लाल किताब के बारे कुछ सवाल उठते हैं। जैसे असली किताब उर्दू वाली पर लेखक का नाम
नहीं है। खोज़ करने पर पता चला कि मरहूम पण्डित रूप चन्द जोशी जी किसके जन्मदाता थे।
उनके जीवनकाल में बहुत कम लोग लाल किताब या पण्डित जी के बारे में जानते थे। पंजाब
के बाहर तो लाल किताब का कोई वजूद न था। समय गुज़रता गया । पण्डित जी के इंतकाल के कुछ
साल बाद लाल किताब के बारे में कुछ पता लगने लगा जब हिन्दी में नकल या नकली किताबें
बाज़ार में आने लगी और वह भी लेखक के नाम के साथ। फिर एक दो किताबें ऐसी भी आईं जिनके
बारे दावा किया गया कि वह असली लाल किताब का हिन्दी रूपान्तर हैं । नकली किताबों की
इस भीड़ में असली किताब तो पहले ही गायब हो गई थी। अब तो बस नकली का बोलबाला है। लेकिन
नकल में असल की खुशबू कहां ?
मुझे कई बार पण्डित जी
से मिलने का मौका मिला। वह कुण्डली देखने के पैसे नही लेते थे। हालांकि वह कोई अमीर
आदमी न थे। फौज में नौकरी ज़रूर की थी। वह गिने चुने लोगों की ही कुण्डली देखते थे।
अगर लाल कलम से कुछ लिख देते थे तो वह अक्सर पूरा हो जाता था। उनके जीवन काल में ही
एक आदमी उनके गांव फरवाला में लाल किताब लेकर बैठ गया और कुण्डली देखने के पैसे लेने
लगा। पण्डित जी को बुरा लगा और गुस्सा भी आया। पण्डित जी के इन्तकाल के बाद उस आदमी
का काम चलने लगा। रफता रफता लोग उसे ही लाल किताब वाला ज्योतिषी समझने लगे। आज कुछ
ज्योतिषी फख़र से कहते हैं कि वह पण्डित जी से मिले थे। दर असल वह पण्डित जी से नही
उस आदमी से मिले थे।
हैरत की बात है कि एक आम
आदमी ने ज्योतिष की एक खास ओ खास गैर मामूली किताब लिख डाली। एक नई चीज़, गागर में सागर, एक अनोखी किताब जो किसी आम आदमी का काम नही हो सकता। ऐसा काम तो कोई खुदा रसीदा
इन्सान ही कर सकता है। इसके बावजूद दौलत और शोहरत पण्डित जी से दूर रही। समय के साथ
साथ लाल किताब मकबूल हुई। आज कुछ ज्योतिषी लाल किताब के नाम पर दौलत और शोहरत बटोर
रहे हैं। कईयों की रोज़ी रोटी चल रही है। हालांकि ज्यादातर ने न तो असली किताब कभी देखी
और न ही उनको उर्दू आवे । मगर वह नकली किताब के बलबूते लाल किताब के माहिर बन बैठे
हैं।
सोचने की बात है कि जिस
नेक इन्सान ने लाल किताब जैसी ज्योतिष की अनोखी किताब लिखी उसे दुनिया में दौलत और
शोहरत न मिली। मगर आज नकली किताब वालों की चांदी है। आखिर ऐसा क्यों हुआ ? इसका जवाब पण्डित जी की कुण्डली ही दे सकती है । अगर लाल किताब
के किसी तालिब ने उनकी कुण्डली देखी हो तो वह ग्रहों का खेल समझ ही गया होगा।
'' समा करे नर क्या करे, समा बड़ा बलवान,
असर ग्रह सब पर होगा, परिन्द पशु इन्सान।''
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