Tuesday, May 25, 2010

वासदेव

वासदेव जी पेशे से इन्जीनियर, एक कम्पनी में आला ओहदे पर काम करते थे। कम्पनी ने उनको विदेश भेजा, जहां उन्होने काफी धन कमाया । जब वापिस वतन लौटे तो दौलत और तजुर्बा दोनो उनके पास थे। उनके मन में अपना कारोबार करने की बात आई। लिहाज़ा सन् 1973 के आस पास नौकरी छोड़कर ऊना में अपनी रबड़ प्लास्टिक की फैक्टरी लगाने में जुट गये। बैंक से कर्ज़ा भी लेना पड़ा । फैक्टरी लग गई और काम शुरू हो गया। खर्चा बहुत हो गया मगर कामयाबी न मिली । बल्कि नुक्सान होने लगा। आखिर फैक्टरी बन्द करनी पड़ी। लाखों रूपए के कर्ज़े की वापसी भी मुश्किल हो गई। अपना भी सब कुछ लगा दिया था। इस तरह अर्श से फर्श पर आ गए।


सन् 1996 में उन्होने अपनी कुण्डली मेरे आगे रख दी। मैने कहा कि आप तो खुद ज्योतिष जानते हैं। लाल किताब आपके पास है। आप पण्डित जी के भी करीब थे। उन्होने कुछ तो बताया होगा । वासदेव जी बोले कि पण्डित जी ने कहा था कि बुध को ठीक कर लो। बुध के उपाय दो-दो तीन-तीन बार कर लिए मगर कोई फायदा न हुआ। मैने कहा कि मंगल से काम लिया होता ।

खैर वासदेव जी ने मंगल के उपाय कर लिये पर कोई फायदा न हुआ। कुछ महीने बाद मैने ऊना जाकर उनकी बन्द फैक्टरी देखी। एक जगह छत में से रोशनी आ रही थी। मैने उनको रोशनी बन्द करवाके दोबारा मंगल के उपाय करने की सलाह दी। दोबारा उपाय करने के कुछ देर बाद फायदा शुरू हो गया। रफता रफता उनके हालात बदलने लगे। बेटी का रिश्ता कैनेडा में हो गया। जिसकी वजह से बेटे भी कैनेडा चले गये। कुछ सालों में सारे कर्ज़े उतर गये। खुद भी दो बार कैनेडा घूम आए । यानि फिर से कुशल मंगल हो गया।

कुण्डली पर गौर करें तो बुध की 34 साला उम्र से मन्दा ज़माना शुरू हुआ जो तकरीबन ग्रहण की मियाद तक जारी रहा । बुध शुक्र शनि, छत से रोशनी मन्दी जिसको हटाया गया। बुध को मंगल से ठीक किया गया। ग्रहण का उपाय भी किया। ग्रहचाल दुरूस्त होने से सब फिर ठीक हो गया।

वासदेव जी सन् 2006 में बा-इज्ज़त दुनिया से कूच कर गए।

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