Wednesday, October 14, 2015

तवाजुन

’’इतने बड़े जहां में अपना भी कोई होता, हम भी तो मुस्कराते अपना उसे बनाते’’।
 यह बात है एक 36 साला खातून की, जिसके पास सूरत है, तालीम है और अच्छी नौकरी है। मगर फिर भी जि़न्दगी में तन्हा है। यानि शादी की अब तक कोई बात न बनी। बाप बचपन में गुज़र गया और मां वक्त से पहले बेवा हो गई। एक बड़ी बहन है जिसकी शादी कब की हो चुकी है। भाई कोई है नही। बस एक बूढ़ी मां है जो आज भी उसकी शादी की उम्मीद किये बैठी है। वह चाहती है कि उसकी बेटी को उसके जीते जी कोई अच्छा हमसफ़र मिल जावे। क्या मां की उम्मीद पूरी होगी ? इस खातून की कुण्डली इस तरह है।



कुण्डली के चारो केन्द्र और ऊपर वाले घर खाली हैं। खाना नम्बर 3 भी अब खाली गिना जायेगा। इस तरह सब ग्रह खाना नम्बर 5, 6, 8 और 9 में बैठे हैं। देखा जाये तो कुण्डली में तवाजुन नही है। फिर किस्मत के घर खाना नम्बर 9 में चन्द्र ग्रहण जिसका मन्दा असर पहले मां बाप पर फिर अपने आप पर। शुक्र खाना नम्बर 5 में मंगल बद के साथ तंग और बुध की कोई मदद नही। तो क्या शुक्र का फल जल गया  जो अब तक शादी न हुई ? ग्रहों का अजीब खेल। खैर शुक्र की पालना और ग्रहण का उपाय करने से कोई नतीजा निकल सकता है। लेकिन उपाय (असली) लाल किताब के मुताबिक ही होगा। यह तभी होगा अगर रब्ब दी रहमत हो जावे। समझदार के लिए इशारा ही काफी।