Monday, November 1, 2010

बृहस्पति

अगर बृहस्पति के ज़रद रंग ज़माने के शेर ने इन्सानी गुरू के चरणों में सोने (नींद) से दुनिया को सोना (धात) बख्शा तो केसर ने दुनिया को खुशी की मौत सिखाई । बृहस्पति..... श्री ब्रह्म जी महाराज, दोनो जहां और त्रिलोकी के मालिक ।


इन्सान की मुट्ठी के अन्दर के खाली खलाव में बंद या आकाश में फैले रहने, हर दो जहां में जा आ सकने और तमाम ब्रह्माण्ड व इन्सान के अन्दर बाहर चक्र लगाने वाली हवा को ग्रह मण्डल में बृहस्पति के नाम से याद किया गया है। जो बन्द हालत में कुदरत से साथ लाई हुई किस्मत का भेद और खुल जाने पर अपने जन्म से पहले भेजे हुये खज़ाने का राज और बंद और खुली हर दो हालत की दरमियानी हद इन्सान शरीफ. के शुरू (जन्म लेने) व आखीर (वफ़ात पाने) का बहाना होगी । यह ग्रह तमाम ग्रहों का गुरू और ज़ाहिरा गैबी, दोनों जहां का मालिक माना गया है। इसलिये एक ही घर मे बैठे हुये बृहस्पति का असर बेशक मानिन्द राजा या फकीर, सोना या पीतल, सोने की बनी हुई लंका तक दान कर देने वाला प्राणी या सारे ज़माने का चोर साधु जिसका धर्म ईमान न हो, हर दो हालत में से ख्वाह किसी भी ढंग का हो मगर उसका बुरा असर शुरू होने की निशानी हमेशा सनीचर के मन्दे असर के ज़रिए होगी और नेक असर खुद बृहस्पति के ग्रह के मतल्ल्का अशिया, कारोबार या रिश्तेदार मतल्लका बृहस्पति के ज़रिए ज़ाहिर होगा।

नर ग्रहों (सूरज,मंगल) के साथ या दृष्टि वगैरह से मिलने पर मामूली तांबा भी सोने का काम देगा। स्त्री ग्रह (शुक्र या चन्द्र) के साथ या दृष्टि के ताल्लुक से मिट्टी से भरा हुआ पानी भी उत्ताम दूध का काम देगा। बृहस्पति के बगैर तमाम ग्रहों में मिलने जुलने की या दृष्टि की ताकत पैदा न होगी। पापी ग्रह (राहु, केतु, शनीचर) मन्दे होने पर बृहस्पति सोने की जगह पीतल, मिट्टी, हवा की जगह ज़हरीली गैस का मन्दा असर देगा। बृहस्पति और राहु दोनों खाना नं0 12 (आसमान) में इकट्ठे ही माने गये हैं।

बृहस्पति दोनों जहां (गैबी व ज़ाहिरा) का मालिक है जिसमें आने और जाने के लिए नीले रंग में राहु का आसमानी दरवाज़ा है। इसलिए जैसा यह दरवाज़ा होगा वैसा ही हवा के आने जाने का हाल होगा। अगर राहु टेडा चलने वाला हाथी , सांस को रोकने वाला कड़वा धुआं या ज़मीन को पताल से भूंचाल बनकर हिलाता रहे तो बृहस्पति भला नही हो सकता। लेकिन अगर राहु उत्ताम और मददगार दरवाज़ा हो तो बृहस्पति कभी बुरा न होगा।

हर तरफ से अकेला बृहस्पति ख्वाह वह दृष्टि वगैरह से कितना भी मन्दा होवे पर टेवे वाले पर कभी मन्दा असर न देगा। बरबाद हो चुका बृहस्पति आम असर के लिए खाली बुध गिना जायेगा। जिसका फैसला बुध के जाति सुभाव के असूल पर होगा। दुश्मन ग्रहों (बुध, शुक्र, राहु या सनीचर बहैसियत पापी ग्रह यानि जब सनीचर को राहु या केतु किसी तरह भी बरूये दृष्टि या साथ वगैरह से आ मिलते हों ) के वक्त मन्दा हो जाने की हालत में बृहस्पति अमूमन बुध का असर देगा और बृहस्पति का मन्दा असर काबिले उपाय होगा । जिसके लिये साथी दुश्मन ग्रह का उपाय मदद देगा।

ग्रह मण्डल में सब ग्रहों में छेड़छाड़ करने कराने वाले दुनियावी पाप (सिर्फ दो ग्रह राहु केतु का दूसरा नाम) को चलाने वाला बृहस्पति है। गोया राहु केतु के पाप करने की शरारत से पहले बृहस्पति खुद अपनी अशिया या कारोबार या रिश्तेदार मतल्लका बृहस्पति के ज़रिए खबर दे देगा। जिसके लिए ख्याल रहे कि


''असर जलता दो जहां का, ग्रहण शत्रु साथी जो ।
चोर बना 6 ता 11, मंगल टेवे ज़हरी जो ॥''
मिसाल के तौर पर मुरार जी देसाई जी की कुण्डली ।


                                                                     जन्म: 29-2-1896


वह नेहरू जी और इन्दिरा जी की बज़ारत में वज़ीर रहे। पर इन्दिरा जी ने उनको निकाल बाहर फैंका। कुण्डली में केन्द्र खाली, सुरज और चन्द्र ग्रहण । पापी ग्रह सनीचर, राहु, केतु भी मन्दे। मगर पापी ग्रहों का भी बृहस्पति खाना नं0 2 को सलाम , जिसने आखिर देसाई जी को वज़ीर-ए-आज़म की कुर्सी पर बिठा दिया। सलाम ! गुरू तुझे सलाम!

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