Thursday, December 15, 2016

अम्मा

6 दिसम्बर 2016 को अखबार की सुर्खी थी कि तमिलनाडू सूबे की वज़ीर-ए-आला जयललिता जी का हस्पताल में 75 दिन तक ज़िन्दगी मौत की लड़ाई लड़ते हुये दिल का दौरा पड़ने से इन्तकाल हो गया। लाखों लोग जो उनको एहतिराम से अम्मा कहते थे, सदमें में डूब गये। उनकी दुआ ज़िन्दगी का दरवाज़ा खटखटा कर वापिस लौट आई थी। ख़बरोें के मुताबिक हस्पताल का बिल 80 करोड़ रूपए बना।
ललिता जी का जन्म रियासते-ए-मैसूर में सन् 1948 में हुआ था। बाप बचपन में गुज़र गया तो उनकी परवरिश मां ने की। ललिता जी को छोटी उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा। महज़ 17 साला उम्र में जनूब की फिल्मों में उनकी पहचान बन गई। उन्होंने100 से भी ज्यादा तमिल, तेलगू और कन्नड़ फिल्मों काम किया और अपने दौर की दूसरी अदाकारों से ज्यादा उज़रत ली। जनूब की फिल्मों उनके ज्यादातर हीरो थे, शिवाजी गणेशन, एन.टी.रामाराव, एम.जी.आर.वगैरह । बाॅलीबुड की एक फिल्म ’’इज्ज़त’’ में धमेन्द्र भी उनका हीरो रहा। उनकी तकरीबन 28 फिल्मों के हीरो एम.जी.आर. ही थे। वह उस दौरान सूबे के वज़ीर-ए-आला भी रहे। ललिता जी ने अपना सियासी कैरियर सन् 1982 में एम.जी.आर. की छत्तरछाया में शुरू किया।  दरअसल वह उनको अपना ’’सब कुछ’’ मानती थी। आहिस्ता-आहिस्ता वह उनकी महबूबा भी बन गई। एम.जी.आर. की मौत के बाद पार्टी के जानशीन की जद्दो जहद में उनकी बीवी जानकी को पछाड़ कर वह अन्ना डी.एम.के. की आला लीडर बन गई।
ललिता जी सन् 1991 में पहली बार सूबे की वजीर-ए-आला बनी। सियासी दौर के चलते उन पर रिश्वतखोरी और बईमानी के इल्ज़ाम भी लगे। आमदन से ज्यादा जायदाद के एक केस में बंगलौर की एक अदालत ने सन् 2014 में उनको कसूरवार करार देते हुये चार साला कैद और 100 करोड़ रूपया जुर्माने की सज़ा सुना दी। लिहाज़ा उनको इस्तेफा देना पड़ा। बाद में कर्नाटक हाईकोर्ट से बरी होने के बाद वह फिर वज़ीरे-ए-आला बन गई। तकरीबन 30 साल तक वह जनूबी भारत की सियास्त पर छाई रही। मरने के बाद उनको एम.जी.आर. के पास ही दफनाया गया। ललिता जी ने 114 करोड़ रूपए की जायदाद छोड़ी। मगर उनकी वसीयत के बारे अभी कुछ पता नही चला। ऐसी खूबसुरत व कामयाब अदाकारा और आला सियासी लीडर की कुण्डली दिलचस्पी का सबब होगी।

मेरी नज़र में जो उनकी कुण्डली गुज़री वह इस तरह हैः




जन्म कुण्डली के केन्द्र में दो ग्रह। चन्द्र मंगल खाना नम्बर 3, सूरज बुध खाना नम्बर 9 और केतु खाना नम्बर 5 से उनका कैरियर परवान चढ़ा। बृहस्पत शादी में रूकावट मगर शुक्र ने शनि से मिलकर अपना फल दिया। मिर्ज़ा हल्का सारंगी भारी जो दूसरे के मर्द को निकाल कर ले जावे जो उसने कर दिखाया। वह अपने महबूब की बिन ब्याही बीवी बनी। राहु खाना न0 11 मन्दा जिसने उनको अदालत और जेल दिखाई। वर्षफल में शुक्र और पापी टोला मन्दा और खाना न0 3 खाली। नतीजा नक्कारा-ए-कूच बज उठा और ललिता जी दुनिया-ए-फानी से विदा हो गई। मगर उम्दा ग्रहों की बजह से मौत के बाद भी उनको बहुत एहतिराम मिला। सूबे की हकूमत में मर्कज़ी हकूमत से उनके लिए भारत रतन की मांग की है। समझदार के लिए इशारा ही काफी  और नकलचीन से  बस मुआफी।

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