Tuesday, March 7, 2017

जवाब

पिछले दिनों जालन्धर के एक वैदिक ज्योतिषी जी ने ’लाल किताब का सच’ वताने की नाकाम कोशिश की। आखिर में उन्होने लिखा कि ’आप अपने अनुभव हम से शेयर करें।’ लिहाज़ा मेरा 30-35 साला लाल किताब का तर्जुबा पेशे खिदमत है।
ज्योतिषी जी ने अपने लेख में पहले इतिहास की बात की। फिर हिन्दु मुस्लिम की बात की और कहा कि लाल किताब हिन्दुओं का ग्रन्थ नहीं है। अगर होता तो संस्कृत या हिन्दी में लिखा होता। उनके मुताबिक यह किताब 12वीं सदी में लिखी गई। इसके उपाय उल्टे पुल्टे हैं। लाल किताब भविष्य बताने में फेल है। पिछले कुछ दशकों से लाल किताब के नाम पर असली नकली साहित्य छपा है। लाल किताब में प्रश्न कुण्डली बनाने का कोई तरीका नहीं है। वर्षफल चार्ट पर कोई पहाड़ा लागू नहीं होता। किताब के उपाय मनघडं़त है। लाल किताब के ज्योतिषी कम पढ़े लिखे हैं वगैरा-वगैरा। और न जाने क्या-क्या कह दिया जैसे लाल किताब से उनकी कोई जाती दुशमनी हो। दरअसल थोड़ा ज्ञान खतरनाक ही होता है। तो क्या उन्होने नकली लाल किताब पढ़ ली ? वर्ना आलिम को इलम में शक क्या है।
लाल किताब 20वीं सदी में उर्दु ज़़ुबान में लिखी गई। ज्योतिषी जी असली किताब नहीं पढ़ सकते क्योंकि उनको उर्दु नहीं आता। यह किताब एक हिन्दु ब्राहम्ण ,पण्डित रूप चंद जोशी जी ने लिखी थी। इसमें हिन्दु देवी देवताओं की तस्वीरें भी हैं। इस लिए यह हिन्दुओं का ग्रन्थ ही हुआ। मुसलमान तो बाहर से फारसी लेकर यहां आये थे। उर्दु का जन्म बहुत बाद में हिन्दुस्तान में ही हुआ। इस लिए यह हिन्दी से कुछ मिलता है। आज़ादी के वाद पंजाब में उर्दु बन्द कर दिया गया। नतीजा आज की नसल को उर्दु नहीं आता। अब उर्दु आता नहीं, असली किताब देखी नहीं तो फिज़ूल बातों की क्या तुक हुई ? अगर बात के पीछे पुख्ता दलील हो तो ठीक लगता है।
वड़े भाई जी से मेरी इल्तिज़ा है कि किसी नतीजे पर पहुँचने से पहले असली लाल किताब पढ़ें, फिर बात कहें। लाल किताब को इसके नज़रिये से देखना ही मुनासिब होगा न कि पराशरी के नज़रिये से।
कई पराशरी के विद्धवानों से मैने पूछा कि क्या पराशरी पद्धति में उपाय होते हैं ? उन्होने  मुझे ग्रह शान्ति के लिए पूजा-पाठ, दान पुन्य बताया। यानी पराशरी में बाकायदा तौर पर ग्रहों का उपाय नहीं है। अब पूजा पाठ में हजारों रुपयों का खर्चा मगर लाल किताब के उपाय सस्ते में हो जाते हैं। कुछ पराशरी वाले लाल किताब के उपाय करवाते हैं जो उन्होने नकली किताबों से पढ़े होते हैं यानि आधा तीतर आधा बटेर, न छुआरा न बेर। अगर लाल किताब वाले कम पढ़े लिखे हैं तो पराशरी वाले कौन सा ज्यादा पढ़ गये। बस कोई कोई बी.ए. पास है। बात तो मेहनत और समझ की है।
आज लाल किताब इतनी मकबूल हो गई है कि इसके नाम पर नकल/नकली किताबें हिन्दी में धड़ाधड़ बिक रही हैं। बहुत लोग पराशरी छोड़ कर लाल किताब से आ जुड़े हैं। ज्यादातर लोग नकल/नकली किताब से ही काम चला रहे हैं। असली किताब उर्दु वाली तो जैसे गायब ही हो गई। पंजाब में असली लाल किताब तो चन्द लोगों के पास है। मेरी जानकारी के मुताबिक उनको कोई कमी नहीं है। कुछ पराशरी वालों को लाल किताब से ज़रा जलन है। वह असली किताब नहीं पढ़ सकते क्योंकि उनको उर्दु नहीं आता । इस लिए लाल किताब को गलत मलत कहते हैं। ’’खेल नहीं है दाग यारों से कह दो, आती है उर्दु ज़ुबान आते आते।’’ अब न उर्दु आये न लाल किताब भाये।

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