Wednesday, January 6, 2021

रुपया

 19 वीं सदी में हिंदुस्तान पर अंग्रेजी कंपनी सरकार बहादुर की हुकूमत थी। सन 1857 के ग़दर के बाद मुल्क की हुकूमत ब्रिटिश क्राउन के पास चली गई और इंग्लैंड का राजा हिन्दोस्तान का महाराजा हो गया। लिहाज़ा सिक्कों पर उसके नाम के साथ किंग एंड एम्परर लिखा जाने लगा। उस वक्त रुपया लगभग खालिस चांदी का था। जिसका वज़न एक तोला या साढ़े ग्यारह ग्राम के आस पास होता था। मगर 20 वीं सदी के शुरू में जब दुनिया की पहली बड़ी जंग शुरू हुई तो रुपये में चांदी कम होने लगी। फिर कुछ साल बाद दूसरी बड़ी जंग हुई जो सन 1945 में खत्म हुई। अब रुपये में भी चांदी ख़त्म हो चुकी थी। रुपया बस साधारण धातु का ही रह गया था। सन 1947 आज़ादी के बाद रुपये पर भारत सरकार का नाम आ गया। 20 वीं सदी के आखिर में स्टील का हो गया। फिर 21 वीं सदी में रुपये का आकार छोटा हो गया। चांदी का रुपया तो कहानियों में गुम हो गया था। हालाँकि इसकी कीमत सैकड़ों में है। ज्यादातर लोगों ने चांदी का रुपया देखा ही नहीं।

ऐसा ही कुछ लाल किताब के साथ हुआ। आखिरी किताब सन 1952 में उर्दू में छपी। वह भी कम गिनती में प्राइवेट सर्कुलेशन के लिए। किताब पर लेखक का नाम तो नहीं है मगर माना जाता है किताब मरहूम पंडित रूप चंद जोशी जी ने लिखी। पंडित जी के जीवन काल में किताब का कोई खास नाम न हुआ। शायद इसकी वजह ये थी कि पंजाब में उर्दू की तालीम बन्द हो गई थी। पंडित जी ने लाल किताब कई लोगों को दी उन लोगों में एक मैं भी हूँ। किताब पढ़ने के लिए मुझे उर्दू सीखना पड़ा। पंडित जी के इंतकाल के कई साल बाद, 20 वीं सदी के अंत में लाल किताब का नाम होने लगा। फिर क्या था, कई लाल किताबें हिंदी में छप गईं और धड़ाधड़ बिकने लगीं कोई प्राचीन लाल किताब तो कोई असली लाल किताब मगर सब के सब नकली। शायद एक आध नक़ल हो। मगर कैसे जानें? असली किताब देखी नहीं, उर्दू आता नहीं। उर्दू पढ़ने वाले भी मर मरा गए। आगे लाल किताब को संभालने वाला न था। किसी को दीमक चाट गई, कोई ख़राब हो गई तो कोई रद्दी में चली गई। आज चन्द घरों में लाल किताब बतौर शो पीस पड़ी है। लाल किताब जोतिश करने वाले ज्यादातर लाल किताबियों ने असली किताब देखी ही नहीं। देख भीं लें तो भी क्या होगा जब उर्दू ही नहीं आता। बस नकली किताबों से काम चला रहे हैं। आज ज़रूरत है उर्दू सीखने की ताकि जो काम पंडित जी ने शुरू किया था, उसको आगे बढ़ाया जा सके। अगर लाल किताब को संभाला न गया तो ये भी चांदी के रूपये की तरह कहानियों में गुम हो कर रह जायेगी।

1 comment:

Sanjay Garg said...

Bahut Khoob Thakur ji...

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