। मगर जब चन्द्र का सूरज या बृहस्पत से ताल्लुक हो जावे तो सफर समुद्र पार या गैर मुल्की सफर राज दरबार के काम से होगा। अगर बुध से ताल्लुक हो जावे तो कारोबारी सफर होगा। इस तरह जुदा जुदा ग्रह के ताल्लुक से जुदा जुदा किस्म का सफर होगा।
सौ दिन की मियाद तक का सफर कोई सफर नही गिना जाता। वर्षफल के हिसाब से जब चन्द्र और केतु अच्छे या अच्छे घरों में हों तो सफर के नेक नतीजे होंगे। सफर का फैसला अमूमन केतु के बैठा होने वाले घर के मुताबिक होगा। मसलन् केतु बैठा हो खाना नम्बर 2, 3, 7, 9, 10 में तो आम तौर पर नेक असर देगा। लेकिन खाना नम्बर 8 में बैठा केतु मन्दा असर देगा। बाकी घरों में केतु का असर शक्की ही होगा। बात को समझने के लिए चंद गैर मुल्की सफर वाली कुण्डलियां बतौर मिसाल पेश हैं। समझदार के लिए इशारा ही काफी।


कुण्डली नम्बर 1 एक जोतिशी की है। चन्द्र बृहस्पत खाना नम्बर 1, केतु नम्बर 3 और खाना नम्बर 11, 12 खाली। यह कई बार गैर मुल्की सफर कर चुके हैं।
कुण्डली नम्बर 2 एक मकैनिकल इंजीनियर की है। चन्द्र सूरज खाना नम्बर 4, केतु खाना नम्बर 10, बृहस्पत खाना नम्बर 9 और शुक्र खाना नम्बर 3, कोई लड़की समुन्द्र पार से बुला रही है। लिहाज़ा शादी करके सन् 1987 में अमरीका में बस गये।
कुण्डली नम्बर 3 एक कम्प्यूटर इंजीनियर की है। चन्द्र शुक्र खाना नम्बर 9, केतु खाना नम्बर 4 और बृहस्पत खाना नम्बर 11, पहले मुल्की सफर करते रहे फिर बाद में सन् 2013 में गैर मुल्की सफर पर कैनेडा चले गये। अब वहीं बसने का इरादा है।
कुण्डली नम्बर 4 एक खातून की है। चन्द्र खाना नम्बर 2, सूरज खाना नम्बर 4 और केतु खाना नम्बर 7, इस साल मई में आस्ट्रेलिया चली गई। वर्षफल में केतु खाना नम्बर 8 में मन्दा। लिहाज़ा सफर का नतीजा अच्छा न निकला। इसलिए मन उदास है।
                      आ अब लौट चले, नैन बिछाए बाहें पसारे, तुझको पुकारे देश तेरा...... आ जा रे।

Tuesday, August 11, 2015

शादी ब्याह

पढ़ लिखकर लड़का जब कामकाज पर लग जाता है तो मां बाप उसकी शादी के बारे में सोचने लगते हैं। लड़का भी अपनी सपनो की रानी का इन्तज़ार करने लगता है। मां को भी बहू का चाव होता है। मगर जब बहू आकर थोड़े अर्से में ही लड़के की खटिया खड़ी कर देती है तो सपनो की रानी अक्सर गम की कहानी बन जाती है। फिर, टूटे हुये ख्वाबों ने हमको यह सिखाया है, दिल ने जिसे पाया था आंखो ने गंवाया है या फिर कोई मुझ से पूछे कि तुम मेरे क्या हो, वफा जिसने लूटी वो ही बेवफा हो। ऐसा ही कुछ कुण्डली नम्बर 1 वाले लड़के के साथ हुआ।
   








पिछले साल लड़के के बाप ने बताया कि उसने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से की थी। मगर सब गड़बड़ हो गया। बात बिगड़ती बिगड़ती अदालत तक पहुंच गई। अब इतने तंग हो गये कि पीछा छुड़ाना चाहते हैं।  पर लड़की वाले तलाक के लिए मोटी रकम मांग रहे हैं। जिससे मेरा तो दीवाला ही निकल जायेगा। आपके बारे में पता चला तो आपके पास आया हूं। मैने कहा चलो शनि की अदालत में अपील कर देते हैं। देखते हैं फिर क्या होता है? उसने कहा कि फैसला तो अभी हुआ नही तो अपील कैसी ? मैने उसको बताया कि मैं दुनियावी अदालत की बात नही कर रहा । यह ग्रहों के अदालत है। एक उपाय करना होगा जिस पर कोई खर्चा नही होगा। मैने उपाय बता दिया मगर उसने कहा कि वह यह उपाय नही कर सकता। मैने कहा चलो जैसे आपकी मजऱ्ी।
तकरीबन एक महीने के बाद उसने फिर मुझसे बात की। उसने कहा कि वह उपाय करने के लिए तैयार है। मैने कहा तो फिर कर लो भई। उपाय कर दिया गया। रफ्ता रफ्ता केस का रूख बदलने लगा। इस साल के शुरू में फैसला हो गया। छोटी रकम देकर उसका छुटकारा यानि तलाक हो गया। इसी दौरान मुझे किसी ने बताया कि वह आदमी खुद जोतशी है और जोतिश सिखाता भी है।
कुछ दिन पहले उसने फिर बात की। उसने बताया कि वह बेटे की दूसरी शादी करना चाहता है। मैने कहा ठीक है भई कर लो। उसने मुझे कुछ लड़कियों की कुण्डलियां (नम्बर 2 से 6) दिखाते हुये कहा कि वैसे तो इन कुण्डलियों का लड़के की कुण्डली से मिलान होता है पर मैं आपकी राय लेना चाहता हूं। मैने उन कुण्डलियों पर एक नज़र डाली और पूछ ही लिया कि क्या यह लड़कियां कुंवारी हैं ?  उसने कहा नही, सब तलाकश्ुादा हैं। मैने कहा कि आप खुद फैसला क्यों नही लेते ? आप भी तो जोतिश के विद्वान हैं। वह सोच में पड़ गया।
उसके ज़ोर डालने पर मैने कहा कि आप ने बेटे की कुण्डली पहले भी तो मिलाई थी पर नतीजा क्या निकला ? शादी ब्याह आमतौर पर सातवें घर से देखा जाता है। इन सभी कुण्डलियों में सातवें घर में गड़बड़ है। लड़के की कुण्डली में भी यही हाल है। नतीजा आपके सामने है। सभी का तलाक हुआ। शादी खाना बरर्बादी बन कर रह गई। तो उसने निराश हो कर पूछा तो फिर मैं क्या करूं ? मैने जवाब दिया कि पहले खाना नम्बर 7 की दुरूस्ती करो फिर शादी के बारे सोचना । यह दुरूस्ती (असली) लाल किताब के मुताबिक ही होगी।
कई बार मैं सोचता हूं कि क्या हर कोई डाक्टर बन सकता है ? क्या हर कोई इंजीनियर बन सकता है ? क्या हर कोई शायर बन सकता है ? क्या हर कोई जोतशी बन सकता है ? शायद नही। आज कई लोग जोतिश सिखा रहे हैं। कुछ माहिर  लाल किताब पढ़ा रहे हैं। क्या वह खुद लाल किताब पढ़ सकते हैं ?

Monday, July 6, 2015

अपनी बात-2


पुरानी बात है कालेज के दिनों की। अदीबो की महफि़ल में बैठना अच्छा लगता था। एक बार ऐसे ही हम कुछ लड़के किसी अदीब की महफि़ल में बैठे थे। बात टैगोर की किताब ’’गीतांजलि’’ की चली। एक लड़के ने कहा कि उसने किताब पढ़ी मगर उसे यह समझ नही आया कि उस पर नोबल प्राईज़ क्यों दिया गया। तब उस अदीब ने कहा कि तुमने किताब हिन्दी में पढ़ी होगी। मैने यह किताब बंगला में पढ़ी क्योंकि यह बंगला में लिखी गई थी। लुत्फ आ गया। मैने पूछ लिया कि क्या आपको  बंगला भी आती है। तो उन्होने जवाब दिया कि किताब पढ़ने के लिए बंगला सीखी थी। मैं सोच में पढ़ गया। कुछ दिनो बाद मुझे उनके एक दोस्त से मिलने का मौका मिला। मैने उनसे ’’गीतांजलि’’ वाली बात की। उनके दोस्त ने बताया कि वह बहुत लाइक़ आदमी है। उसने तो ’’चन्द्रकांता’’ किताब पढ़ने के लिए हिन्दी भी सीखी थी। मैं हैरान रह गया कि एक किताब के लिए आदमी कैसे नई ज़ुबान सीख लेता है।
कुछ साल बाद जब मुझे लाल किताब मिली तो मैने भी किताब पढ़ने के लिए उर्दू सीखना शुरू कर दिया। कुछ अर्से बाद रफ्ता-रफ्ता उर्दू पढ़ने लगा मगर लाल किताब पढनी़ फिर भी मुश्किल थी। मगर वक्त के साथ साथ मश्क होती गई और उर्दू पर मेरी पकड़ बन गई। फिर लाल किताब पढ़ने समझने में कोई मुश्किल न रही। दिल को एक तसल्ली महसूस होने लगी। मगर आज वक्त बदल गया है। हर आदमी जल्दी में है। आगे बढ़ने के लिए छोटा रास्ता चाहता है। मेहनत के लिए वक्त भी नही है। फिर लाल किताब के नाम पर हिन्दी में कई किताबें बाज़ार में आ गई हैं। लोग भी समझदार हो गये हैं। हिन्दी वाली किताब खरीदते है और एक दो साल में लाल किताब के माहिर बन जाते हैं। फिर बड़े बड़े दावे करने लगते हैं। कुछ तो दूसरों पर नुक्ताचीनी भी करते हैं। एक बार धर्मशाला जोतिष सम्मेलन में एक आदमी ने लाल किताब के मुताबिक कोई बात कही मगर दूसरे ने उसकी बात काट दी। उसने कहा कि किताब में ऐसा नही लिखा। किसी ने मुझसे पूछ लिया कि दोनो में ठीक कौन है । मैने जवाब दिया कि दोनो ठीक हैं। पर उसकी तसल्ली न हुई उसने फिर वही सवाल किया। मैने जवाब दिया कि जो जिसने पढ़ा वो कह दिया। वो बोला मैं समझ गया कि असली किताब दोनो ने नही पढ़ी।
अंग्रेज़ी में एक कहावत है पहले काबिल बनो फिर उम्मीद करो। मगर आज लोग उम्मीद ही करते है। अगर उनकी बात मान ली जाए तो खुश नही तो खफा हो जाते हैं। एक बार लुधियाना जोतिष सम्मेलन में एक सज्जन ने बताया कि उनको लाल किताब की हूबहू कापी हिन्दी में मिल गई है। गलती से मैने पूछ लिया आपको कैसे पता चला कि यह हूबहू असली किताब की कापी है । बस वह खफा हो गये। इसी तरह एक बार जालन्धर में एक सज्जन ने बताया कि वह पराशरी और के.पी. के माहिर हैं और लाल किताब का माहिर बनने के लिए मेरी मदद चाहते हैं। मगर मैने कहा कि मैं तो कोई माहिर नही हूं फिर आपकी क्या मदद कर सकता हूं। वह सज्जन भी खफा हो गये। एक मुहतरमा मेरे घर तक पहुंच गई। वह लाल किताब देखना चाहती थी। खैर मैने लाल किताब का पूरा सैट उसके आगे रख दिया। शायद उसने अपनी तसल्ली की। बाद में एक सम्मेलन में वह पांच-सात साथियों के साथ मुझसे मिली। वह चाहती थी कि मैं उनको लाल किताब जोतिष सिखा दूं। मगर मैने कहा कि मैं तो खुद सीख रहा हूं। उसे मेरी बात अच्छी न लगी। उसने कहा कि यहां तो ऐसे आदमी लाल किताब जोतिष पढ़ा रहे हैं जो खुद लाल किताब पढ़ नही सकते।
इसी तरह एक बार चार-पांच लोग मुझसे मिले । उन्होने बताया कि वो लाल किताब पर रिसर्च करना चाहते हैं जिसके लिए उनको मेरी मदद चाहिए। मैने पूछ लिया कि क्या आपके पास असली किताब है तो उन्होने बताया कि उनके पास हिन्दी वाली किताबे है तो मैने कहा कि रिसर्च तो असली किताब पर होती है। वह भी मुझसे खुश न हुये। एक आदमी ने तो हद ही कर दी। उसने मुझसे पण्डित जी की कुण्डली मांग ली। मैने उसकी मांग नज़र अन्दाज़ कर दी। बस फिर क्या था वह मेरे खिलाफ हो गया और लोगोें में मेरी बुराई करने लगा। उसको उर्दू तो आता नही मगर नकली किताब के बल बूते पर खुद को लाल किताब का माहिर समझता है। दरअसल कुछ लोगों को अपने दुख का इतना दुख नही होता जितना दूसरों के सुख का दुख होता है।
इतने साल गुज़र गये मैं आज भी लाल किताब का तालिबे इल्म हूं। मगर कुछ लोग तो नकली किताबें पढ़कर एक दो साल में लाल किताब के माहिर बन बैठे। मैं उनकी काबलियत को सलाम करता हूं। मैं मश्कूर हूं उन अदीबों का जिनसे मैने बहुत कुछ सीखा। मैं मश्कूर हूं उन हबीबों का जिन्होने मेरी हौसला अफज़ाई की। मैं मश्कूर हू उन रकीबों का जिन्होने मेरा चर्चा किया और मेरी नकल करके मेरा रूतबा बढ़ा दिया। 

Thursday, June 4, 2015

अपनी बात

’’माया लाल किताब की’’ बलाग की उम्र अब पांच साल से ज्यादा हो गई है। इस अर्से के दौरान 80 के करीब मजमून डाले गये, जिनका ताल्लुक लाल किताब से या फिर उन कुण्डलियों से है जिनका खुलासा लाल किताब के मुताबिक करने की कोशिश की गई। अब मुझे इस काम में कितनी कामयाबी मिली, यह आप बेहतर जानते हैं। वैसे तो आपने वक्तन, फवक्तन अपनी राये भेजकर मेरी हौसला अफज़ाई की है। मगर पिछले कुछ महीनो में आपने एक नई जानकारी दी। किसी ने बताया कि कोई इस बलाग की नक्ल करता है। किसी ने कहा कि आपकी कापी करता है। किसी ने कहा वह आपके बलाग से कुण्डलियां खुलासे समेत उठाकर अपने बलाग में डाल लेता है तो किसी ने कहा वह आपके अलफाज़ हूबहू उठा लेता है वगैरह ! वगैरह! अब इतने लोग गलत तो हो नही सकते। कुछ तो सच्चाई ज़रूर होगी। मगर एक बात पक्की है कि यह जानकारी इस बलाग की कामयाबी का पुख़्ता सबूत है। खैर मैं तहे दिल से आपका शुकरगुज़ार हूं। दरअसल आदमी जैसा होता है वैसा ही काम करता है।
लाल किताब मेरे लिये अहम है। जोतिष का एक मुकद्दस ग्रन्थ जिसमें नेक नीयत, ईमानदारी और मेहनत की बात की गई है। नेकी को अपनाना और बदी से बचना ही उम्दा जि़न्दगी का चलन है। किताब के मुताबिक हर ग्रह के दो पहलू हैं नेक और बद। देखा जाये तो जि़न्दगी में भी ऐसा ही होता है। मसलन् सुख दुख, नफ़ा नुक्सान, जीत हार, अच्छा बुरा, सही गलत, असली नकली वगैरह ! वगैरह ! दुनिया में अच्छाई और नेकी की ही कदर होती है। किताब भी इन्सानी कद्रो-कीमत  और नेकी की बात करती है। इसलिए जि़न्दगी में नेक नतीजों के लिए अच्छे उसूलों की पालना भी ज़रूरी हो जाती है। किताब के उपाय भी नेक नीयत, हक और इन्साफ के लिए काम करते हैं न कि बदनीयत और बईमानी के लिए।
अब ईमानदारी से सोचिए। क्या झूठ बार बार बोलने से सच्च बन सकता है ? क्या पीतल को चमकाने से सोना बन जाता है ? क्या नकल भी असल की जगह ले सकती है ? क्या नकली फूलों से खुशबू आ सकती है ? शायद नही। कहने का मतलब आप समझ ही गये होंगे।

Tuesday, May 5, 2015

सलमान खान

’’दीदी तेरा देवर दीवाना, हाये राम कुडि़यों को डाले दाना।’’ मगर किसी ने दाना न खाया। यह बात है बालीवुड अदाकार सलमान खान की। अब उम्र 49 साल हो गई है। जवानी तो निकल गई पर फिर भी किसी से कम नही। सूरत, सेहत, दौलत और शौहरत सब है मगर शादी की कोई बात न बनी। हालांकि कुछ किस्से ज़रूर बने। मसलन् इनका नाम एक आलमी हसीना फिल्मी अदाकारा से जुड़ा। मगर कुछ देर बाद उसकी शादी एक बड़े अदाकार के अदाकार बेटे से हो गई। फिर इनका नाम एक और खूबसूरत अदाकारा से जुड़ा मगर वह भी कुछ देर बाद दूर हो गई। यानि आज तक नतीजा कुछ न निकला। बाप ने तो कुछ साल पहले गुज़रे दौर की एक फिल्मी रकासा से फिर शादी कर ली। मगर इनकी पहली शादी भी न हुई। पिछले दिनों सलमान जी की जो कुण्डली मेरी नज़र से गुज़री, वह इस तरह हैः-
                         जन्मः  27-12-1965         


वर्षफल 50 साल



लाल किताब के फरमान नम्बर 8 के मुताबिक गृहस्थ की चक्की खाना नम्बर 7 में चलती है और चक्की को घुमाने वाली कीली खाना नम्बर 8 में होती है। चक्की के नीचे वाला पत्थर शुक्र और ऊपर घूमने वाला पत्थर बुध होता है। शुक्र इस घर का मालिक है। शादी का योग आमतौर पर शुक्र से गिनते हैं। शुक्र खाना नम्बर 1 उठती जवानी के वक्त औरत जात गैर औरत की खूबसूरती की रंग बिरंगी दिल फरेब हुस्न व नक्श की दिलचस्प और दिलरूबा सिफतों की मीठी-मीठी जुबान से तारीफ़ करते कराते ऊँचे पुल बांध दिये और खूबसूरती जाती तकब्बुर और कामदेव की आग में जलते हुये सैंकड़ों मील चलते मगर सोये हुये निकल गये। जिसकी वजह से दिल और दिमाग पर काबू न रहा मगर शुक्र के साथ चन्द्र और मंगल भी हैं। नतीजा शुक्र और चन्द्र का झगड़ा होता रहा और मंगल ने भी मंगल गीत न गाये।
खाना नम्बर 1 में तीन ग्रह मुश्तर्का और खाना नम्बर 7 खाली। तख्त पर राजे  तीन और वज़ीर एक भी नही। अब गृहस्थ की चक्की  कैसे चले ? अब ग्रहों को तो बदला नही जा सकता पर ग्रहचाल को दुरूस्त करके फायदा लिया जा सकता है। यानि चन्द्र से जुदा शुक्र की पालना और बुध की दुरूस्ती से बात बन सकती है। राहु के उपाय से अदालती  केसों में बचाव होगा। मगर यह उपाय असली किताब के मुताबिक ही होंगे।

Thursday, April 9, 2015

औलाद

"गुरू टेवे में जब तक उम्दा, औलाद दुखी न होती हो।
पांच पापी गुरू मन्दा टेवे, बिजली चमक आ देती हो।। ’’
कुण्डली के खाना नम्बर 5 को लाल किताब में औलाद मुस्तकबिल का ज़माना कहा गया है। औलाद का ताल्लुक, औलाद नरीना, शोहरत, औलाद का धन दौलत व किस्मत, औलाद को सुख, बचत अज़ औलाद व अपने खून का ताल्लुक, अक्ल व इल्म, तंगदस्ती वगैरह, सुभाओ गर्म खुश्क, आतिशी, औलाद के बनाये हुये मकान, मशरिक, नफसानी ताकत मुताल्लिका सूरज, आग, रूह, रौशनी, हवा, साया इन्सान, हवास नुमां, पांचो इन्द्रियां, हाज़मा, नेकी की मशहूरी, मामू का सुख, अगर बृहस्पत या सूरज के दोस्त ग्रह बैठे हांे। जंगल पहाड़ का ताल्लुक, आग का खौफ़ जब दुश्मन ग्रह हों। किस्मत की चमक, ईमानदारी, औलाद के जन्मदिन से अपने बुढ़ापे तक का ज़माना, मुस्तकबिल  होने वाला जन्म, दूसरों की मदद से पैदा करदा चीज़े मुताल्लिका औलाद। इस घर का मालिक सूरज है। बृहस्पत, सूरज, राहु, केतु जैसे हों वैसा ही फल होगा। यह सेहन है खाना नम्बर 9 का और इस सहन का मुंसिफ होगा सूरज ।
अगर खाना नम्बर 3-4 या 9 मन्दा हो तो खाना नम्बर 5 बुरा असर देगा। खाना नम्बर 6-10 की  ज़हर से बचने के लिए खाना नम्बर 5 के दुश्मन ग्रह की चीज़ पाताल में दबाने से मदद होगी। सनीचर या शुक्र या दोनो जब कभी मन्दे हों तो दोनो की हालत के मुताबिक मन्दा असर होगा। लेकिन अगर उस वक्त चन्द्र भला हो तो असर उत्तम हो जायेगा। बृहस्पत की वजह पैदा शुदा बिमारी हो तो नई औलाद के पैदा हो चुकने के बाद खतम होगी। केतु भला तो सब कुछ उम्दा होगा। राहु मन्दा होने से सब उल्ट होगा। जब तक कुण्डली में बृहस्पत उम्दा हो तो औलाद दुखी न होगी।
शादी ब्याह के बाद औलाद का होना भी ज़रूरी समझा जाता है। परिवार, समाज और दुनिया ऐसे ही चलती है। अगर औलाद न हो तो कई सवाल खड़े हो जाते हैं। मिसाल के तौर पर मियां बीवी की कुण्डलियां पेश हैं जहां शादी के बाद इतने सालों में औलाद की बात न बनी।
आदमी    जन्मः 23-3-1974   


औरत     जन्मः 23-9-1974


अब उम्र 41 साल के आस पास है। औलाद की उम्मीद भी टूट गई। मगर रब्ब दी रहमत अब भी हो सकती हैै। आदमी की कुण्डली में शुक्र उसकी औरत और औरत की कुण्डली में शक्र उसका आदमी है। बच्चा पैदा करने की ताकत मंगल, पैदावार की ज़मीन शुक्र, औलाद का फल केतु (बेटा) और फूल बुध (बेटी) है। बृहस्पत की कृपा से चन्द्र खानदानी बेल को फल फूल लगता है। लिहाज़ा बृहस्पत, चन्द्र और शुक्र के उपाय करने से औलाद का योग बन सकता है। मगर उपाय असली लाल किताब के मुताबिक ही होगा। समझदार के लिए इशारा है खुदाई दावा नही।

Monday, March 9, 2015

शादी


दो गृहस्थियों को जुदा जुदा रखते हुये एक कड़ी से जोड़ने वाली चीज़ आम दुनियादारों की नज़र में शादी और ग्रहचाल में मंगल की ताकत का नाम रखा गया है। यही मंगल खून की कड़ी, लड़की और औरत में फर्क की कड़ी है। इसी वजह से शादी में मंगल गाये जाते हैं। अगर मंगल नेक हो तो शादी खाना आबादी लेकिन अगर बद हो तो शादी खाना खराबी होगी। मंगल बद के वक्त सूरज की रोशनी में चमक न होगी। मर्द की कुण्डली में शुक्र से मुराद उसकी बीवी और औरत की कुण्डली में शुक्र से मुराद उसका शौहर होगा।
फरमान नं0 8 के मुताबिक गृहस्थ की चक्की कुण्डली के खाना नं0 7 में चलती है और चक्की घुमाने वाली लोहे की कीली खाना नं0 8 में होती है। नीचे वाला पत्थर शुक्र (रिज़क) और ऊपर घूमने वाला पत्थर बुध (अक्ल) होते हैं।
दोस्ती दुश्मनी ग्रह दृष्टि वगैरह सबको नज़र में रखते हुये वर्षफल में खानावार हालत के हिसाब से जिस साल शुक्र /बुध को सनीचर की दोस्ती या सनीचर के आम दौरा का वक्त होवे तो शादी होने का योग होगा। आमतौर पर शादी का योग शुक्र से गिनंेगें। जब बुध इन उसूलों पर शादी का योग बनावे तो भी शादी का योग होगा सिवाये बुध खाना नं0 12 के। अगर कुण्डली में शुक्र/बुध बर्बाद या मन्दे हों और स्त्री ग्रह शुक्र चन्द्र के साथ नर ग्रह बृहस्पत या सूरज या मंगल मददगार साथी या मुश्तर्का हों तो जिस साल सनीचर की मदद या उसके आम दौरे का ताल्लुक हो जावे तो भी शादी का योग या वक्त होगा।
अमूमन जिस साल शुक्र या बुध तख्त के मालिक या खाना नं0 2,10 से 12 (सिवाये बुध नं0 12) में या अपने पक्के घर खाना नं0 7 में हो जावे लेकिन उस वक्त खाना नं0 3,11 शुक्र के दुश्मन ग्रह (सूरज चन्द्र राहु) न हो या वह अपने जन्म कुण्डली में स्थित होने वाले घर में  ही आ जावें। शुक्र जब खाना नं0 4 में हो चाहे अकेला या किसी के साथ खाना नं0,7 शुक्र के दुश्मन ग्रह न आयें हों वर्ना शादी का कोई योग न होगा।  दिए गए शादी के सालों (22,24,29,32,39,51,60) में जिस साल सूरज चन्द्र या राहु खाना नं0 2,7 में न हों तो शादी होगी। ऐसी हालत में अगर बृहस्पत नं0 7 में आ जावें तो औरत औलाद के काबिल न होगी। दिए हुये सालों में शादी का योग ज़रूर है मगर शादी मुबारक न होगी। शुक्र खाना नं0 4 की ऐसी हालत में शादी मुल्तवी हो सकती है।
जो ग्रह शुक्र को बर्बाद करे या खुद ऐसा मन्दा हो कि शादी के फल को गैर मुबारक साबत करे, मसलन् चन्द्र नं0 1 के वक्त 24 या 27वें साल और राहु नं0 7 के वक्त 21वें साल शादी मुबारक न होगी। सूरज जब शुक्र के लिए ज़हरीला हो तो सूरज की उम्र 22वें साल शादी मुबारक न होगी। अगर शुक्र रद्दी न हो तो शादी के लिए कोई वहम न लेंगेे। मगर अकेला सनीचर नं0 6 इस शर्त से बाहर होगा। खासकर जब शुक्र भी उस वक्त नं0 2 या 12 में हों। यानि उम्र का 18-19वां साल शादी के लिए गैर मुबारक होगा।
शुक्र बुध अपने जन्म कुण्डली वाले घर या नं0 1, 7 में आ जावें मगर शुक्र जन्म कुण्डली के खाना नं0 1 से 6 का न हो और उस वक्त नं0 3, 11 में सूरज, चन्द्र, राहु न हों तो शादी का योग होगा। जब खाना नं0 2,7 खाली हो तो बुध शुक्र ही खुद 2,7 में आने पर, बुध शुक्र बैठे घर का मालिक ग्रह नं0 2,7 में और बुध शुक्र उसकी जगह चले जावें, मसलन शुक्र बुध नं0 3 हो, मंगल नं0 9 में तो 17वें साल शुक्र बुध नं0 9 व मंगल नं0 7 होने पर शादी का योग होगा।
औरत की कुण्डली में बृहस्पत नं0 4 हो तो शादी जल्द हो जावेगी और सूरज मंगल का साथ गुरू से हो तो उसका ससुर न होगा। राहु खाना नं0 1 या 7 या किसी तरह शुक्र से मिल रहा हो तो 21 साला उम्र की शादी बेमाना होगी। यही हालत सूरज शुक्र के मिलने पर 22ता 25 साला उम्र की शादी पर होगी। जिसके लिये उपाय ज़रूरी होगा। सनीचर खाना नं0 7 वाले की शादी अगर 22 साला उम्र तक न हो तो उसकी नज़र बेबुनियाद होगी। बृहस्पत खाना नं0 1 और नं0 7 खाली हो तो छोटी उम्र की शादी मुबारक होगी।
शुक्र के दायें या बायें पापी ग्रह हो या शुक्र बैठा होने वाले घर से चैथे व 8वें मंगल या सूरज या सनीचर से कोई एक या इकट्ठे हो तो औरत जलकर मरे या शुक्र का
फल जल जावे। ऐसी हालत में औरत का तबादला गाय से या गऊदान मुबारक होगा। जन्म कुण्डली में शुक्र कायम या अपने दोस्तों यानि बुध सनीचर केतु के साथ साथी या दृष्टि में हो, उनसे मदद लेंवे तो औरत एक ही कायम। दुश्मन ग्रहों से शुक्र अगर रद्दी तो तादाद औरत ज्यादा। सूरज बुध राहु मुश्तर्का, शादियां एक से ज्यादा मगर फिर भी गृहस्थ का सुख मन्दा। बुध खाना नं0 8 में तादाद औरत ज्यादा मगर सब औरतें जि़न्दा होवें । जितनी दफा वर्षफल में सूरज और सनीचर का बाहमी टकराव आ जावे उतनी तादाद तक शादियां होंगी। खासकर जब सूरज नं0 6 और सनीचर नं0 12 हो तो औरत पर औरत मरती जावे या मां बच्चों का ताल्लुक न देखे या सुख देखने से पहले ही मरती जावे।
शुक्र बुध दोनों ही नेक हालत के और मंगल नेक का साथ हो तो शादी औलाद का फल नेक व उम्दा होगा। बात को समझने के लिए चंद औरतों की कुण्डलियां बतौर मिसाल पेश हैं । समझदार के लिए इशारा ही काफी।
 
                 कुण्डली नं0 1 जन्मः7-11-1968   


कुण्डली नं02   जन्मः 14-4-1976



कुण्डली नं0 3    जन्मः 7-7-1978



 कुण्डली नं0 4    जन्मः 8-9-1978


             कुण्डली नं0 5  जन्मः 15-10-1967   


 कुण्डली नं06     जन्मः 8-5-1971


कुण्डली नं0 1 में खाना नं0 7 खाली जिसका मालिक शुक्र खाना नं0 6 में मन्दा और मंगल खानां नं0 4 में बद। शादी में ज़रा देर मगर दोनो ग्रहों के उपाय करने के बाद 30 सालां उम्र में शादी हो गई।
कुण्डली नं0 2 में खाना नं0 7 में राहु मन्दा। खाना न0 7 का मालिक शुक्र भी खाना नं0 12 में चन्द्र खाना नं0 6 से तंग। लिहाज़ा शादी जल्दी टूट गई। कई साल बाद दोनो ग्रहों के उपाय किये गये तब दूसरी शादी 37 साला उम्र में हुई।
कुण्डली नं0 3 खाना नं0 7 खाली और खाना नं0 1 में बृहस्पत सूरज मुश्तर्का। अगर 24 साला उम्र में शादी हो जाती तो ठीक था।
कुण्डली नं0 4 में खाना  नं0 7 खाली जिसका मालिक शुक्र खाना नं0 1 में चन्द्र के साथ तंग। 34 साला उम्र तक बुध भी मन्दा। बुध की उम्र के बाद चन्द्र को शुक्र से जुदा किया गया तो शादी की बात बन गई।
कुण्डली नं0 5 में खाना नं0 7 में सनीचर । सूरज खाना नं0 1 का सनीचर से टकराव जिसमें शुक्र की मिट्टी खराब । फिर शुक्र खाना नं0 12 में चन्द्र खाना नं0 6 से तंग। मंगल खानां नं0 4 में बद। शादी तो हुई पर पति का साथ लम्बा न चला।
कुण्डली नं0 6 में खाना नं0 7 खाली और खाना नं0 1 में सूरज बुध। शुक्र खाना नं0 12 में चन्द्र खाना नं0 6 से तंग। मंगल खाना नं0 10 में राहु के साथ मन्दा। शादी तो हुई पर पति का साथ लम्बा न चला ।
शादी का होना न होना या होकर खराब हो जाना ग्रहों का खेल है। मगर लाल किताब के उपायों से ग्रहचाल दुरूस्त करके फायदा लिया जा सकता है।

Thursday, February 5, 2015

माता की गोद

’’ ग्रह चैथे के रात को जागे,या जागे वह मुसीबत में।
     मदद कोई न हो जब करता, आ तारे वह बुढ़ापे में ।।’’
कुण्डली के खाना नम्बर 4 को लाल किताब में माता की गोद व पेट का ज़माना कहा गया है। माता का ताल्लुक दिल, दूध, धन-दौलत, कुदरती तौर पर तबीयत का झुकाव, शान्ति सुभाओ, सर्द तर मानिन्द पानी होगा। तहरीर जाती, माता का पेट, जिस्मानी हालत का असर, घोड़ा, दूध वाले चारपाये, आबी या पानी के जानवर, माता का खानदान, मासी फूफी का मकान, खाली तह ज़मीन, धरती माता, समन्दर पार या समन्दर का सफ़र, खुशी, बृहस्पत का धन, हौंसला, रस या फलों के रस , बजाजी कपड़े का काम, रूहानी ताकत मुताल्लिका सूरज, वक्त जवानी, साथ लाई हुई चन्द्र की चीज़ें, धन, मर्दों का ताल्लुक, रूहानी कारोबार, शुमाल मशरिक, बृहस्पत सूरज चन्द्र जैसे हों वैसा ही फल होगा। शुक्र मंगल बद या मंगलीक होंगे। ग्रह का असर मानिन्द रफ्तार केकड़ा होगा। यह सहन है खाना नम्बर 10 का और इस घर का मुन्सिफ सनीचर होगा।
चन्द्र खाना नम्बर 4 का मालिक है। दूध का सफेद चन्द्र, राहु केतु इस घर में पाप छोड़ने का हलफ लिये होते हैं। जिस तरह रात को जागने वाले आंख के होशियार होते हैं, उसी तरह ही इस घर के ग्रह रात को जागने या अपना असर रात को दिया करते हैं। या वह ग्रह आखिरी वक्त जब कोई मददगार न हो, मदद दिया करते हैं। बुढ़ापे में तो खासकर मदद करते हैं।
इस घर में चाहे सनीचर ज़हरीला सांप और मंगल जला हुआ मगर राहु केतु धर्मात्मा ही रहेंगे। या यूं कहो कि चुप होंगे और पाप न करेंगे। चन्द्र बन्द मुट्ठी (खाना नम्बर 1,4,7, 10) से बाहर चाहे रद्दी हो और उस वक्त खाना नम्बर 4 खाली हो तो चन्द्र का नेक असर होगा। नम्बर 4 में कोई भी अकेला ग्रह हो और चन्द्र बन्द मुट्ठी से बाहर मन्दा हो रहा हो तो नम्बर 4 वाला ग्रह नेक असर ही देगा। अपने घर खाना नम्बर 4 में चन्द्र खर्चने पर और बढ़ने वाला आमदन का दरिया होगा। माता के आर्शीवाद से माया की लहर बहर होगी।

Monday, January 5, 2015

अटल जी

साबिक वज़ीरे आज़म अटल बिहारी वाजपेयी जी पिछले दिनों ख़बरांे में आ गये जब हकूमत ने उनके योमे पैदायश पर उनको भारत रत्न देने का ऐलान किया। अब उनकी उम्र 90 साल हो गई है। अगर देखा जाये तो उनकी कामयाबी का दौर बुढापे में आया। जब वो पहली बार सन् 1977 में वज़ीर बने तो उनकी उम्र 52 साल हो चुकी थी । फिर शादी भी नही की। हां जब वह बाद में मुल्क के वज़ीरे आज़म बने तो एक पाकिस्तानी खातून ने कशमीर के बदले उनसे निकाह करने की पेशकश की थी। खैर बात आई गई हो गई। फिर शादी की उम्र तो बहुत पहले निकल चुकी थी। ग्रहों का अजब खेल। अटल जी की कुण्डली यकीनन दिलचस्पी का सबब होगी। उनकी कुण्डली इस तरह बताई जाती हैः-

जन्म 25-12-1924
 

 वर्षफल 91 साल



समझदार के लिए इशारा ही काफी। पापी टोला केन्द्र में, तरक्की रफ्ता रफ्ता वह भी बुढ़ापे में जब सिर के बाल पूरी तरह सफेद हो चुके थे। शुक्र खाना  नम्बर 2 में चन्द्र के साथ और खाना नम्बर 7 खाली, लिहाज़ा मंगल खाना नम्बर 6 ने मंगल गीत न गाये यानि शादी न हुई। बृहस्पत सूरज बुध मुश्तर्का खाना  नम्बर 3 अमूमन राजयोग मगर बुध छुपी शरारत कर सकता है। बुध ने शरारत की जब अटल जी की पहली सरकार सन् 1996 में 13 दिन बाद गिर गई थी। बाद में सन् 1998-1999 में फिर उनकी सरकार बनी तो उसने अपना समय पूरा किया।
फिर एक  अर्से के बाद सियासत ने पासा बदला तो हकूमत ने उनकी काबिलयत और खिदमते ख़लक के मद्दे नज़र उनको भारत रत्न देने की बात कही। दर असल अटल जी को जि़न्दगी में जो मिला वह बुढ़ापे में मिला क्योंकि खाना नम्बर 2 के ग्रह अपना नेक असर आमतौर पर बुढ़ापे में देते हैं। खुदा उनकी उम्र दराज़ करे। आमीन !