Tuesday, April 5, 2011

चन्द्र

उम्र की किश्ती का समुंद्र, जगत की धरती माता, दयालु शिव जी भोले नाथ । चन्द्र का सफेद रंग (दूध) समुंद्री व हवाई घोड़ा, अपनी ताकत की ज्यादती के सबब मैदान-ए-जंग(खाना नं. 3) मालिक की मौत (खाना नं. 8) और खुराक में कंकर (खाना नं. 7) आने पर दुनिया में तीन दफा जागा। इसलिए नौ ग्रह बारह राशि की नौ निधि व बारह सिध्दि का मालिक हुआ। इन्सान की पैदायश नौ महीने, घोड़े की पैदायश 12 महीने।


''बढ़े दिल मुहब्बत जो पांव पकड़ती,


उम्र नहर तेरी, चले ज़र उछलती।''


दिल का मालिक चन्द्र है जो सूरज से रोशनी लेता है और दुनिया में उसका नायाब उल सल्तनत है। सूरज ख्वाह कितना ही गर्म होकर हुक्म देवे मगर चन्द्र उसे ठण्डे दिल और शान्ति से बजा लाता है और हमेशा सुरज के पांव में रहना चाहता है। चन्द्र बेशक सूरज से दूर हो मगर सूरज के पांव में बहता रहता है। स्त्री (शुक्र) माई (चन्द्र) साले, बहनोई (मंगल नेक) और अपने भाई (मंगल बद) गुरू और पिता (बृहस्पत) सब के सब इस दिल के दरिया (चन्द्र ) की यात्रा को आते हैं जो सूरज की चमक से दबी हुई आंखों (सनीचर) और दिमाग (बुध) को शान्ति और ठण्डक (चन्द्र का असर) देता है। दूसरे लफज़ों में दरिया दिल के एक किनारे दुनिया के सब रिश्तादार और दूसरी तरफ इन्सान का अपना जिस्म व रूह (सूरज) और चश्म व सिर (सनीचर व बुध) बैठे हैं और दिल दरिया उन दोनों के दरमियान चलता हुआ दोनों तरफ में अपनी शान्ति से उम्र बढ़ा रहा है या जिस्म इन्सानी को बृहस्पत की हवा के सांस से हरकत में रखने वाली चीज़ यही दिल है। इसलिये उसके मालिक चन्द्र की चाल से उम्र के सालों की हदबंदियां मुकर्रर की हैं।


चांदी की तरह चमकती हुई चांदनी भरी रात चन्द्र का राज है। जिसके शुरू में राहु आखिर पर केतु और दरमियान में खुद शनि निगरां हैं। गोया पापी टोला (राहु केतु सनीचर इकट्ठे) अपनी जन्म वाली और जगत माता ही के दरबार में हर एक के आराम और खुद माता के अपने दूध में ज़हर डालने की शरारतों के लिए तैयार हैं। बेशक दूध (चन्द्र) और ज़हर (पापी ग्रह) मिल रहे हैं मगर फिर भी दरिया दिल चन्द्र माता दुनिया के समुंद्र के पानी में सूरज का अक्स ज़रूर होगा। जिसकी शहादत के लिए ज़माने की हवा या इन्सानी सांस का मालिक जगत गुरू बृहस्पत हर जगह मौजूद है।


अपने हाथों माता की सेवा करने का ज़माना 24 साला उम्र यानि चन्द्र । वक्त मुसीबत एक पर ही मन्दा होगा । खानदान ही नष्ट नही होने देगा। टेवे में जब पहले घरों में बृहस्पत और बाद के घरों में केतु हो तो चन्द्र मन्दा ही होगा। लेकिन जब तक बुध उम्दा होवे, चन्द्र का असर दूध की तरह उम्दा ही रहेगा और सोया हुआ चन्द्र भी उत्ताम फल देगा । खुद ऐसा चन्द्र तो जागता हुआ घोड़ा होगा। शुक्र देखे चन्द्र को, औरतों की मुखालिफत होगी। चन्द्र देखे शुक्र को फकीर साहिब कमाल, तमाम नशेबाज़ों का सरदार साहिब कमाल । सूरज का अक्स (जैसा भी टेवे में सूरज की हालत हो) ज़रूर ही चन्द्र के असर में साथ मिलता रहेगा और मंगल बद डरकर कोसो दूर भागता रहेगा। चन्द्र के घर अकेला बैठा हुआ ग्रह ख्वाह कोई भी  हो  , उत्ताम फल देगा । जब चन्द्र का घर नं. 4 खाली हो तो खुद चन्द्र सारी उम्र ही नेक फल देगा ख्वाह कैसी हालत का ही क्यों न हो या हो जावे। माता या किसी बड़े के पांव छूकर उसका आर्शीवाद लेना चन्द्र के उत्ताम फल पैदा करने की सबसे बढ़िया बुनियाद है।
                                           
सानिया  मिर्ज़ा
जन्म 15 - 11 - 1986


कुण्डली में चन्द्र का अपना घर खाना नं. 4 है। चन्द्र खाना नं. 4 में खर्चने पर और बढ़ने वाला माया का दरिया या जिसक कदर खर्च करें दौलत उस कदर ओर बढ़े। माता असली या सौतेली का साथ नेक फल देगा। चन्द्र अब मानिन्द दूध होगा। शुभ काम शुरू करते वक्त दूध से भरा बर्तन बतौर कुंभ रख लेना निहायत मुबारक होगा। पापी ग्रह भी माता के दूध की कसम खाकर बुरा न करेंगे।



Thursday, March 3, 2011

बीमारी

नफ़ा नुक्सान, फतह शिकस्त, सुख दुख, सेहत बीमारी, ज़िन्दगी के हर दो पहलू हैं। वर्षफल के हिसाब से खाना नं. 3, 5, 8 , 11 की मन्दी हालत से मन्दे नतीजे होंगे। अगर यह सब खाने खाली हों तो खाना नं. 4 भेदी होगा।


बीमारी का आगाज़ खाना नं. 8 से शुरू होगा। खाना नं.2-4 बहाना होंगे। खाना नं. 10 इसमें लहरें बढ़ा देगा। खाना नं. 5 रूपए पैसे का खर्च और खाना नं. 3 दुनिया से चले जाने का हुक्म सुना देगा। खाना नं. 3 के ग्रह खाना नं. 8 की मन्दी हालत से बचाने वाले होंगे  बशर्ते कि खाना नं. 11 के दुश्मन ग्रहों से वह मन्दा न हो। आखिरी अपील सुनने का मालिक चन्द्र होगा। अगर चन्द्र खाना नं. 4 में बैठा हो और राहु केतु खाना नं. 2-8 या 6-12 में बैठे हों तो उम्र के ताल्लुक में कोई मन्दा असर न लेंगे।


चूंकि बीमारी का बहाना खानां. 2 से शुरू होता है और उसमें लहरें खाना नं. 10 पैदा करेगा। इसलिए जब खाना नं. 2 बाहम दुश्मन ग्रह बैठे हों या उनका असर खाना नं. 8 में बैठे हुए दुश्मन ग्रहों के सबब से मन्दा हो रहा हो तो ऐसी ज़हर का खाना नं. 2 पर कोई बुरा असर न होगा । मगर उसी वक्त खाना नं. 10 खाली न हो तो खाना नं. 2 में पैदाशुदा ज़हर बीमारी का बहाना और उसमें लहरों की रफ्तार में ज़रूर दखल देगी। लेकिन अगर खाना नं. 10 खाली हो तो नं. 2 के बाहम दुश्मन ग्रहों का बीमारी के ताल्लुक में कोई दखल न होगा।


मन्दे ग्रह जिस दिन खाना नं. 3 या 9 में आवें, बुरा वाक्य होगा। जिसकी बुनियाद पर राहु केतु की शरारत होगी। राहु की बुरी भली तासीर का पता बुध और केतु की नेक व बद नियत का सुराग बृहस्पति बता देगा। जिसकी रोकथाम खाना नं. 8 से और मुकम्मल इलाज खाना नं. 5 करेगा। लेकिन अगर खाना नं. 5 खाली हो तो उम्दा सेहत होगी और अगर बीमार हो भी जाए तो खुद-ब-खुद ही तन्दरूस्त हो जायेगा। खुलास्तन खाना नं. 3 बीमारी के बहाना से अगर बर्बादी देता है तो खाना नं. 5 मुर्दा जिस्म में रूह वापिस डाल देता है। इन दोनों खाना नं. 3 और 5 की बुनियाद खाना नं. 9 होगा। अगर खाना नं. 3 व 5 दोनो ही खाली हों तो नं. 2,6,8,12 का मुश्तर्का फैसला, नतीजा होगा। जिसकी आखिरी अपील चन्द्र पर होगी। बृहस्पति मन्दा हो तो खाना नं. 5 पर मन्दा असर होता है।


खाना नं. 3 , 9 मन्दे हो तो नं. 5 मन्दा होगा। लेकिन अगर खाना नं. 9 में सूरज या चन्द्र हो तो नं. 5 उम्दा होगा। खाना नं. 10 के लिए नं. 5, 6 के ग्रह ज़हरी दुश्मन होंगे । जन्म कुण्डली में जब सूरज या चन्द्र के साथ शुक्र बुध या कोई पापी बैठा हो तो जिस वक्त वह नं. 1, 6, 7, 8, 10 में आवें,सेहत के ताल्लुक में मन्दा वक्त होगा।


ग्रह व बीमारी का ताल्लुक


जब कोई बीमारी तंग करे तो फौरन उसके मुताल्लका (सम्बन्धित) ग्रह का उपाय करें तो मदद हो जायेगी। मुश्तर्का (इकट्ठे) ग्रहों की हालत में उस ग्रह का उपाय करें जिसके असर से दूसरा ग्रह भी बर्बाद हो रहा हो । मसलन् बृहस्पति राहु मन्दे के वक्त राहु का उपाय मददगार होगा।


ग्रह मुताल्ल्का बीमारियां


बृहस्पति
सांस, फेफड़े के अमराज़ (मर्ज़)
सूरज
दिल धड़कना सूरज कमज़ोर जब चन्द्र की मदद न मिले। पागलपन, मुंह से झाग निकलना, अंग की ताकत बेहिस (बेकार) हो जाना। सूरज नं. 6 बुध नं. 12 ब्लड प्रैशर की बीमारी ।
चन्द्र
दिल की बीमारियां, दिल धड़कना, आंख के डेले की बीमारियां।
शुक्र
ज़िल्द के अमराज़ खुजली, चम्बल वगैरह। नाक छेदन से मदद होगी।
मंगल
नासूर, पेट की बीमारियां, हैज़ा, पित्त, मेदा ।
मंगल बद
भगंदर (फोड़ा), नासूर ।
बुध
चेचक, दिमागी ढांचा की बीमारिया, खुशबू या बदबू का पता न लगना, नाड़ों, ज़ुबान या दांत की बीमारियां।
सनीचर
बीनाई (नज़र) की बीमारियां, खांसी , दमा, चश्म की बीमारियां। दरिया में नारियल बहाना मददगार
राहु
बुखार, दीमागी अमराज़, प्लेग, हादसा, अचानक चोट ।
केतु
अज़ू (जोड़), रेह (गैस), दर्द जोड़, आम फोड़े फुंसी, रसौली, सुजाक, आतशक (गर्मी,लू) , पेशाब की बीमारी, बेहद एहतिलाम, कान के अमराज़ रीढ़ की हड्डी, हर्निया, अज़ू का उतर जाना या भारी हो जाना।
{बृहस्पति राहु , बृहस्पति बुध}
दमा , सांस की तकलीफ़
{राहु केतु , चन्द्र राहु}
बवासीर ,पागलपन, निमोनिया
{बृहस्पति राहु , सूर्य शुक्र}
दम, तपेदिक
{ बुध बृहस्पति, मंगल सनीचर }
कोढ़ खून के अमराज़, जिस्म का फट जाना।
{शुक्र राहु}
नामर्दी (नपुंसक) ।
{शुक्र केतु}
एहतिलाम (स्वप्न दोष) ।
{बृहस्पति मंगल बद}
यरकान ।
{चन्द्र बुध या , मंगल का टकाराव}
ग्लैंडज़
अगर घर से बीमारी दूर ही न होती हो या एक बाद दूसरा बीमार हो जावे तो:-


1. घर के तमाम मैम्बरों और आये मेहमानों (औस्तन) की तादाद से चंद एक ज्यादा मीठी रोटियां, चाहे छोटी-छोटी हों पका कर महीनें में एक दफ़ा बाहर जानवरों, कुत्तों, कौवों वगैरह को डाल दिया करें।
2. हलवा कद्दू पका हुआ, ज़र्द रंग और अन्दर से खोखला तीन महीने में एक बार धर्म स्थान में रख दिया करें।
3. अगर कोई मरीज़ शिफ़ा (आराम) ना पावे तो रात को उसके सिरहाने रूपया पैसा रखकर सुबह भंगी को 40-43 दिन देवें। यह पिछले जन्म का लेन देन का टैक्स होता है।
4. जब कभी शमशान या कब्रिस्तान में से गुज़रने का मौका मिले तो रूपया पैसा वहां गिरा दिया करें। निहायत गैबी मदद होगी।
खुदा सब को तन्दरूस्ती बखशे । हां ! अगर कभी ज़रूरत पड़ ही जाये तो मन्दे ग्रह का उपाय (असली) लाल किताब के मुताबिक ही करना बेहतर होगा। मिसाल के तौर पर अमर सिंह जी की कुण्डली जिनको दिसम्बर 2010 में शाम के वक्त अचानक हादसे में सिर में गहरी चोट लगी और कुछ दिन बेहोश रहे। तकरीबन एक महीना अस्पताल में रहे। अब घर में इलाज चल रहा है।


जन्म कुण्डली में खाना नं. 2 और 8 में ग्रह, बुध का कोई एतबार नही। वर्षफल में यह ग्रह खाना नं. 5 और 10 में मन्दे और आपसी टकराव। नतीजा चोट, दुख तकलीफ और नुक्सान। खाना नं. 3 राहे रवानगी यानि दुनिया से चले जाने का रास्ता जो मंगल ने रोक रखा है। जान बच गई। बृहस्पति खाना नं. 2 गैबी मदद। मगर दुख अभी दूर नही हुआ। जन्म का उपाय करवा दिया गया। वर्ष का उपाय बता दिया गया।

Thursday, February 3, 2011

सोनिया गांधी

सोनिया जी पिछले 10-12 सालों से मुल्क की सियासत मे सरगरम हैं और कांग्रेस पार्टी की सदर हैं । सन् 2004 के आम चुनाव के बाद वह मुल्क की प्रधानमन्त्री बनते-बनते रह गईं और अपनी जगह डा0 मनमोहन सिंह जी को प्रधानमन्त्री बनवा दिया, जिसके बारे मे उम्मीद न थी। थोड़े अर्से बाद कुछ ज्योतिषियों ने भविष्यवाणियां करनी शुरू कर दी कि सोनिया जी प्रधानमन्त्री बनेंगी। वह अब बनेंगी, तब बनेगी। मगर कब बनेगी ? वक्त गुज़रता गया मगर ऐसा कुछ न हुआ। सन् 2009 के आम चुनाव आ गए। पार्टी ने डा0 सिंह जी को पहले ही प्रधानमन्त्री के ओहदे के लिए नामज़द कर दिया। लिहाज़ा चुनाव के बाद डा0 सिंह जी बिना चुनाव लड़े दोबारा प्रधानमन्त्री बन गए। खुद सोनिया जी पार्टी की सदर बनी रही। इस तरह सब भविष्यवाणियां गलत साबित हुई। कईयों को यह समझ नही आता कि आखिर वह खुद प्रधानमन्त्री क्यों नहीं बनती? जवाब के लिए सोनिया जी की जानी मानी कुण्डली का जायज़ा ''लाल किताब' के मुताबिक लेना होगा।
जन्म 9-12-1946


शनि खाना नं0 1, खाना नं0 7, 10 खाली और मंगल खाना नं0 6 मच्छ रेखा यानि बेशुमार धन दौलत । बृहस्पति खाना नं0 4, लाखों की गिनती में एक नामावर शख्स जो इज्जत, दौलत, शोहरत और जायदाद का मालिक होवे मगर शुक्र का साथ पति के लिए मन्दा। सूरज बुध खाना नं0 5, राजयोग मगर केतु से ग्रहण जो सूरज की रोशनी को हल्का कर देवे। राहु खाना नं0 11 मन्दा जो नुक्सान करे या कोई न कोई मसला भूत बनके परेशान करे। चन्द्र खाना नं0 12, पानी पर पानी बरसता रहा, बीकानेर बेचारा तरसता रहा। किस्मत की अजब कहानी। सोनिया जी सत्ता के आस पास तो रही मगर सत्ता में नहीं।
खुलासा यह कि पापी ग्रह राहु केतु रास्ते की रूकावट हैं। इसलिए पापी ग्रहों को उपाय कर लेना ही बेहतर। वरना सोनिया जी का प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठना शक्की ही होगा।

'लाल किताब है जोतिष निराली, जो किस्मत सोई को जगा देती है
लिखत जब विधाता किसी की हो शक्की, उपाओ मामूली बता देती है।''

Tuesday, January 4, 2011

लाल किताब

''हाथ रेखा को समुद्र गिनते, नजूमे फलक का काम हुआ,

इल्म क्याफा ज्योतिष मिलते, लाल किताब का नाम हुआ ।''

लाल किताब के इस शेयर पर गौर किया जाये तो पता चलता है कि इल्म, क्याफा और ज्योतिष के संगम को लाल किताब कहा गया है। इस किताब के पांच हिस्से सन् 1939 और 1952 के दरमियान उर्दू ज़ुबान में छपे। सन् 1952 वाले आखिरी हिस्से को मुकम्मल लाल किताब कहा जा सकता है। हालांकि किताब पर लेखक का नाम नही है मगर इसमें कोई शक नही कि लाल किताब की रचना आलिम पंडित रूप चन्द जोशी जी ने की थी।


पंडित जी फौज से असिस्टैंट अकाउंट अफसर रिटायर्ड होने के बाद अपने गांव फरवाला, तहसील नूरमहल, ज़िला जालन्धर, पंजाब में रहते थे। मुझे उनसे मेरे ताया जी कर्नल पी.पी.एस. ठाकुर ने मिलवाया था। पहली बार उनसे मैं 1975 में मिला। फिर मुलाकातों का सिलसिला कुछ साल जारी रहा। ताया जी की वजह पंडित जी मुझपर मेहरबान रहे। उनसे कई मुलाकातें हुई और बेशुमार बातें हुई। लाल किताब भी मुझको पंडित जी ने ही दी थी। जिसे मैं उनका आर्शीवाद समझता हूं। किताब को पढ़ने समझने के लिए मुझे बकायदा उर्दू सीखना पड़ा। लाल किताब क्या है ...गागर में सागर है ।


पंडित जी के बारे में ताया जी ने मुझे कई बातें बताई। उनसे कई मुलाकातों से भी काफी जानकारी मिली। उनका कुण्डली देखने का तरीका भी अलग था। पंडित जी लाल कलम से जो लिख देते थे वह अक्सर पूरा हो जाता था। इस इल्म को शायद ही कोई ओर समझा हो। दरअसल पंडित जी एक गैर मामूली इन्सान थे। लाल किताब भी गैबी ताकत से उर्दू ज़ुबान में लिखी गई थी। मेरे पूछने पर पंडित जी ने खुद बताया था, ''पता नही कौन मुझे लिखाता रहा।'' शायद यही वजह रही कि किताब पर लेखक का नाम नही है।


वक्त के साथ-साथ लाल किताब इतनी मकबूल हुई कि आज बाज़ार में नकल या नकली किताबों की बाढ़ सी आ गई है और असली लाल किताब उर्दू वाली कहीं नज़र नही आती। नकली किताब पढ़कर कई सज्जन खुद को लाल किताब का माहिर कहने लगे हैं। हालांकि उनको यह भी नही पता कि इसे लाल किताब क्यों कहा गया। उर्दू आता नही, असली किताब देखी नही और माहिर बन बैठे। बस नकली का बोलबाला है। अफसोस की बात यह है कि लाल किताब के नाम पर लूट शुरू हो गई है। लोग भी वनस्पति घी को असली घी समझ रहे हैं।


लाल किताब के मुताबिक हर ग्रह के दो पहलू हैं, नेक और बद। यानि नेक हालत और मन्दी हालत। लिहाज़ा असली किताब नेक और नकली किताब बद है। अब नकली किताब के नतीजे मन्दे न होंगे तो और क्या होंगे ? वैसे भी जो किताब जिस ज़ुबान में लिखी गई हो, उसको उसी ज़ुबान में पढ़ना बेहतर होता है। नकली किताब में जान प्राण नही होते। वह मुर्दा ही होती है। इसलिए अगर हो सके तो असली किताब को ही पढ़ा समझा जाये। इसी से कुशल मंगल होगा।

Thursday, December 9, 2010

प्रधानमन्त्री

दिल्ली की एक ज्योतिष पत्रिका के मई 2009 के अंक में एक लेख छपा था, 'कौन बनेगा प्रधानमन्त्री ?'' इस में कई कुण्डलियों का खुलासा किया गया। सुषमा स्वराज जी  के बारे में ज्योतिषी जी ने लिखा, '' सुषमा जी पर वर्तमान समय में प्रभावी शनि और बुध की दशा 30-11-2009 तक चलेगी। इस अवधि में उनके प्रधानमन्त्री बनने की प्रबल सम्भावना है।'' आगे चलकर प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह जी के बारे में लिखा,'' दूसरी बार प्रधानमन्त्री बनने में कठिनाई होगी।''

खैर लोकसभा चुनाव हुए। सुषमा जी प्रधानमन्त्री तो दूर, मन्त्री भी न बन सकी। मगर मनमोहन सिंह जी बिना चुनाव लड़े दोबारा प्रधानमन्त्री बन गए। कोई कठिनाई न हुई। अब क्या कहें ? या तो कुण्डलियां ठीक नही या फिर ज्योतिषी जी गलती कर गए। चलिए लाल किताब के हिसाब से कुण्डलियों का जायज़ा लें।



सुषमा जी की कुण्डली के खाना नं0 10 में सुरज को ग्रहण राहु से और खाना नं0 5 में चन्द्र को ग्रहण सनीचर से। किस्मत का घर खाना नं0 9 में बुध, ''चमगादड़ के मेहमान आए, यहां हम लटके वहां तुम लटको।'' काला नंगा सिर भी मन्दा। ऐसी हालत में प्रधानमन्त्री बनने की बात कुछ समझ में न आए।


मनमोहन सिंह जी की कुण्डली के खाना नं0 10 में सुरज बुध मुश्तर्का, राज ताल्लुक और सरकारी मुलाजमत । किस्मत का घर खाना नं0 9 में बृहस्पति, सुनहरी खानदान, जैसे जैसे उम्र बढ़े वैसे वैसे तरक्की करे। मंगल और पापी ग्रह भी नेक। ऐसी हालत में प्रधानमन्त्री बनने की बात समझ में आए। अगर पगड़ी का रंग सफेद या हल्का शर्बती हो तो बेहतर होगा ।


ज्योतिष के नाम पर उल्टी सीधी बातें कहने से न सिर्फ ज्योतिष को धक्का लगता है बल्कि अपनी खुद की मिट्टी भी खराब होती है। इसलिए ऐसी बातों से बचना चाहिए।

Friday, November 19, 2010

मंगल

मंगल नेक, शस्त्रधारी, सुर्ख रंग, नेक होने पर जिस्म में खून रूह की तरह जंगल में मंगल किया और बदी से हिरण की तरह भागा। मंगल बद हुआ तो कोई बदी न छोड़ी और हर एक को तलवार के घाट उतारा मगर मुआफ हरगिज़ न किया। शुतर बेमुहार कीनासाज़, रेगिस्तान का जहाज़ जिसे रेत से मुहब्बत है और पानी की परवाह नही।


अगर जन्म कुण्डली में सूरज बुध इकट्ठे हो तो मंगल नेक, अगर सूरज सनीचर इकट्ठे तो मंगल बद होगा। खाना पीना, भाई बन्दो की सेवा जंग व जदल, जिस्मानी दुख: बिमारी 28 सालां उम्र का ज़माना। तमाम जिस्म की दरमियानी जगह नाभि मंगल की राजधानी और सूरज की सीधी किरणों की जगह मानी गई है। इसलिये कुण्डली की नाभि खाना नं0 4 के ग्रह, मंगल की नेक और बुरी हालत का पता बतायेंगे यानि जैसे नं0 4 मे बैठे होने वाले का असर होगा वही हालत मंगल के खून की होगी। न सिर्फ दान इसका ज़रूरी पहलू और कुल दुनिया के भलाई के काम और भण्डारे खोलने की हिम्मत इसकी नेकी का पता बतायेंगे बल्कि कुल खानदान की लावल्दी दूर करेगा। अकेला बैठा हुआ मंगल मानिंद जंगल का शेर बहादुर होगा। मंगल नेक अपने असर की निशानी हमेशा उस ग्रह की चीज़ों के ज़रिए देगा जोकि कुण्डली में उम्दा हों और उस ग्रह का अपना वक्त असर देने का हो । मंगल बद मन्दे ग्रहों की चीज़ों, इसके मन्दा असर देने के वक्त बुरे असर की हवा का आना पहले बतला देगा। हर हालत में मंगल के असर में यकसां लगातार दरिमयाना रफतार न होगी। ख्वाह मंगल नेक शेर बहादुर के हमला की ताकत का हो। ख्वाह मंगल बद डरपोक हिरण की तरह कोसों ही दूर भागता हो।


बदी का तुख्म, खून का बदला खून से लेना हरदम ज़रूरी जब घी (शुक्र) और शहद (मंगल नेक) बराबर के हों तो ज़हर (मंगल बद) हाेंगा यानि सबसे पहले शुक्र और बाद में सूरज का फल यके बाद दीगरे मन्दा होगा। लेकिन अगर सूरज या चन्द्र की मदद मिल जावे तो मंगल बद न होगा। कोई दो पापी (सनीचर राहु, सनीचर केतु) या कोई दो बाहम दुश्मन (बुध केतु, सूरज शुक्र) मंगल के साथी होवें तो मंगल बद न होगा। जब अपनी मार पे आयेगा, एक का बुरा न करेगा बल्कि अगर हो सके तो कुल खानदान का बेड़ा गर्क करेगा। जब बुध मन्दा हो, मंगल बद ओर भी मन्दा होगा और खूनी शेर बहादुर की बजाये बकरियों में रहने वाला पालतू शेर की तरह अपनी असलियत से बेखबर होगा।


खाना नं0 4 और 8 का मंगल आमतौर पर बद ही होता है। उपाय के लिए हर रोज़ सुबह पानी से दांत सफा करना मददगार होगा। चन्द्र का उपाय या बढ़ के दरखत को दूध में मीठा डालकर गीली की हुई मिट्टी का तिलक पेट की खराबियों को दूर करेगा। आग के वाक्यात पर छत पर खाण्ड की बोरियां, शहद से मिट्टी का बर्तन भरकर बाहर शमशान में (लावल्दी के वक्त या औरत, औलाद की बरबादी), मृगशाला (लम्बी बिमारियों से छुटकारा), चांदी चकौर की मदद या जनूबी दरवाज़ा लोहे से कील देवें । काले, कान,े लावल्द, डेक के दरखत से दूरी पकड़ें। सूरज, चन्द्र, बृहस्पति की अशिया कायम करें। चिड़े चिड़ियों को मीठा देना और हाथी दांत पास रखना मुबारक होगा।


खुलासातन कुण्डली में अगर मंगल नेक तो कुशल मंगल और बद तो मंगल दंगल। मिसाल के तौर पर वरूण गांधी की कुण्डली।



जन्म: 13-3-1980

मंगल बद खाना नं0 4, जो पानी में भी आग लगा दे। जिसने दुनिया की कोई बदी न छोड़ी। बेमुहार ऊँठ की तरह गर्दिश का सैलानी। अपने ही परिवार की औरतों पर भारी। मां जवानी में बेवा हो गई। खुद मियां फज़ीहत औरों को नसीहत। वाह रे ! मंगल बद।

Monday, November 1, 2010

बृहस्पति

अगर बृहस्पति के ज़रद रंग ज़माने के शेर ने इन्सानी गुरू के चरणों में सोने (नींद) से दुनिया को सोना (धात) बख्शा तो केसर ने दुनिया को खुशी की मौत सिखाई । बृहस्पति..... श्री ब्रह्म जी महाराज, दोनो जहां और त्रिलोकी के मालिक ।


इन्सान की मुट्ठी के अन्दर के खाली खलाव में बंद या आकाश में फैले रहने, हर दो जहां में जा आ सकने और तमाम ब्रह्माण्ड व इन्सान के अन्दर बाहर चक्र लगाने वाली हवा को ग्रह मण्डल में बृहस्पति के नाम से याद किया गया है। जो बन्द हालत में कुदरत से साथ लाई हुई किस्मत का भेद और खुल जाने पर अपने जन्म से पहले भेजे हुये खज़ाने का राज और बंद और खुली हर दो हालत की दरमियानी हद इन्सान शरीफ. के शुरू (जन्म लेने) व आखीर (वफ़ात पाने) का बहाना होगी । यह ग्रह तमाम ग्रहों का गुरू और ज़ाहिरा गैबी, दोनों जहां का मालिक माना गया है। इसलिये एक ही घर मे बैठे हुये बृहस्पति का असर बेशक मानिन्द राजा या फकीर, सोना या पीतल, सोने की बनी हुई लंका तक दान कर देने वाला प्राणी या सारे ज़माने का चोर साधु जिसका धर्म ईमान न हो, हर दो हालत में से ख्वाह किसी भी ढंग का हो मगर उसका बुरा असर शुरू होने की निशानी हमेशा सनीचर के मन्दे असर के ज़रिए होगी और नेक असर खुद बृहस्पति के ग्रह के मतल्ल्का अशिया, कारोबार या रिश्तेदार मतल्लका बृहस्पति के ज़रिए ज़ाहिर होगा।

नर ग्रहों (सूरज,मंगल) के साथ या दृष्टि वगैरह से मिलने पर मामूली तांबा भी सोने का काम देगा। स्त्री ग्रह (शुक्र या चन्द्र) के साथ या दृष्टि के ताल्लुक से मिट्टी से भरा हुआ पानी भी उत्ताम दूध का काम देगा। बृहस्पति के बगैर तमाम ग्रहों में मिलने जुलने की या दृष्टि की ताकत पैदा न होगी। पापी ग्रह (राहु, केतु, शनीचर) मन्दे होने पर बृहस्पति सोने की जगह पीतल, मिट्टी, हवा की जगह ज़हरीली गैस का मन्दा असर देगा। बृहस्पति और राहु दोनों खाना नं0 12 (आसमान) में इकट्ठे ही माने गये हैं।

बृहस्पति दोनों जहां (गैबी व ज़ाहिरा) का मालिक है जिसमें आने और जाने के लिए नीले रंग में राहु का आसमानी दरवाज़ा है। इसलिए जैसा यह दरवाज़ा होगा वैसा ही हवा के आने जाने का हाल होगा। अगर राहु टेडा चलने वाला हाथी , सांस को रोकने वाला कड़वा धुआं या ज़मीन को पताल से भूंचाल बनकर हिलाता रहे तो बृहस्पति भला नही हो सकता। लेकिन अगर राहु उत्ताम और मददगार दरवाज़ा हो तो बृहस्पति कभी बुरा न होगा।

हर तरफ से अकेला बृहस्पति ख्वाह वह दृष्टि वगैरह से कितना भी मन्दा होवे पर टेवे वाले पर कभी मन्दा असर न देगा। बरबाद हो चुका बृहस्पति आम असर के लिए खाली बुध गिना जायेगा। जिसका फैसला बुध के जाति सुभाव के असूल पर होगा। दुश्मन ग्रहों (बुध, शुक्र, राहु या सनीचर बहैसियत पापी ग्रह यानि जब सनीचर को राहु या केतु किसी तरह भी बरूये दृष्टि या साथ वगैरह से आ मिलते हों ) के वक्त मन्दा हो जाने की हालत में बृहस्पति अमूमन बुध का असर देगा और बृहस्पति का मन्दा असर काबिले उपाय होगा । जिसके लिये साथी दुश्मन ग्रह का उपाय मदद देगा।

ग्रह मण्डल में सब ग्रहों में छेड़छाड़ करने कराने वाले दुनियावी पाप (सिर्फ दो ग्रह राहु केतु का दूसरा नाम) को चलाने वाला बृहस्पति है। गोया राहु केतु के पाप करने की शरारत से पहले बृहस्पति खुद अपनी अशिया या कारोबार या रिश्तेदार मतल्लका बृहस्पति के ज़रिए खबर दे देगा। जिसके लिए ख्याल रहे कि


''असर जलता दो जहां का, ग्रहण शत्रु साथी जो ।
चोर बना 6 ता 11, मंगल टेवे ज़हरी जो ॥''
मिसाल के तौर पर मुरार जी देसाई जी की कुण्डली ।


                                                                     जन्म: 29-2-1896


वह नेहरू जी और इन्दिरा जी की बज़ारत में वज़ीर रहे। पर इन्दिरा जी ने उनको निकाल बाहर फैंका। कुण्डली में केन्द्र खाली, सुरज और चन्द्र ग्रहण । पापी ग्रह सनीचर, राहु, केतु भी मन्दे। मगर पापी ग्रहों का भी बृहस्पति खाना नं0 2 को सलाम , जिसने आखिर देसाई जी को वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी पर बिठा दिया। सलाम ! गुरू तुझे सलाम!