जुमला हकूक महफूज़
बिमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है, मगर मौत का कोई इलाज नही।
दुनियावी हिसाब किताब है, कोई दावा-ए-खुदाई नही ।
अस्ट्रोलोजी बेसड आन पामिस्ट्री (अंग्रेज़ी में) इल्मे सामुदि्रक की बुनियाद पर चलने वाले ज्योतिष की मदद से हाथ रेखा के ज़रिए दुरूस्त की हुई जन्म कुण्डली से जि़न्दगी के हालात देखने के लिए लाल किताब सन 1952 प्रिन्टर व पबिलशर शर्मा गिरधारी लाल साकन फरवाला डाकखाना नूरमहल, जि़ला जालन्धर नरेन्द्र प्रैस न्यू देहली जी हां, यह इबारत लाल किताब के पहले सफे पर उर्दू में लिखी हुई है।
किताब पर कीमत का कोई जि़क्र नही मगर अंग्रेज़ी में फार प्राइवेट सरकुलेशन लिखा हुआ है।
ज़ाहिर है कि गिनती की किताबें छपी जो आज कुछ लोगों के पास महफूज़ हैं। किताबों का पूरा सैट तो किसी किसी के पास होगा। कुछ घरों में लाल किताब बतौर शो पीस ही पड़ी है। क्योंकि वहां न तो किसी को उर्दू आता है और न ही किसी को ज्योतिष में शौक है।
शुरू शुरू में कुछ लोगों ने पैसे की खातिर लाल किताब की फोटो कापियां बनवाकर बेचीं। इससे खास फायदा न हुआ क्योंकि उर्दू जानने वाले लोग बहुत कम थे और जो हैं वो भी वक्त के साथ साथ खतम हो रहे हैं। पुरानी बात है एक सज्जन ने मुझसे लाल किताब मांगी थी। वह इसका हिन्दी में बदलाव करवाना चाहता था। मैने मुआफ़ी मांगते हुये उसको फोटो कापी के बारे में बताया। खैर वह फोटो कापी खरीद लाया । फिर उसने एक बूढ़े और एक लड़के को काम पर लगा दिया। यानि बूढ़ा उर्दू पढ़ने लगा और लड़का हिन्दी में लिखने लगा। कुछ महीने बाद हिन्दी में लिखे हुये कुछ कागज़ मुझे दिखाये गये। जब मैने गलितयों के बारे बताया तो उस सज्जन का मन इतना खराब हुआ कि उसने आगे का काम रूकवा दिया। खर्चा भी हुआ पर बात फिर भी न बनी। दरअसल बूढ़े को ज्योतिष नही आता था और लड़के को ज्योतिष और उर्दू दोनो नही आते थे। यही वजह रही कि गल् ती पर गल्ती होती गर्इ।
फिर किसी ने लाल किताब का हिन्दी में उल्टा सीधा तर्जमा करके छपवा दिया। इससे उसको तो फायदा हुआ होगा मगर लाल किताब की मिटटी खराब हो गर्इ। खैर उस सज्जन ने नकली किताब खरीद ली । वह कुछ महीनों में किताब का माहिर बन बैठा और बड़े बड़े दावे करने लगा। फिर और भी नकली किताबें बाज़ार में आ गर्इ। हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर नकली किताब तैयार करने कराने वालों को उर्दू नही आता।
आजकल हर महीने किसी न किसी शहर ज्योतिष सम्मेलन होता रहता है। उनमें ज्योतिषी भाई बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। नकली किताबों वाले अपनी काबालियत की ढीगें मारते हैं। कई बार तो आपस में गल्त बहस करते हैं । जिसे सुनकर हंसी आती है। फिर पराशरी वालों को भी लाल किताब पर हंसने का मौका मिल जाता है। ऐसा नकली किताबों की वजह से होता है। चलो बातें तो बहुत हो गर्इं। अब सवाल यह है कि मसला कैसे हल किया जाये। पहला तरीका........उर्दू सीखा जाये। लाल किताब हासिल की जाये। अगर न मिले तो उसकी फोटो कापी ले ली जाये। उसको पढ़ा और समझा जाये। फिर लाल किताब की बात की जाये। कुछ लोगों ने ऐसा किया है। दूसरा तरीका........कोई ऐसा आदमी जिसे उर्दू आता हो और लाल किताब को भी समझता हो, वह किताब को हुबहू हिन्दुस्तानी में लिखवा दे तो बात बन जाये। अब पता नही यह कब हो, हो या न हो। दोनो ही तरीकों में वक्त और मेहनत की ज़रूरत है। मगर वक्त की कमी है और मेहनत भी कौन करे । तो फिर क्या करें ? दोनो तरफ मुशिकल है। अब कौन सिर खपार्इ करे। नकली किताब ही चलेगी। ज्यादातर लोग नकली किताब ही तो पढ़ते हैं। वैसे भी अपने मुल्क में नकल से काम चलता है। असली किताब न चल्ले, नकली किताब बल्ले बल्ले।
बिमारी का बगैर दवाई भी इलाज़ है, मगर मौत का कोई इलाज नही।
दुनियावी हिसाब किताब है, कोई दावा-ए-खुदाई नही ।
अस्ट्रोलोजी बेसड आन पामिस्ट्री (अंग्रेज़ी में) इल्मे सामुदि्रक की बुनियाद पर चलने वाले ज्योतिष की मदद से हाथ रेखा के ज़रिए दुरूस्त की हुई जन्म कुण्डली से जि़न्दगी के हालात देखने के लिए लाल किताब सन 1952 प्रिन्टर व पबिलशर शर्मा गिरधारी लाल साकन फरवाला डाकखाना नूरमहल, जि़ला जालन्धर नरेन्द्र प्रैस न्यू देहली जी हां, यह इबारत लाल किताब के पहले सफे पर उर्दू में लिखी हुई है।
किताब पर कीमत का कोई जि़क्र नही मगर अंग्रेज़ी में फार प्राइवेट सरकुलेशन लिखा हुआ है।
ज़ाहिर है कि गिनती की किताबें छपी जो आज कुछ लोगों के पास महफूज़ हैं। किताबों का पूरा सैट तो किसी किसी के पास होगा। कुछ घरों में लाल किताब बतौर शो पीस ही पड़ी है। क्योंकि वहां न तो किसी को उर्दू आता है और न ही किसी को ज्योतिष में शौक है।
शुरू शुरू में कुछ लोगों ने पैसे की खातिर लाल किताब की फोटो कापियां बनवाकर बेचीं। इससे खास फायदा न हुआ क्योंकि उर्दू जानने वाले लोग बहुत कम थे और जो हैं वो भी वक्त के साथ साथ खतम हो रहे हैं। पुरानी बात है एक सज्जन ने मुझसे लाल किताब मांगी थी। वह इसका हिन्दी में बदलाव करवाना चाहता था। मैने मुआफ़ी मांगते हुये उसको फोटो कापी के बारे में बताया। खैर वह फोटो कापी खरीद लाया । फिर उसने एक बूढ़े और एक लड़के को काम पर लगा दिया। यानि बूढ़ा उर्दू पढ़ने लगा और लड़का हिन्दी में लिखने लगा। कुछ महीने बाद हिन्दी में लिखे हुये कुछ कागज़ मुझे दिखाये गये। जब मैने गलितयों के बारे बताया तो उस सज्जन का मन इतना खराब हुआ कि उसने आगे का काम रूकवा दिया। खर्चा भी हुआ पर बात फिर भी न बनी। दरअसल बूढ़े को ज्योतिष नही आता था और लड़के को ज्योतिष और उर्दू दोनो नही आते थे। यही वजह रही कि गल् ती पर गल्ती होती गर्इ।
फिर किसी ने लाल किताब का हिन्दी में उल्टा सीधा तर्जमा करके छपवा दिया। इससे उसको तो फायदा हुआ होगा मगर लाल किताब की मिटटी खराब हो गर्इ। खैर उस सज्जन ने नकली किताब खरीद ली । वह कुछ महीनों में किताब का माहिर बन बैठा और बड़े बड़े दावे करने लगा। फिर और भी नकली किताबें बाज़ार में आ गर्इ। हैरानी की बात यह है कि ज्यादातर नकली किताब तैयार करने कराने वालों को उर्दू नही आता।
आजकल हर महीने किसी न किसी शहर ज्योतिष सम्मेलन होता रहता है। उनमें ज्योतिषी भाई बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। नकली किताबों वाले अपनी काबालियत की ढीगें मारते हैं। कई बार तो आपस में गल्त बहस करते हैं । जिसे सुनकर हंसी आती है। फिर पराशरी वालों को भी लाल किताब पर हंसने का मौका मिल जाता है। ऐसा नकली किताबों की वजह से होता है। चलो बातें तो बहुत हो गर्इं। अब सवाल यह है कि मसला कैसे हल किया जाये। पहला तरीका........उर्दू सीखा जाये। लाल किताब हासिल की जाये। अगर न मिले तो उसकी फोटो कापी ले ली जाये। उसको पढ़ा और समझा जाये। फिर लाल किताब की बात की जाये। कुछ लोगों ने ऐसा किया है। दूसरा तरीका........कोई ऐसा आदमी जिसे उर्दू आता हो और लाल किताब को भी समझता हो, वह किताब को हुबहू हिन्दुस्तानी में लिखवा दे तो बात बन जाये। अब पता नही यह कब हो, हो या न हो। दोनो ही तरीकों में वक्त और मेहनत की ज़रूरत है। मगर वक्त की कमी है और मेहनत भी कौन करे । तो फिर क्या करें ? दोनो तरफ मुशिकल है। अब कौन सिर खपार्इ करे। नकली किताब ही चलेगी। ज्यादातर लोग नकली किताब ही तो पढ़ते हैं। वैसे भी अपने मुल्क में नकल से काम चलता है। असली किताब न चल्ले, नकली किताब बल्ले बल्ले।
1 comment:
ठाकुर साहब,
आप जो कह रहे हैं सारी बातें सही हैं परन्तु ये बात हम लाल किताब समझने वालों से अधिक अच्छी तरह कौन समझ सकता है कि अत्यधिक बुद्धिमान व्यवसायिक ब ुद्धिमान हो जरूरी नहीं। हम सिर्फ बुद्धिमान हैं और वो जिसका इशारा आपने अपने आर्टिकल में किया है व्यवसायिक बुद्धिमान। हो सकता है आपको, मुझको लाल किताब का ज्ञान उनसे कहीं अधिक हो लेकिन हमारी कुण्डली में सिर्फ लोगों की परेशानी हल करने का ही योग है उनकी कुण्डली में पैसा कमाने का योग है।
हम दूसरों के बुध का इलाज तो आसानी से बता देते हैं परन्तु शायद अपनी कुण्डली में खराब बुध का इलाज ही नहीं कर पाते।
samshad ahmad
Post a Comment