Friday, March 12, 2010

सफर का हुक्मनामा

कोई ज़माना था जब हिन्दुस्तान को सोने की चिड़िया कहा जाता था। 11वीं सदी में दूसरे मुल्कों के लोग सोने की खातिर यहां आने लगे। पहले मुसलमान, मुगल, पठान फिर अंग्रेज़ आए जिन्होने मुल्क पर सालों तक हुकुमत (राज) भी की। इसी दौरान कुछ लुटेरे जैसे महमूद गज़नवी, मुहम्मद गौरी, नादिर शाह, अहमदशाह अब्दाली वगैरह भी आए जिन्हों ने   इस मुल्क खूब लूटा और बेशुमार धन दौलत ले गए। मुल्क की आज़ादी के बाद बीसवीं सदी में हिन्दुस्तानी धन दौलत कमाने के लिए दूसरे मुल्कों में जाने लगे। आज अमरीका, कैनेडा, आस्ट्रेलिया जाने के लिए नौजवानों में बहुत जोश है। इसी बीच नौजवानों को दूसरे मूल्कों को भेजने के नाम पर ऐजण्टों ने ठग्गी भी शुरू कर दी है । इसलिए ग्रहों को देख लेना ज़रूरी होगा कि क्या किस्मत में दूसरे मुल्क का सफर है भी या नही?
दरियाई सफर का मालिक चन्द्र, हवाई सफर का मालिक बृहस्पति और खुश्की के सफर का निगरां (देखने वाला) शुक्र मगर सब ही सफरों का हुक्मनामा जारी करने वाला ग्रह केतु होगा। इसलिए हर एक किस्म के जुदा-जुदा सफर के लिए ग्रह मतल्लका (सम्बन्धित ) का भी ख्याल रखना होगा।



चन्द्र से सफर
1 चन्द्र को सफेद रंग घोड़ा तसव्वुर (ख्याल) किया है जो दर असल दरियाई या समुन्द्री कहलाता है और समुन्द्र पर चांद का चांदनी की तरह दम के दम में फिर आता है । मगर खुश्की या शुक्र के घर से दुश्मनी करता है और ठोकरें मारता है।
2 जब चन्द्र से शुक्र का ताल्लुक (सम्बन्ध) हो जावे तो खुश्की या शुक्र के ताल्लुक के सफर अमूमन हाेंगे या चन्द्र को खुश्की का चक्र लगा रहेगा। चन्द्र खुद हमेशा सफर में रहता है और शुक्र तो दुश्मनी नही करता मगर चन्द्र ही दुश्मनी करता है। इसलिए चन्द्र का सफर खुद अपने लिए कभी नुक्सान वाला न होगा मगर सफर ज़रूर दरपेश रहेगा यानि करना पड़ेगा और अमूमन खुश्की का होगा।

3  ज़रूरी सफर, जब चन्द्र का सूरज या बृहस्पति से ताल्लुक होवे तो ऐसा सफर समुन्द्र पार,राज दरबार के काम से होगा। अगर बुध से ताल्लुक हो जावे तो तिजारती (व्यापारक) या कारोबारी सफर होगा।

सौ दिन तक की मियाद का सफर कोई सफर नही गिना जाता। नीचे दी गई हालतों में किया गया सफर मन्दे नतीजे देगा :-



वर्षफल के हिसाब से जब चन्द्र या केतु अच्छे घरों में हो या केतु पहले घरों में हो और चन्द्र होवे केतु के बाद वाले (साथी दीवार) घर में तो सफर कभी अपनी मर्ज़ी के बरखिलाफ (उल्ट ) न होगा और न ही कोई मन्दा नतीजा देगा। शर्त यह है कि चन्द्र खुद रद्दी न हो रहा हो । सफर का फैसला अमूमन केतु के बैठा होने वाले घर (वर्षफल के हिसाब से) के मुताबिक (अनुसार) होगा यानि जब केतु बैठा हो :-

घर  न.1
                   अपने आप को सफर के लिए तैयार रखो और बिस्तरा तक बांध लो। हुक्मनामा बेशक हो चुके मगर आखिर पर सफर न होगा। अगर हो भी जाये तो दोबारा वापिस आना पड़ेगा। सौ दिन के अन्दर तक आरज़ी (अस्थाई) तौर पर बाहर रहने का सफर हो सकता है । खासकर जब खाना नं0 7 खाली हो ।

घर न.2
तरक्की पाकर आसूधा (अच्छा ) हाल में सफर होगा। होंगी तो दोनों बाते होंगी (तरक्की और सफर)। वर्ना एक न होगी, जब तक खाना नम्बर 8 का मन्दा असर शामिल न हो।यानि खाना नं0 8 में केतु का दुश्मन ग्रह न हो ।

घर न.3
भाई बन्धुओं से दूर परदेस की ज़िन्दगी होगी जब खाना नं0 3 सोया हुआ हो यानि केतु पर किसी ग्रह की दृष्टि या साथ वगैरह न हो ।

घर न.4
अव्वल तो सफर न होगा और अगर होगा तो माता बैठी होने वाले शहर या माता के चरणों तक होगा। फिर भी होगा तो न ही मुकाम (जगह) की तबदीली और न ही सफर कभी मन्दा होगा जब तक खाना नं0 10 मन्दा न हो यानि खाना नं0 10 को कोई ग्रह मन्दा न कर रहा हो ।

घर न.5
मुकाम या शहर की तबदीली तो कभी देखी नही गई मगर महकमें के अन्दर या शहर, घर या कमरे की तबदीली हो जाये तो बेशक । हर हाल नतीजा मन्दा न होगा जब तक बृहस्पति नेक हो ।

घर न.6
सफर का हुक्मनामा हो हुआकर तबदीली शहर का हुक्म एक दफा तो ज़रूर मन्सूख (रद्द) होगा। जब तक केतु जागता हो यानि सफर होने की उम्मीद नहीं ।

घर न.7
जद्दी घरबार का सफर (तबदीली ज़रूरी तरक्की की शर्त नही) ज़रूर होगा। अगर वह (टेवे वाला) खुद-ब-खुद (अपने आप) खुशी से न जावे तो बीमार वगैरह होकर या बतौर लाश वहां जावे । किस्सा कोताह (आखिरकार) तबदीली शहर या सफर ज़रूर होगा और नतीजा नेक होगा जब तक खाना नं0 1 मन्दा न हो और केतु जागता हो।

घर न. 8
कोई खास खुशी का सफर न होगा। बल्कि अपनी मर्ज़ी के बरखिलाफ या मन्दा ही सफर होगा, जब तक खाना न.11में केतु के दुश्मन (चन्द्र या मंगल) न हो । केतु की इस मन्दी हवा का असर केतु के मतल्लका अशिया ( यानि कान, रीढ़ की हड्डी, टांगों की बिमारियां, जोड़ो का दर्द, गठिया वगैरह) या खुद केतु (जानवर या तीन दुनियावी कुत्तो) पर भी हो सकता है । चन्द्र का उपाय यानि धर्म मन्दिर में और कुत्तो को (एक ही रोज़ दोनों को) लगातार 15 रोज़ (दिन) तक हर रोज़ दूध देना या खाना नं0 2 को नेक कर लेना या नं0 2 का किसी ओर ग्रह से नेक होना मददगार होगा।

घर न.9
मुबारक (शुभ) हालत खुशी खुशी अपने जद्दी इलाकों (घर बार) की तरफ का और अपनी दिली मर्ज़ी पर सफर होगा। नतीजा हमेशा नेक व उत्ताम होगा जब तक खाना नं0 3 का मन्दा असर शामिल न हो।

घर न.10
शक्की हालत, सनीचर उम्दा तो दुगुना उम्दा । लेकिन अगर सनीचर मन्दा तो दुगना मन्दा, नुकसान वाला और बे-मौका (बिना समय का) सफर होगा। अगर खाना नं0 8 मन्दा हो तो मन्दी हवा के मायूस (दुख भरे )झौंके ज़रूर साथ होंगे। खाना नं0 2 मददगार होगा। चन्द्र का उपाय बजरिया खाना नं0 5 (औलाद या खुद सूरज को चन्द्र की अशिया यानि दूध पानी का अर्घ ) सूरज की तरफ मुंह करके पानी गिरा देना वगैरह मुबारक फल देगा।

घर न.11
सफर का हुक्मनामा ऊपर से बड़े अफसरों से चलकर नीचे तक पहुंच ही न सकेगा। सफर का मालिक केतु दुनियावी दरवेश कुत्ताा रास्ते में ही लेटा होगा। यानि असली मुकाम से वह पहले ही तबदील होकर किसी दूसरी जगह सफर के रास्ते में ही बैठा होगा। यहां से आगे सफर का सवाल दरपेश (सामने) होगा। फर्ज़ी हिलजुल होगी। अगर सफर हो ही जावे तो ग्यारह गुना उम्दा होगा जब तक खाना नं0 3 से मन्दा असर शामिल न होवे।

घर न.12
अपने बाल बच्चों के पास रहने और ऐश व आराम करने का ज़माना होगा। तरक्की ज़रूर होगी मगर तबदीली की शर्त न होगी। अगर सफर हो तो नफ़ा (लाभ) ही होगा। केतु अपना उच्च फल देगा और नतीजा मुबारक होगा जब खाना नं0 6 उम्दा और नं0 2 नेक हो और नं0 12 को ज़हर न देवे । यानि खाना नं0 6 और 2 के ग्रह खाना नं0 12 पर मन्दा असर न कर रहें हों ।
चन्द मिसाले

जब केतु सफर का हुक्मनामा जारी करता है तो कुण्डली वाला एक बार तो ज़रूर सफर पर रवाना हो जाता है। चन्द कुण्डलियां बतौर मिसाल पेश हैं । समझदार के लिए इशारा ही काफी होगा।



कुण्डली नं0 1 पंजाब के जाने माने ज्योतिषी गौतम ऋषि पराशर जी की है। सूरज के पक्के घर खाना नं0 1 में चन्द्र बृहस्पति और केतु खाना नं0 3 परदेस की ज़िन्दगी। सन् 1994 में केतु ने सफर का हुक्मनामा जारी कर दिया और सफर का सिलसिला आज भी जारी है। वह अब तक 18-19 बार कैनेडा, अमरीका और दूसरे मूल्कों का दौरा कर चुके हैं।


कुण्डली नं0 2 एक सिविल इंजनियर की है। चन्द्र के घर खाना नं0 4 में सूरज बृहस्पति और सूरज के पक्के घर खाना नं0 1 में चन्द्र। लिहाज़ा सफर ज़रूरी। सन् 1977 से 1986 तक सल्तनते ओमान में एक कंस्ट्रक्शन कम्पनी में नौकरी कीं। इसी दौरान 4-5 बार अपने मुल्क में भी आए।


कुण्डली नं0 3 एक मकैनिकल इंजनियर की है । चन्द्र अपने घर खाना नं0 4 में और सूरज का साथ । शुक्र खाना नं 3, कोई लड़की समुन्द्र पार से बुला रही है। लिहाज़ा अमरीका से एक पंजाबी लड़की से शादी हुई और सन् 1987 से वहीं बस गए। अब तक कई मुल्कों का सफर कर चुके हैं।


कुण्डली नं04 में चन्द्र का सूरज और बृहस्पति से दृष्टि द्वारा ताल्लुक और केतु ने सफर करा दिया । कुण्डली वाला सन् 2000 से इटली में काम कर रहा है । इस दौरान तीन बार अपने मुल्क भी आया।


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