Tuesday, April 11, 2017

ग्रह खेल-3

ज़िन्दगी इतफ़ाक है ....... ज़िन्दगी ग्रह खेल है, कल भी ग्रह खेल थी, आज भी ग्रह खेल है। यानि ग्रह खेल के मुताबिक ही ज़िन्दगी चलती है। तामिलनाडू की साबका वज़ीर-ए-आला अम्मा (जय ललिता) के गुज़र जाने के बाद उनकी एक करीबी मोहतरमा शशिकला नटराजन ने अन्ना डी.एम.के. पार्टी पर कब्ज़ा कर लिया। उसकी नज़र सूबे के वज़ीर-ए-आला की कुर्सी पर थी। उसने फरवरी में काम चलाऊ वज़ीर-ए-आला को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया। पार्टी ने भी शशिकला को वज़ीर-ए-आला का उम्मीदवार चुन लिया था। मगर इससे पहले बात आगे बढ़े, सुर्पीमकोर्ट में उसके खिलाफ चल रहे आमदनी से ज्यादा जायदाद होने के केस का फैसला आ गया। कोर्ट ने शशिकला को कसूरवार करार देते हुये चार साल की कैद और 10 करोड़ रूपए जुर्माने की सज़ा सुना दी। लिहाज़ा वज़ीर-ए-आला की कुर्सी पर पहुंचने की बजाय वह जेल में पहंुच गई। सोचा था क्या, क्या हो गया। आखि़र ऐसा क्यों हुआ ? यह जानने के लिए शशिकला की कुण्डली का जायज़ा लेना होगा। मेरी नज़र में जो उसकी कुण्डली गुज़री, वह इस तरह है।





कुण्डली में पापी टोला मन्दा है। ज़िन्दगी का हाल झूले की तरह ऊपर नीचे होता रहे। खाना नम्बर 8 में तीनों ग्रहों का असर मन्दा। राज दरबार का योग तो है मगर नेक नही। तालीम अधूरी रही मगर शादी सूबे एक सरकारी अफसर से हो गई। फिल्मों मे दिलचस्पी होने की वजह से अम्मा के करीब आने का मौका मिल गया। करीबी इतनी बढ़ी कि वह अम्मा के घर में परिवार के मैम्बर की तरह रहने लगी। फिर एक दिन अम्मा ने उसे घर से बाहर कर दिया मगर उसने फौरन मुआफी मांग ली और सिलसिला चलता रहा। इस साल के वर्षफल पर नज़रसानी करें तो राज दरबार का योग मन्दा। खाना नम्बर 5 और 10 के ग्रहों का टकराव और नतीजा धोखा हो गया।  लिहाज़ा सरकारी रोटी खाने के लिए वह जेल में पहंुच गई। समझदार के लिए इशारा ही काफी और नकलचीन से बस मुआफी।