Wednesday, December 6, 2017

अपनी बात - 3

ग्रहों से पहले मुझे लकीरों का शौक हुआ था। कालेज में पहला साल ही था जब कीरो की किताब ’’वैन वर यू बौर्न’’  मेरे हाथ लगी। किताब अच्छी लगी इसलिए कई बार पढ़ी। फिर मैने रफ्ता-रफ्ता कीरो की बाकी किताबें भी हासिल की और उनको बार बार पढ़ा। लिहाज़ा मैं इस नतीजे पर पहंुचा कि कीरो (1866-1936) अपने दौर का बहुत बड़ा पामिस्ट था। इस दौरान दुनिया का कोई भी पामिस्ट उसके मुकाबिल खड़ा न हो सका। उसने अपने दौर की कई मशहूर हस्तियों के हाथों के छापे अपनी किताबों में दिये हैं। इसके अलावा उसने अपने हाथ का छापा भी दिया है। मेरे ख्याल में यह बहुत बड़ी बात है। कीरो को ’’फादर आफ पामिस्ट्री ’’ कहना गलत न होगा।
मैंने कीरो को ही अपना रहबर मान लिया और उसकी किताबों से पामिस्ट्री सीखने लगा। कुछ साल बाद मैंने हाथों के छापे भी लेने शुरू कर दिये जो सीखने और समझने में बहुत काम आये। बीस - बाईस साला उम्र में मेरे पास सैंकड़ो छापे जमा हो चुके थे। मेरी पशीनगोई  बाद में अक्सर सही निकलती थी। काम करने का तरीका कीरो वाला ही था। जिसे देखकर लोग दंग रह जाते थे। क्योंकि उस दौर में मैंने किसी भी पामिस्ट को हाथों का छापा लेते नही देखा। मेहनत और लगन का नतीजा निकलने लगा । दूसरे शहरों से छापे डाक के ज़रिए आने लगे। जिनका जवाब मैं ख़त के ज़रिए दिया करता था। फिर दूसरे मुल्कों से भी छापे आने लगे।
एक दिन एक लड़का मुझे हाथ दिखाने आया। मैंने उसके हाथ का छापा ले लिया और उसको कुछ दिन के बाद आने के लिए कहा तांकि मैं छापे का तसल्ली से मुआयना कर सकूं। उसके हाथ में एक अजब सीधी साफ सुथरी रेखा, गुरू के बुर्ज से बुध के बुर्ज तक, मेरे लिए एक नई बात थी। मैंने कीरो की किताबें दोबारा देख डाली मगर उस रेखा का केाई ज़िक्र न मिला। फिर मैंने पामिस्ट्री के कुछ और लेखकों की किताबें भी देखीं मगर उस रेखा की किसी ने भी बात न की थी।  वह अजब रेखा मेरे लिए सवालिया निशान बन के रह गई। मुझे अपने आप में कमी महसूस होने लगी।
उस रेखा ने मुझे परेशान कर दिया। यह कैसी रेखा थी जो पहले किसी ने नही देखी ? कीरो ने भी नही देखी, यह कैसे हो सकता था ? मैने कीरो की किताबें फिर से देखनी शुरू कर दीं। सुबह से शाम बस एक ही काम। एक दिन पढ़ते-पढ़ते रात को मेरी आंख कब लग गई, मुझे पता ही न चला। बादलों की गड़गड़ाहट से अचानक मेरी आंख खुली। आसमानी बिजली की चमक से कमरे में कुछ उजाला हुआ। मैंने देखा कुर्सी पर एक गोरा आदमी बैठा मुस्करा रहा था। चेहरा कुछ जाना पहचाना सा लगा। फिर बिजली की चमक गायब हो गई और कमरे में अंधेरा छा गया। यह क्या ? मैंने झट से उठकर कमरे की बिजली जलाई मगर कमरे में  कोई न था। कुर्सी खाली पड़ी थी। मेरे सिरहाने कीरो की किताब खुली पड़ी थी। मेरी नज़र उस पर पड़ी। उस रेखा के बारे तफ़सील से लिखा हुआ मिल गया। मैं हैरान रह गया। समझ नही आया कि यह कोई करिश्मा था या महज़ इत्तफ़ाक। ख़ैर मेरा मसला हल हो गया और दिल को सकून मिल गया।